Duty Barah Ghante Ki - ड्यूटी बारह घंटे की

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पिंकू आज भी बिना खाना खाए ही कंपनी जाने के लिए बस पकड़ने दौड़ पड़ा। फिर भी उसे विलम्ब हो ही गया।

"यह क्या समय है, तुम्हारे कंपनी आने का ? काम करना है तो समय पर आया करो, वरना अपनी छुट्टी कर लो !"

"नहीं सर, कल से ऐसा नहीं होगा !"

"अच्छा ठीक है ! जाओ और हाँ, आज अजय नहीं आया है इसलिए तुम उसका भी काम देख लो !"

पिंकू मन ही मन अपने फूटे किस्मत को कोसता हुआ काम करने चला गया।

पिंकू को महानगर में आये पुरे नौ बर्ष गुजर चुके थे। जबकि नौ बर्ष तो क्या मात्र नौ महीने में ही एक बच्चा भी अपने माँ के पेट में रहकर अपने आप का विकास कर लेता है। परन्तु, उसे यहाँ इतने समय बिता देने के बाद भी अब तक शहर में आराम से जीने का अवसर नहीं मिला था।

इससे पहले भी वह दो कम्पनियाँ छोड़ चूका था। क्योकि वह बारह घंटे काम करके ऊब चूका था। परन्तु अन्य कोई उपाय न होने के कारण उसे मजबूरी में फिर से बाहर घंटे वाली ड्यूटी ही पकड़नी पड़ी।


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कंपनी में तो उसे रोज बारह घंटे काम करना ही पड़ता था, इसके अलावे उसे रोज चार घंटे का समय घर से कंपनी आने व जाने में भी लगता था। अब बचे आठ घंटे में ही उसे अपना दैनिक कार्य के अलावे सोने का समय भी निकलना पड़ता था।

पिंकू अपने मनहूस जीवन से अब बहुत तंग आ गया था और इसका अब इसका अंत करने का निर्णय ले लिया। फिर क्या था। किसी तरह से वह अपने कष्टदायी जीवन से अपने आपको मुक्त करने में सफल भी हो गया।

पिंकू अपने शरीर से बाहर आकर बहुत खुश था। वह जानता था की उसे अब किसी कंपनी में बारह घंटे काम नहीं करना पड़ेगा। अब उसे पैसे कमाने के लिए रोज मर मर कर नहीं जीना होगा। क्योकि अब उसे पैसे की कोई आवश्यकता ही नहीं रह गई थी। अब वह हवा में उड़ सकता था। इस कारण वह उड़कर शहर का चप्पा चप्पा घूमने का मजा लेने लगा।


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इस समय उसे न तो नौकरी करने की जरूरत थी और न ही घर की। वह पूर्ण रूप से चिंतामुक्त होकर भूत बनने का आनंद लेने लगा।

"काश, यह काम मैं बहुत पहले कर लिया होता ......!"

लेकिन ये क्या ....... ! अभी नया नवेला पिंकू का भूत स्वतंत्रता का आनंद ले ही रहा था की तभी उसने दूर से दो काले से नकावपोशो को अपनी ओर तेजी से आते देखा। फिर क्या ...... जल्द ही उन दोनो ने तेजी से उड़कर उसे पकड़ लिया।

"अरे काले नकावपोशो ....... क्यों पकड़ रहे हो मुझे ? छोड़ो ....... छोड़ो मुझे .......!" पिंकू का भूत नकावपोशो द्वारा उसे पकड़े जाने पर उसका हाँथ झिकड़ते हुए कहा।

"हम तुम्हे इस तरह से खुलेआम घूमने के लिए नहीं छोड़ सकते है !"

"क्यों ....? मैं कोई आतंकवादी का भूत क्या, जो तुम्हारे इस भूतलोक में आतंक मचाऊंगा।"

"वो बात नहीं है, चूँकि तुम अभी नये नये भूत बने हो इसलिए तुम्हे यहाँ के संविधान में वर्णित कानून का ज्ञान नहीं है।"

"क्या .... यहाँ भी संविधान और कानून है !"

"हाँ क्यों नहीं .......बिलकुल है..... और हमारे संविधान में एक भूत को बिना पंजीकरण कराये ऐसे घूमना अपराध है।"

"तुमलोग कौन हो ?"

"पारलौकिक सैनिक......!"

इस तरह से वे दोनों पारलौकिक सैनिक पिंकू को पकड़ कर ऊँचे आकाश में उड़ने लगे।

"मुझे कहाँ ले जा रहे हो -- यमदूतो !"

"अपने महाराज श्रीमान यमराज जी के पास !"

घंटो की यात्रा के बाद वे दोनों एक बड़े से हॉल में पहुँच गए। वहां लाखो लोग पंक्तियों में खड़े थे। सामने एक बड़े से शानदार आसन पर यमराज जी विराजमान थे। दूसरी ओर उनके सहयोगी श्री चित्रगुप्त जी एक लम्बा सा बही खाता लेकर बैठे थे। जिसमें प्रत्येक जीव के अच्छे व बुरे कर्मो का लेखा जोखा था। यमराज जी बारी बारी से उनके कर्मो के अनुसार उन्हें उचित स्थान पर भेज रहे थे। चित्रगुप्त जी प्रत्येक जीव का पंजीकरण भी कर रहे थे। सैनिक चारो ओर फैले हुए थे।

"हाँ तो पिंकू .....! तुमने बिना बुलाये ही ऊपर आने का अपराध क्यों किया ?" यमराज ने पिंकू से आश्चर्य से पूछा।

"जी .... मैं ऊब गया था ........ मेरे कहने का मतलब है की मैं अपने जीवन से तंग आ गया था।"

"क्यों ...... !"


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"महाराज ! मुझे बारह घंटे काम करने के अलावे चार घंटे बस से कंपनी आने - जाने में लगता था और बचे हुए आठ घंटो में ही अपना दैनिक कार्य के अलावे सोना भी पड़ता था।"

"अच्छा तो तुम अधिक काम से तंग आ गए थे। लेकिन अब तुम चिंता मत करो, यहाँ तुम्हे विश्राम करने का पूरा पूरा अवसर मिलेगा।"

"सच महाराज जी !"

"हाँ ! हम हमेशा सच ही बोलते है, लेकिन तुम्हे यहाँ केवल बारह घंटे का कार्य करना पड़ेगा और बचे हुए बारह घंटे में तुम आराम कर सकते हो। क्योकि यहाँ खाने पीने, स्नान करने की आवश्यकता नहीं होती है। इसके अलावे तुम्हे यहाँ पर कही भी आने - जाने के लिए भी बस या ट्रेन पकड़ने की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।"

"जी महाराज ..... ! वेतन कितन मिलेगा ?"

"वो तुम्हे अगले जन्म लेने पर मिलेगा।"

"वो कैसे महाराज ?"

"वो ऐसे की इस जन्म में तुम्हारा जो समय बस से आने जाने में लगता था, तब वो समय नहीं लगेगा, क्योकि तब तुम्हारा घर तुम्हारी कंपनी के बगल में ही होगा।"

"परन्तु महाराज जी ! मुझे अगले जन्म में ड्यूटी कितने घंटे की करनी होगी ?"

"बारह घंटे की ........!!!!"



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A Short Comedy Hindi Story -  "ड्यूटी बारह घंटे की......!!"

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