
सनातन धर्म का एक अत्यंत पवित्र पुष्प - ब्रह्म कमल
प्रकृति में ऐसे कई पेड़-पौधे, वृक्ष है, जो हमारे लिए न केवल प्राकृतिक रूप से उपयोगी है, बल्कि वे धार्मिक रूप से भी उतने ही महत्वपूर्ण है। कुछ तो इतने पवित्र है कि अगर वे हमारे घर में हो या घर के आस पास हो तो हमारा जीवन आनंद से भर जाएं। ऐसे पेड़-पौधे या वृक्ष हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है। ऐसा ही एक पौधा है, जिसका नाम है ब्रह्मकमल।
महादेवी और ईश्वर का पुष्प - ब्रह्म कमल
ब्रह्मकमल एक प्रकार का दिव्य पुष्प है जो शिवलिंग पर एवं देवी देवताओ की प्रतिमाओं पर चढ़ाया जाता है इस दिव्य पुष्प का प्रयोग सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। इस दिव्य पुष्प में मन व आत्मा को शुद्ध करने और आंतरिक शांति लाने की अद्भुत शक्ति है। इतना ही नहीं यह पुष्प नकारात्मक ऊर्जा एवं प्रेत आत्माओं से बचाने की भी शक्ति अपने में समाहित किये हुए होता है। चूँकि यह पुष्प देव पुष्प है और देव पुष्प होने के कारण इन्हे अत्यंत पवित्र फूल भी माना जाता है। इसलिए इसे सभी मंदिरो में चढ़ाया जा सकता है मगर फिर भी यह विशेष रूप से बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु और केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव को चढ़ाया जाता है।

ब्रह्म कमल का वैज्ञानिक नाम सासुरिया ओबलाटा है
ब्रह्म कमल का वैज्ञानिक नाम सासुरिया ओबलाटा (Saussurea obvallata) है। इसका अंग्रेजी नाम सेक्रेड सासुरिया (Sacred Saussurea) है। ब्रह्म कमल एस्टेरसिया समूह का पौधा है। इसी समूह में सूरजमुखी भी आता है। इस तरह ब्रह्म कमल सूरजमुखी परिवार का एक सदस्य है। सूर्यमुखी, गेंदा, गोभी, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज आदि इसी कुल के प्रमुख पौधे हैं।
ब्रह्म कमल हिमालय क्षेत्र में पाया जाने वाला एक दुर्लभ और प्रवित्र पौधा है
वास्तव में, ब्रह्म कमल का पौधा हिमालय क्षेत्र में पाएं जाने वाले एक दुर्लभ और अत्यधिक प्रवित्र पौधा है। इसकी पवित्रता का अनुमान से लगाया जा सकता है कि इसी ब्रह्मकमल पर माँ लक्ष्मी का आसन है अर्थात सुख समृद्धि की महादेवी लक्ष्मी इसी ब्रह्मकमल पर विराजती है। माँ लक्ष्मी के अलावे विद्या की महादेवी महासरस्वती भी इसी ब्रह्मकमल पर विराजती है। इसके अलावे यही ब्रह्मकमल ब्रह्मा का भी आसन है अर्थात भगवान ब्रह्मा इसी ब्रह्मकमल पर विराजते है। इतना ही नहीं ब्रह्मकलम माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती और ब्रह्मा का आसन है बल्कि यह भगवान विष्णु, माँ दुर्गा, माँ लक्ष्मी के हाथो में भी शोभा पाता है। यही कारण है कि इसकी गिनती सनातन धर्म में अति पवित्र फूलों में होती है।

ब्रह्म कमल एक बारहमासी पौधा है
ब्रह्म कमल एक बारहमासी पौधा है। ब्रह्म कमल मूलरूप से बर्फीली पहाड़ी पुष्प है। यह बर्फीली पहाड़ो के बीच स्थित घास के मैदानों और चट्टानों में स्वतः उग जाता है। अर्थात यह प्राकृतिक रूप से स्वतः उग जाता है न कि इसे लगाना पड़ता है, लेकिन हाल के वर्षो में लोगो के बीच इनकी बढ़ती मांग के कारण अब इसकी खेती भी आरम्भ हो गई है और ऐसी स्थिति में उन्हें वहां लगाया जाता है क्योंकि बढ़ते मांग के कारण इन्हे लोग ऊँची कीमत देकर भी खरीदना पसंद करते है। इसलिए अब ब्रह्मकमल की खेती व्यवसायिक रूप ले चुकी है। यानि ब्रह्मकमल अब बड़े पैमाने पर लोगो को रोजगार देने का भी काम कर रहा है। क्योकि देवी देवताओ को यह पुष्प अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यही कारण है कि बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे कई प्रसिद्ध देवस्थल पर भी इस दिव्य पुष्प को चढ़ाया जाता है और ऐसे में कई बार लोग हजार रूपये देकर भी एक पुष्प खरीदने को तैयार हो जाते है। इस प्रकार कह सकते है यह पौधा न केवल सुन्दर दिव्य है बल्कि बहुत ही कीमती भी है।

मुख्य रूप से ब्रह्म कमल उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में देखा जाता है
ब्रह्मकमल भारत के हिमाचल क्षेत्रो में पाएं जाने वाले पुष्प है और यदि स्थान की बात करें तो यह दिव्य पुष्प उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर जैसे हिमालयी क्षेत्र में ऊँचे पहाड़ो की चट्टानों व वहां उगे घासों में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी देखा गया है। हिमाचल वाले विभिन्न क्षेत्रो में जैसे हिमाचल के कुल्लू में, उत्तराखंड के पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ जैसे स्थानों पर यह बहुत अधिक संख्या में देखा जाता रहा है।
ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राजकीय पुष्प है
वैसे ब्रह्मकमल की लगभग 60 से ऊपर प्रजातियां है जिनमें केवल उत्तराखंड के विभिन्न स्थलों पर ही 50 प्रजातियां पाएं जाते है। अब यही कारण है कि ब्रह्मकमल को उत्तराखंड का राजकीय पुष्प घोषित किया गया है। यानि ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राजकीय पुष्प है। ज्यादातर ब्रह्म कमल उत्तराखंड के केदारनाथ, हेमकुंड साहिब और तुंगनाथ जिलों में पाया जाता है।

ब्रह्मकमल अप्रैल से लेकर नवंबर के बीच उगता है
ब्रह्मकमल 3 से लेकर 5 हजार मीटर की ऊंचाई वाले अत्यंत ठन्डे वातावरण में पाया जाता है। यह उस ठन्डे वातावरण में स्थित घास के मैदानों के बीच उगा होता है, जहाँ बहुत कम पेड़ पौधे होते है और वातावरण में ठण्ड ही ठण्ड होता है। ब्रह्मकमल उन ठन्डे वातावरण वाले पहाड़ो के बीच उगे हुए घासो में समूहों में या फिर कही कही एक-दो की संख्या में भी खिले हुए दिख जाया करते है। लेकिन कही कही तो इनकी संख्या हजारों में होती है जहाँ दूर दूर तक केवल ब्रह्मकमल ही ब्रह्मकमल दीखते है। चट्टानों के बीच घासों पर उगने वाले ब्रह्मकमल की लम्बाई प्रायः 5 से 10 सेमी की तक की होती है। यह अप्रैल से लेकर नवंबर के बीच उगता है। लेकिन जून से लेकर अक्टूबर तक इनकी संख्या चरम पर होती है।

हिमालय क्षेत्र में पाया जाने वाला दिव्य ब्रह्मकमल एक औषधीय पौधा भी है
अब अगर इसकी औषधीय गुणों की बात करें तो यह पौधा न केवल धार्मिक रूप से पवित्र है बल्कि यह कई बिमारियों को दूर करने में काम आता है अर्थात ब्रह्ममकल भारत का एक प्रमुख औषधीय पुष्प है। इसलिए इसे जड़ी बूटी की श्रेणी में रखा गया है जो लगभग मानसून में ठन्डे पहाड़ो में उग आते है। इन पौधों की मोटी घुमावदार जड़ों का उपयोग अंगों के पक्षाघात के लिए दवा के रूप में किया जाता है।
यह पौधा एंटी-इंफ्लेमेटरी है यानि ब्रह्मकमल का प्रयोग से सूजन और दर्द को दूर करने में होता है। इसके साथ ही यह एंटी-ऑक्सीडेंट भी है जो शरीर को मुक्त कणों के हानिकारक प्रभावों से बचाने में सहायता करता है। इतना ही नहीं ब्रह्म कमल इम्यून सिस्टम में भी सुधार करता है और शरीर को संक्रमण व बीमारियों से लड़ने में सहायता पहुँचाता है। इसके साथ ही यह श्वसन विकार, तंत्रिका तंत्र संबंधी विकार को भी दूर करता है।

यह डिप्रेशन यानि चिंता व तनाव जैसी विकट स्थितियों में भी सहायक साबित होता है। ब्रह्मकलम का प्रयोग सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी व मांसपेशी के दर्द में भी किया जाता है। इसके राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है। जले-कटे में इसका उपयोग किया जाता है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। साथ ही पुरानी खांसी भी ठीक होती है।

ब्रह्म कमल के पुष्प को घर के मुख्य द्वार पर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है व घर में सुख-समृद्धि आती है
ब्रह्म कमल सूख जाने पर भी उपयोगी है। ब्रह्म कमल के पुष्प को घर के मुख्य द्वार पर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है और घर में सुख-समृद्धि आती है। वास्तु शास्त्र में, ब्रह्म कमल के पौधे को घर में सौभाग्य और समृद्धि लाने वाला माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार ब्रह्म कमल के पौधे को घर के मध्य में लगाना चाहिए, जिसे ब्रह्मस्थान कहा जाता है। पवित्र पौधे को घर के बीच में रखने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है और सकारात्मक ऊर्जा आती है। इसको ड्राइंग रूम में भी लगाया जा सकता है।

वास्तु शास्त्र में ब्रह्म कमल के पौधे को घर में सौभाग्य और समृद्धि लाने वाला माना जाता है
साथ ही घर का उत्तर-पूर्वी कोने में भी इसे लगाया जा सकता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस कोने को "ईशान" कोना भी कहते है। ऐसे स्थानों पर ब्रह्मकमल के पौधे को लगाने पर विशेष फल मिलते है क्योकि यह सबसे शुभ दिशा भी मानी जाती है। घर के उत्तर-पूर्व कोने को पानी का तत्व भी माना जाता है और साथ ही धन व प्रचुरता का स्रोत भी माना जाता है। ब्रह्मकमल को इस कोने में रखने से सकारात्मक ऊर्जा आकर्षित होती है और घर में सदैव सुख व समृद्धि आती है।
ब्रह्मकमल का पुष्प अपने जीवनकाल में केवल एक रात्रि के लिए ही खिलता है
ब्रह्मकमल का पुष्प केवल रात्रि के प्रहर में ही खिलता है और सुबह होते होते यह पूरी तरह से मुरझा जाता है। पुष्प को खिलने में दो से तीन सप्ताह तक का समय लगता है। इस तरह से ब्रह्मकमल का पुष्प अपने जीवनकाल में केवल एक रात्रि के लिए ही खिलता है। लेकिन खिलने के बाद इस पुष्प से ऐसी दिव्य सुगंध निकलती है जो इसके दैवीय अस्तित्व पर मुहर लगाती है। वह सुगंध पूजा के समय जलांए जाने वाली धुप की भांति होती है, जिससे समूचा वातावरण दिव्य प्रभाव से भर जाता है।
ब्रह्मकमल के पौधे को घरो में भी लगाया जा सकता है

ब्रह्मकमल के पौधे को घरो में भी लगाया जा सकता है और लोग बड़े संख्या में इसे अपने घरो में लगा भी रहे है। इसे घरो में उद्यानों में या फिर गमलो में लगाया जाता है। लेकिन इसे लगाने में सावधानी रखने की आवश्यकता है। क्योकि यह साधारण पौधा या पुष्प नहीं है। एक तो इसका धार्मिक महत्व है दूसरे कि यह ठन्डे पहाड़ी क्षेत्रो में उगते है इसलिए घरो में इसे उगाने के लिए लगभग वैसा ही वातावरण देना पड़ता है।

यदि गमलो में इसे लगाना है तो इसमें पानी बहुत कम देना चाहिए। इसमें पानी तब डालना चाहिए जब मिट्टी पूरी तरह से सुख जाएँ क्योकि इस पौधे को दूसरे पौधे की भांति अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। अधिक पानी देने से इसके जड़ सड़ जाते है। चूँकि यह कैक्टस प्रजाति का पेड़ है इसलिए इसके पत्तो में पानी संग्रहित होता है और यही कारण है इस पेड़ को लगाने के बाद इसको सही वातावरण में रखना होता है। सही वातावरण के साथ ही इसकी उचित देख रेख भी करना होता है। नहीं तो यह पौधा या तो मर जाता है या फिर इसमें पुष्प देर से खिलते है।
ठंडी प्रकृति में उगने वाले ब्रह्म कमल को घर में लगाने पर अधिक कड़ी धुप से बचाना चाहिए
चूँकि यह ठंडी प्रकृति में उगता है इसलिए इसे अधिक कड़ी धुप से बचाना चाहिए अन्यथा इसके पत्ते जल जाते है और ब्रह्मकमल पत्तो का पौधा है। क्योकि इसके पत्तो से पुष्प व अन्य पत्ते निकलते है इसलिए इसके पत्तो पर उचित देखभाल किये बिना ब्रह्मकमल का घर में खिलाना कठिन है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इसे धुप नहीं चाहिए। ब्रह्मकमल को हल्की धुप की भी आवश्यकता होती है क्योकि पहाड़ो में यह तब उगता है जब वहां के वातावरण में गर्मी आ जाती है और सदी के आते ही इसमें पुष्प आना बंद हो जाता है इसलिए इस पौधे को हल्की धुप की भी आवश्यकता होती है। साथ ही इसको तेज हवाओ से या आंधी तूफान, मूसलाधार बारिश आदि से भी बचाना चाहिए क्योकि इससे इसके नाजुक पत्तो के टूटने का डर होता है। इस पौधे की उचित वृद्धि एवं बीमारी आदि से देखभाल पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके लिए इसमें उर्वरक व खाद प्रत्येक महीने में एक बार अवश्य देना चाहिए। यदि किसी पत्ते का कुछ भाग जल गया है तो उसे काट कर हटा देना चाहिए।
घर में ब्रह्म कमल को पवित्र व स्वच्छ स्थान पर लगाना चाहिए
इसके साथ ही चूँकि यह पौधा एक पवित्र पौधा है और इस पौधे की व इसके पुष्प की पूजा भी होती है इसलिए इसको जहाँ भी लगाया जाएँ वह स्थान पवित्र हो और यदि यह गमलो में लगाया जा रहा है तो वह गमला स्वच्छ स्थान पर रखा होना चाहिए।
ब्रह्मकमल को घर में कैसे लगाते है
घर के गमलों में या उद्यानों में ब्रह्मकमल को बड़े ही आसानी से लगाया जा सकता है, केवल इसके लिए थोड़े विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। ब्रह्मकमल के पत्ते को मिट्टी में लगा दिया जाता है। इस पौधे के लिए मिट्टी बलुआही अर्थात बालू या रेत मिली होनी चाहिए। उसी बलुआही मिट्टी में पत्तो को लगा दिया जाता है जिसके के बाद उसी से दूसरे पत्ते और पुष्प की कली निकल आती है।

ब्रह्मकमल में फूल और पत्ते कैसे आते है
ब्रह्मकमल के पत्ते से ही दूसरे पत्ते व फूल की कली निकलती है। पत्तो से निकली कली ही कुछ दिन बाद पुष्प बनकर खिलते है।

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