
आश्विन की नवरात्रि यानि दुर्गा पूजा से पहले का समय पितरो के लिए निर्धारित है। उसे पितर पक्ष नाम दिया गया है। उस समय पितरो के श्राद्ध किये जाते है। उस समय लोग अपने परिवार के गुजरे सदस्यों की प्रेतात्मा की शांति के लिए पूजन करते है। यह ठीक नवरात्री से पहले होता है। वो समय शुभ नहीं कहलाता है।
क्या भूत प्रेत और पितर एक ही है या इनमें अंतर है?
कई लोग भूत प्रेत और पितर को एक ही समझ बैठते है जबकि इनमें अंतर है। इस अंतर को समझने के लिए मैं एक उदाहरण देती हूँ। मान लिया जाये दोनों ही सर्प है, तो भूत प्रेत वैसा सर्प है, जो स्वत्रंत विचरण कर रहा है जबकि पितर वो सर्प है जो पिटारा में बंदी बना हुआ है।
पितर होते है सबकी पहुंच के बाहर!
इस अवधि में पितरो को दुनिया का कोई भी बड़ा से बड़ा तांत्रिक पता नहीं लगा सकता है। वो सबकी पहुंच से बाहर होता है। इसी धारणा को राजीव सिन्हा ने अपनी कहानी "वह कहाँ गई" में कल्पित किया है। कहानी काल्पनिक है। मगर स्थिति वैसी ही होती है। पितर किसी को देख तो सकता है मगर वह न तो वो किसी की हानि पहुंचा सकता है और न ही लाभ। दूर से देखकर वो कभी दुखी होता है तो कभी खुश होता है। इसलिए उसकी शांति के लिए गया में पिंड दान का प्रचलन है।
क्या पितर देवतुल्य होते हैं?
कुछ लोग पितर को देव-देवी मान बैठते है जबकि ऐसा भी नहीं है। पितर को कुल देवता व कुल देवी नहीं कहा जाता है। दोनों में जमीन आसमान का अन्तर है। पितर एक तड़पती हुई प्रेतात्मा है जबकि कुल देवता व कुल देवी में शामिल पूर्वज ईश्वरीय शक्तियों के समीप होते है। इसलिए दोनों में कोई समानता नहीं है। कई बार देखा गया है कि एक ही देवी या देवता कई परिवारों के कुल देव या कुल देवी हुआ करते है। जबकि आम लोग उनके नाम से भी परिचित नहीं होते है। लेकिन जिनके घरो के या जिनके कुल के ये देवी - देवता होते है उन्हें उनका सम्मान के साथ पूजन करना चाहिए। सनातन धर्म में कुल देवताओ और कुल देवी के पूजन का विधान है। इसलिए यदि जीवन में परेशानियों का दौर चल रहा हो तो माँ दुर्गा या ईश्वर की आराधना के साथ ही पितरो की शांति का भी उपाय करें।
पितृ पक्ष में साधारण विधि से पितरों का पूजन कैसे करें?
पितृ पक्ष में साधारण विधि से भी पितरों का पूजन किया जा सकता है। इसके लिए स्नान के बाद उन्हें आह्वान करके उन्हें जल देना चाहिए। वही जल चढ़ाना चाहिए, जो हम रोज अपने पीने के लिए प्रयोग में लाते है। पितरो को गंगा जल चढाने का विधान नहीं है क्योकि वह कोई देव या देवी नहीं है। गंगा जल केवल दैवीय शक्तियों को ही अर्पित किया जाता है या फिर किसी मरते हुए जीव के मुँह में डाला जाता है। यहाँ जीव का अर्थ केवल मानव ही नहीं है बल्कि अन्य सभी जीव जंतु भी इनमें शामिल है। ईश्वर के लिए सभी बराबर है। उनके लिए सभी प्रिय है। आत्मा गमनशील है। यह शरीर पे शरीर बदलती रहती है, इसलिए सभी जीव आदर के योग्य है।
स्नान के बाद ज्ञात - अज्ञात पितरों का अपने नाम के साथ आह्वान करके उन्हें जल देना चाहिए !
स्नान के बाद उनका आह्वान करके उनका पूजन करना चाहिए और बाद में उसी समय देवी दुर्गा का भी आह्वान करना चाहिए। देवी दुर्गा का आह्वान करके उनसे अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए क्योकि पितर वे आत्मा होते है जिनका जन्म अभी नहीं हुआ होता है। वैसी स्थिति में वे पितर लोक में रहते है। इसलिए परिवार के सदस्यों का धर्म बनता है कि उनकी आत्मा की शांति के लिए वे देवी से प्रार्थना करें।
वर्ष 2023 का पितर पक्ष कब से कब तक?
वर्ष 2023 का पितर पक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक है। 14 अक्टूबर को महालया है। पितृ पक्ष की अंतिम तिथि को महालया पर्व मनाया जाता है। यह पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है। इसे महालया अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सभी ज्ञात - अज्ञात पितरों के पूजन का विधान है। इसी दिन सूर्यास्त से पहले पितर अपने लोक गमन कर जाते है। जाते हुए वे अपने परिवार और कुल के सदस्यों के जीवन शैली व पूजन को देखकर आशीर्वाद दे जाते है। इसलिए पितरों के पूजन का विधान है, ताकि वे अपने लोक जाने से पहले अपने कुल, परिवार के सदस्यों को अपना आशीर्वाद दे जाएं।
वर्ष 2023 का पितर पक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक है!
महालया के साथ ही जहां एक ओर श्राद्ध के दिन समाप्त हो जाते हैं तो वहीं इसी संध्या को मां दुर्गा का धरती पर आगमन हो जाता है। धरती पर माँ दुर्गा के आगमन के साथ ही अगली सुबह में कलश की स्थापना होती है।
पितर पक्ष के समाप्त होते ही अगली सुबह से देवी पक्ष आरम्भ हो जाता है!
15 अक्टूबर 2023 से आश्विन की नवरात्रि आरम्भ है। इसी दिन से देवी पक्ष आरम्भ हो जाएगा। इसके साथ ही पवित्र शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जायेगा जो अगले 10 दिनों तक चलेगा।
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