Real Horror Story In Hindi - एक थी स्वाति

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Real Horror Story In Hindi - एक थी स्वाति

"Ek Thi Swati......!!" - Horror and Suspense Story


उस शाम को दिल्ली में बहुत तेज बारिश हो रही थी। दिल्ली की कई सड़के ऊपर तक पानी से भर गए थे। मैं उस शाम जल्दी घर लौट आई थी । ना जाने क्यों उस दिन मेरा मन बहुत भारी भारी सा लग रहा था। बदन टूटा जा रहा था। शायद मेरी तबीयत खराब हो रही थी।


घर के गेट पर आकर मैने जैसे ही कार की हॉर्न बजाई। तभी गार्ड गेट को ऐसे खोला मानो वह मेरे लौटने का ही इंतजार कर रहा था। तेज बारिश में ही भीगते हूए उसने गेट खोल दिया था। गेट खुलते ही मै अपनी कार को घर के साथ लगे पार्किंग की ओर लें गई।


पार्किंग में गाड़ी खड़ी करके जैसे ही मैं कार से बाहर आई मेरी नजर कोमल पर पड़ी। वह घर के दरवाजे पर मुस्कुरा कर मेरा स्वागत कर रही थी। मैं भी कोमल को देखकर मुस्कुराई।


तभी मेरी नजर मेन गेट के पास बनें गार्ड केविन के अंदर खड़े गार्ड पर गई। तेज बारिश में गेट खोलने के कारण वह पूरी तरह से भींग चुका था और इस कारण अब वह तौलिये से अपना सिर को पोंछ रहा था।


मैने हाथ के इशारे से उसे अपने पास बुलाया। क्योंकि बारिश की तेज आवाज की वजह से मेरी पतली सी आवाज दूर स्थित गार्ड केविन तक नही पहुँच पाती। वह छाता लेकर भागा भागा मेरे पास आया।


"जी मैडम!"


"देखिए तो, आप कितना भींग गए हैं! छाता लेकर क्यूँ नही गेट खोला आपने?"


"मैडम! आप आएँ थे न! इसलिए जल्दबाजी थी। छाता खोलने में देर हो जाती न!"


"थोड़ी देर हो ही जाती तो क्या हो जाता! मैं कौन सी बारिश में भींग रही थी! मैं तो कार के अंदर थी…….लेकिन आप तो पानी में भींग गए ना! तबीयत कही खराब हो गई तब, क्या करेंगे आप! बताइये तो?


"मैडम…...!" गार्ड आश्चर्य से मेरी ओर देख रहा था, "ये….ये आप कह रहे हैं, मुझे तो अपने कानो पर विश्वास ही नही हो रहा हैं! ऐसी बातें तो कोई परिवार का अपना सदस्य ही बोलता हैं! आप तो मालकिन हैं। मैं तो आपकी ही ड्यूटी करता हूँ।"


"तो क्या हुआ?"


"मैडम! एक साहब ने मुझे इसलिए अपनी कोठी से हटवा दिया था क्योंकि तब इसी तरह की तेज बारिश में गेट खोलने से पहले मैं छाता खोलने लग गया था। जबकि आपकी तरह वो भी कार में ही थे! फिर भी मेरी शिकायत सिक्युरिटी ऑफीसर से करके मुझे हटवा दिया।"


Real Horror Story In Hindi


"सब इन्सान एक समान नही होते हैं!"


"आप सचमुच देवी हैं मैडम! सचमुच देवी!"


"अच्छा! पंकज भैया! आप चाय पीकर ही केविन में जाईयेगा। ठीक हैं! मैने आपको इसलिए बुलाई थी। और हाँ, मैं आपके लिए कुछ नाश्ते भी लाती हूँ! बैठिए यहॉ!"


गार्ड ने फिर एक बार कृतज्ञता भरी नजरो से मेरी ओर देखा। मैने गार्ड को कमरे में बैठने को कहकर कोमल को साथ लेकर किचन की तरफ बढ़ गई।


"कोमल! आज हम अदरक वाली कड़क चाय बनाएंगे! शरीर में बहुत दर्द हो रहा हैं।"


"अरे दीदी! आपको तो हाई फीवर हैं! " कोमल ने मेरे हाथों को और सिर को छूते हूए बोली, "आप जाईये ऊपर! और वैसे भी आप क्यों चाय बनाएंगी! क्या मैं मर गई हूँ! अपनी छोटी बहन के रहते आप चाय क्यों बनाएंगी भला?"


"ठीक हैं, मेरी प्यारी कोमल बहना! मैं जाती हूँ। लेकिन हाँ, चाय कड़क अदरक वाली बनाना! तीन कप ! एक मेरे लिए, एक तुम अपने लिए और एक पंकज भैया (गार्ड) के लिए….और हाँ, पंकज भैया को कुछ नाश्ते भी दें देना।"


"और दीदी आपके लिए?"


"केवल चाय। आज मेरी तबीयत भी कुछ भारी भारी सी लग रही हैं!"


"आप चिंता मत कीजिए दीदी! आप ऊपर जाकर आराम कीजिए! मैं अभी आपके लिए फीवर और बदन दर्द की मेडिसन लेकर आती हूँ और अब से हर घंटे देर रात तक आपको अदरक वाली कड़क चाय बना बना कर पिलाउगी। फिर देखती हूँ, कैसे आपकी तबीयत ठीक नही होती हैं!"


फर्स्ट फ्लोर पर आकर मैं ड्रेस चेंज करने लगी। उस बड़े से बंगले में मैं और कोमल के अलावा केवल पापा ही थे! मगर पापा का ज्यादा समय विदेश में या आउट ऑफ दिल्ली ही गुजरता था! बिजनेस के लिए उन्हें प्रायः बाहर बाहर ही रहना पड़ता था! इसलिए उस बड़े से घर में मैं और कोमल ही स्थायी बाशिंदे थे। मेरी सुरक्षा और घर की देखभाल के लिए दो शिफ्ट में दो अलग अलग सिक्युरिटी गार्ड्स लगे थे।


ड्रेस चेंज करके मैं अपनी दूर तक फैली बालकोनी में आ गई। बारिश अब पहले से कम गई थी लेकिन मेरे मन के अंदर के दुःख की बारिश अब भी उतनी ही तेज थी। मैने बालकोनी में खड़े खड़े ही मुड़कर अपने घर की ओर देखा। बिल्कुल वीरानी छाई हुई थी हर ओर! बाहर से रिच कहलाने वाली अंदर से कितनी दरिद्र लड़की थी मैं! इसका एहसास मुझे बचपन से लेकर अब तक होता रहा था।



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छः साल की उम्र में ही अपनी माँ और तीन साल की इकलौती छोटी बहन स्वाति के उस निर्मम दरिंदगी के शिकार होने का गम मैं कभी नही भूल पाई। बचपन में ही मैने उस घर को वीरान होते देखा था। पापा चाहते तो दूसरी शादी कर सकते थे, मगर उन्होने मेरे लिए ऐसा नही किया क्योंकि वे जानते थे की सौतेली माँ को मैं नही झेल पाती।


दूसरी ओर उन्हें अपनी पत्नी यानि मेरी मम्मा से बहुत बहुत प्यार था! वे दूसरी शादी नही करके मेरी माँ को सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते थे और उन्होने वही किया। वे मम्मा के गुजरने के बाद भी उन्हें और मेरी छोटी बहन स्वाति को कभी नही भूल पाए! आज भी मैं उन्हें अकेले में रोते हूए देखती हूँ। मम्मा के जाने के बाद वे लगभग वैरागी जीवन जीने लगे और फिर तब से लेकर आज तक वे किसी स्त्री को उस तरह के रिश्ते से अपने करीब नही आने दिया।


मेरी देखभाल के लिए उन्होने एक लेडी नर्स को रख दिया था। हालाकि माँ का अपनापन देने के लिए आई हुई वो नर्स भले ही मुझे कभी भी अपनापन नही दिया हो मगर पापा ने उस नर्स को हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह ही अपनापन दिया!


बचपन में अक्सर मैं रात को माँ और अपनी छुटकी बहन को याद करके रोने लगती थी और फिर लगातार रोते रोते बिना खाना खाए ही ना जाने कब सो जाती, इसका एहसास मुझे देर रात भूख की वजह से नींद टूटने पर ही होता। आधी रात को नींद टूटने पर मैं स्वंय ही किचन जाकर खाना ढूंढ़ने लगती! फिर जो बचा खुचा खाना होता, वही खा लिया करती थी!


कभी कभी जब किचन में बचा खुचा खाना भी नही मिलता तब ड्राय फूड खाकर सो जाती! और कभी कभी तो ऐसा भी होता जब ना खाना मिलता और ना ही ड्राय फूड ही मिलता, तब मैं माँ दुर्गा का नाम लेकर भूखी ही सो जाया करती थी।


थोड़ी बड़ी होने पर मैं चाय बनाना सीख गई थी। फिर तो देर रात को भूख की वजह से नींद टूटते ही मैं अक्सर चाय बना कर पी लिया करती थी! इससे मेरा रात भर का काम चल जाया करता था।


माँ का वियोग के साथ साथ कई अन्य पीड़ा ने मुझे बचपन से ही गहरे आध्यात्म की ओर प्रेरित कर दिया था और मैं माँ दुर्गा, माँ काली को ही अपनी माँ जैसी मानने लगी थी! जिस उम्र में बच्चियां खेलने में आनन्द महसूस करती हैं उस उम्र में मैं माँ दुर्गा, माँ काली की साधना में आनन्द महसूस करने लगी थी।



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मैं बचपन से ही बहुत संकोची, कम बोलने वाली लेकिन बहुत दयालु लड़की थी। मुझे अपने से ज्यादा दूसरों का दुःख बहुत परेशान कर देता हैं और मैं उनकी पीड़ा दूर करने के लिए हरसंभव कोशिश करती हूँ।


तभी तो, जिस नर्स ने कभी मुजे माँ का प्यार नही दिया उसके अचानक से मर जाने के बाद उसकी अनाथ हुई दस वर्ष की इकलौती बेटी कोमल को मैने पापा से कहकर अपने पास रख लिया, अपनी छोटी बहन बनाकर और उसे हर वो अधिकार दिलवाया जो एक बहन को मिलना चाहिए। क्योंकि कोमल का इस दुनियां में उसकी माँ के अलावे और कोई भी नही था! उसकी वो माँ मर चुकी थी जिसने कभी भी मेरी आँसुओं की परवाह नही की थी।


मैं अभी पुरानी यादो में खोई ही हुई थी की तभी कोमल मुस्कुराते हूए मेरे लिए और अपने लिए हाथ में चाय लेकर मेरे नजदीक आ गई!


"चाय दीदी! चाय! गरम गरम अदरक वाली कड़क चाय! दिल्ली की सुपर स्पेशल टी!"


मैं कोमल के हाथ से चाय लेकर पीने लगी। तभी मेरे मोबाईल में वाईब्रेंशन मुझे महसूस हुआ। मैने अपनी जींस की पाकेट से अपना फोन निकाला। फोन मेरी फ्रेंड रिया का था।


तभी मुजे याद आया रिया की बड़ी बहन की शादी अगले सप्ताह हैं और उसने पंद्रह दिन पहले ही मुजे बता दी थी की उसने अपने साथ साथ मेरा भी पटना के लिए फ्लाइट का टिकट बुक कर लिया हैं और उसने कहा था की मुझे हर हाल में उसके साथ उसकी दीदी की शादी में जाना हैं!


"रूबी! याद हैं ना! हमारी कल की फ्लाइट हैं!" फोन रिसीव करते ही उधर से मुझे रिया की आवाज सुनाई दी।


"हाँ, याद हैं!" मैं थोड़ा लड़खड़ाते हूए बोली! क्योंकि मैं सचमुच भूल गई थी! लेकिन ये बात मैने उसे नही बताई! उसे दुःख होता!


"ठीक हैं! तुम आज नाइट को ही अपना समान पैक कर लो! कल मैं तुम्हे लेने तुम्हारे घर पर ही आ जाऊँगी!" रिया ने मुझसे कहा।


"ठीक हैं!" मैने रिया से कहा।



***********



एक सच्ची घटना:


अगले दिन मैं रिया के साथ पटना पहुँच गई थी। पटना एयरपोर्ट पर उसके आदमी पहले से ही हमारे स्वागत के लिए चार चार गाड़ी लेकर आएँ हूए थे! हमदोनों उसकी विशेष कार में बैठकर पटना से एक सौ सत्तर किलोमीटर दूर उसके शहर आ गए!


शहर अच्छा था। ऐतिहासिक था! धार्मिक था! प्राकृतिक सुंदरता तो वहा देखते ही बन रही थी। वहा पहाड़ हैं, नदी हैं। गर्म पानी के कई प्राकृतिक कुंड हैं। गंगा तट पर बसा मुंगेर बिहार का एक कमिश्नरी सिटी हैं! कमिश्नरी सिटी होने के कारण वहा कमिश्नर, डी आई जी का भी ऑफीस हैं। छोटे बड़े कई उद्योग धंधे वहा स्थापित हैं! गंगा नदी पर रेल और सड़क पुल भी बना हुआ हैं।


वह रमणीय शहर योग नगरी के नाम से भी देश विदेश में विख्यात हैं। विश्व का प्रथम योग विश्वविद्यालय स्थापित करने का इकलौता गौरव उसे प्राप्त हैं! वहा कई दशकों से देश विदेश से लोग योग सीखने, कोर्स करने के लिए आते रहे हैं! मैं भी कई विदेशियों से मिली। आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, अमरीका से कई विदेशी, जो ना हिंदू हैं और जो ना हिन्दी जानते हैं, जो अंग्रेज हैं, जो ईशाई हैं, वे भी बड़े जतन से वहा रहकर योग सीखते हैं। विश्वविद्यालय में अंग्रेजी और हिन्दी दोनो भाषाओ का प्रचलन हैं।


इधर रिया के यहां शादी के पूर्व होने वाला समारोह आरंभ हो चुका था। शादी के गीतो ने सचमुच कुछ समय के लिए मुझे भी स्वप्न लोक में लें गया था। मैं सोच रही थी, 'काश! मेरी भी माँ होती तो वो भी मेरे लिए ऐसे ही सपने देखती! मगर खैर, जो नही हैं उसे सोच कर क्या लाभ!'


रिया मेरे स्वभाव से परिचित थी, की मैं एकांतप्रिय लड़की हूँ। इसलिए उसने रात को मेरे सोने का विशेष प्रबंध की थी। वह अपने घर से कुछ दूर एक खाली पड़े बंगले की चाभियों का गुच्छा लेकर आ गई।


"ये क्या हैं, रिया?"


"सोने चलते हैं, रात हो गई, रुबी!"


"लेकिन कहा चलेंगे?"


"पास ही कुछ दूर एक आंटी की खाली पड़ा बँगला हैं। वहा चलोगी तो तुम्हे बहुत अच्छा लगेगा! बहुत शांति हैं वहा।"


"अच्छा!"


"और बँगला भी बहुत शानदार हैं, तुम्हारे दिल्ली वाले बंगले से ये बहुत कम नही हैं!"


"कोई बात नही! तुम्हे जहॉ सही लगे, वहा चलो!"


रिया मुझे साथ लेकर कार की ओर बढ़ने लगी।


"ये क्या रिया, वह बँगला दूर हैं क्या यहां से? "


"नही पास ही हैं! मगर मैं चाहती हूँ मेरे कोमल सी फ्रेंड रुबी को थोड़ा सा भी पैदल ना चलना पड़े।"


"ठीक हैं! जैसी तुम्हारी मर्जी!"


"तुम उधर बैठो! मुझे गाड़ी चलाने दो! आखिर शहर मेरा हैं और तुम मेरी गेस्ट हो!"


"ठीक हैं! जैसी तुम्हारी मर्जी!"


वह घर सचमुच बहुत नजदीक ही था। उस समय रिया की उस पागलपन पर मुझे चिढ़ भी आई और हँसी भी। खैर हम एक आलीशान बंगले के बड़े से गेट पर खड़े थे। गेट पर बड़ा सा ताला लगा हुआ था।


रिया ने आगे बढ़कर ताला खोला और ताला खोलकर गेट का एक तरफ का हिस्सा खोलने लगी। रिया का सहयोग करने के लिए मैं भी आगे बढ़कर गेट का दूसरा भाग खोल दी। क्योंकि हमे कार अंदर लें जानी थी। लेकिन गेट इतना बड़ा था की उसमे एक क्या तीन कारे एक साथ जा सकते थे।


***********



अब बंगले के अंदर हमदोनों आ चुके थे। बंगला सचमुच बहुत भव्य था। नीचे हर ओर लाइट्स जल रही थी। वह तीन मंजिला ईमारत बहुत दूर तक फैला था। एक ओर बड़ा सा गैरेज था। गैरेज इतना बड़ा था की उसमे एक साथ पाँच से छः कार आ जाए।


बंगले का मेन गेट तो पूर्व दिशा की ओर था मगर उस बहुमंजिली ईमारत का मुख्य भाग दक्षिण दिशा की ओर था।


उस सुनसान रात में रोशनी की जगमगाहट में वह ऊपर से नीचे तक वीरान पड़ा बँगला जहॉ एक ओर बहुत रहस्यमय लग रहा था वही कमजोर हृदय वालो के लिए कोई भयानक भूतिया, अभिशप्त स्थल जैसा भी लग रहा था।



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सामने दूर तक फैले बगीचे और उसमे उगे पेड़ पौधे दिन में भले ही मनभावन लगते होंगे मगर रात के उस सन्नाटे में वह बगीचा और उसमे उगे पेड़ पौधे उसकी भयानकता को कई गुणा बढ़ा रही थी। उस समय उस बड़े से वीरान बंगले में बस हम दो लड़कियाँ ही थे और अंदर से गेट में ताला लगा हुआ था।


"क्या हुआ रुबी? कैसा लगा बंगला?" रिया मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हूए बोली।


उस समय मेरे स्थान पर यदि कोई दूसरी लड़की होती तो वह रिया से यदि झगड़ा नही तो कम से कम नाराज जरूर हो जाती! लेकिन मैने ऐसी कोई हरकत नही की। क्योंकि रिया मुझे जानती थी की मैं कैसी लड़की हूँ, इसलिए शायद उसने मेरे रात को रुकने के लिए ऐसी शांत जगह चुना था। शायद यही बहाने उस बंगले का कुछ अच्छा होने वाला था!


"अच्छा हैं! बहुत अच्छा हैं! बहुत कुछ बता रहा हैं यह बँगला मुझसे।"


"थैंक गॉड! तुम्हे अच्छा लगा!" वह नीचे के कमरे का ताला खोलते हूए बोली!


हमदोनों रूम के अंदर आकर उसका मुआयना करने लगे। रूम भी भव्य था। वहा आराम से सोने लायक सभी स्टेंडर्ड लेवल के अरेंज्मेंट्स थे।


रूम देखकर मैं फिर एक बार बाहर आकर बंगले का मुआयना करने लगी। रिया ने मुझे बताया की बंगला तीन फ्लोर का हैं। बंगले में ऊपर जाने के लिए दो अलग अलग जगह से दो सीढ़ियॉ हैं और इस समय उसके पास फर्स्ट फ्लोर और एक सीढ़ी सहित थर्ड फ्लोर की चाभियाँ भी मौजूद हैं सिवाय सेकेन्ड फ्लोर के। उसने बताया सेकेन्ड फ्लोर पर घर के मालिक का सामान हैं। जो परिवार सहित दूर एक किराए के मकान में रह रहे हैं।


"यह इमारत कब की बनी हैं और फिर मकान मालिक इसमे क्यूँ नही रहते हैं?" मैने रिया से पूछा। क्योंकि मुझे यह सुनकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था की इतना भव्य ईमारत बनाकर भी कोई इन्सान भला उसी शहर में किराए के मकान में क्यों रह रहा हैं।


"इसके बने हूए तो पाँच वर्ष ही हूए हैं। मगर सुना हैं यह जब से बना हैं तब से ऐसे ही वीरान पड़ा हैं। वैसे यहां अंकल आँटी के सामान पड़े हैं। अंकल हमेशा यहां देखभाल करने आते जाते रहते हैं मगर वे परिवार सहित स्थायी रूप से यहां नही रहते हैं। कारण कुछ भी हो! लेकिन एक बात तो आस पास के लोग भी मानते हैं की यह बँगला बनने के समय से ही अभिशप्त हैं!"


तभी रिया को घर से फोन आ गया। रिया फोन पर बातें करने लगी और मैं घूमते घूमते बंगलें के सबसे ऊपर जाने वाली सीढ़ी के बाहर लगी ग्रिल के पास आ गई।


मैं वहा कुछ देख रही थी।


"रूबी…..रूबी…..रूबी.......! तुम कहाँ हो?" अचानक से रिया की आती आवाज से मैं चौक गई, "मैं यहां हूँ रिया!"


"ओह अच्छा! तुम यहां सीढ़ी के पास हो। मैं तो डर ही गई थी की तुम अचानक से बिना बताए कहाँ चली गई! मैं तो समझी की ये बिल्कुल हॉरर मूवीज वाली बात हो गई, जब उनकी हीरोइने ऐसी ही हांटेड प्लेस पर अचानक से लापता हो जाती हैं और फिर हीरो उसकी तलाश करता करता उसे बचाने के लिए भागता हैं।" रिया मेरे करीब आते हूए मुझसे हँसकर बोली।


"यह फिल्म हीरो विहीन हैं, रिया! यहां कोई हीरो वीरों नही हैं। यहां केवल हीरोइन ही हीरोइन हैं।"


"मैं हूँ ना, तुम्हारा हीरो।" रिया मुझे गले लगाकर किस करते हूए बोली, "आई लव यूँ डार्लिग!"


"चल हट! बड़ी आई हैं मेरा हीरो बनने वाली।" मै रिया को अपने आप से अलग करते हूए बोली।


"अच्छा रुबी! कोई था क्या यहां?"


"क्यों ?"


"ना जाने, मुझे ऐसा क्यों लगा की तुम यहां किसी से बात कर रही थी!"


"नही.....नही......कोई नही थी यहां!"


"थी......? तुमने थी क्यों कहा? मैने तो 'था' कहा था ! मुझे लगता हैं ग्रिल के अंदर सीढ़ी पर तुम्हे कोई लड़की दिख गई थी!" रिया बार बार भयभीत होकर बंद सीढ़ी की ओर देख रही थी।


"मैने तुमसे कहा ना रिया! यहां कोई नही थी..........चलो उधर!" मैने रिया को दूसरी ओर लें जाते हूए कहा।


"अच्छा! चलो रुबी अब घर चलते हैं! हमलोग यहां नही रहेंगे।"


"क्यूँ! क्या हुआ यहां! ठीक तो हैं यहां सबकुछ! कितनी शांति हैं यहॉ!"


"यही तो समस्या हैं रुबी, की यहां जरूरत से कुछ ज्यादा ही शांति छायी हुई हैं!"


"तो क्या तुम्हे डर लग रहा हैं, रिया यहॉ?"


"नही रुबी! मुझे क्यों डर लगने लगा! और वैसे भी मैं अकेली कहा हूँ यहॉ, तुम हो ना मेरे साथ!"


"तुम जाओ रिया! आज मुझे यही रहने दो!"


"ये तुम क्या कह रही हो रुबी…...?"


"हाँ! ठीक ही तो कह रही हूँ मैं! आज की रात मैं यही रहूँगी!" मैने रिया से कहा।


"तुम होश में तो हो रूबी डार्लिग! मैं तुम्हे इस बड़े से वीरान बंगले में अकेले छोड़ कर चली जाऊ? तुम्हे मालूम हैं यह बिल्डिंग अभिशप्त हैं। यहॉ साहसी से साहसी मर्द भी रात के इस सन्नाटे में अकेले नही रहते हैं ! फिर तुम तो लड़की हो और वो भी दिल्ली से आयी हुई इतनी ब्यूटीफुल कमसिन हसीना.....कही ऐसा ना हो की यहॉ के भूतो को भी तुम पर दिल आ जाए।..........कई जिंदा लड़को को तो तुमने दिल्ली में दिल का मरीज बना बना कर अस्पताल भिजवा ही दिया हैं। कम से कम यहां के इन बेचारे भूतो को तो छोड़ दो, रुबी। प्लीज......! उन्हें तो शांति से जीने दो, रुबी! क्यों उनके दिल में आग लगाना चाह रही हो?"


"मैने किसी को दिल का रोगी नही बनाया हैं। अपने मन से जिसको बनना हैं, बनें ! मैं क्या कर सकती हूँ इसके लिए !" मैने रिया से कहा!


"मैं तो इसलिए कह रही हूँ रुबी, की तुम्हारे आने से यहॉ के भूतो के दिलो की धड़कने तेज हो गई होगी! बेचारे भूतो का कही हार्ट फेल ना हो जाए!"


"अच्छा! जो मर गए हैं वे फिर मरेंगे?" रिया की बातों से मुझे हँसी आ रही थी, "तुम भी ना रिया! किसी कॉमेडियन से कम नही हो!"


"इन बेचारे भूतो पर तो दया करो मेरी जान, रुबी। क्या मिलेगा तुम्हे रूबी, इन बेचारे भूतो की जिन्दगी बर्बाद करके? और तुम्हे मालूम हैं, फिर क्या होगा! मैं बतलाती हूँ! ये भी तुम्हारे आशिक बनकर तुम्हारे साथ दिल्ली तक चले जाएंगे और फिर वही सॉंग गाएंगे…...बड़ा पछताओगे…..बड़ा पछताओगे…….! फिर बताओ रुबी तुम ऐसे भूतबा आशिक से कैसे जान बचाओगी, बोलो रूबी, कैसे जान छुड़ाओगी!" रिया ने एक्टिंग के साथ गाना गा गा कर मुझे हँसाते हँसाते परेशान कर दी।


रिया मेरा हाथ पकड़कर आगे बढ़ते हूए मुझे बच्ची की भाँति बहलाते हूए बोली, "चलो अब घर चलते हैं! वही मस्ती करेंगे। खूब मजा आएगा।"


"रिया! मुझे आज की रात यही रहने दो ना प्लीज!"


"देखो रुबी! हमलोग दिल्ली से यहां शादी में आएँ हैं। इस भूतिया बंगले में इन मरे हूए भूतो के साथ रात बिताने नही।"


"ये तुम कह रही हो रिया! तुम्ही तो लायी थी मुजे यहॉ इन मरे हूए भूतो के बीच।"


"हाँ रुबी! मैं इस बात से कहा इनकार कर रही हूँ …….रुबी! दरअसल माँ की अभी कॉल आयी थी। उन्होने बुलाया हैं हमदोनों को। उनका कहना हैं एक बहन की शादी की गीतो में दूसरी बहन को रहना चाहिए और इसलिए तो हमदोनों दिल्ली से यहां आएँ हैं। क्या होगा रुबी यदि थोड़ी शोर गुल बर्दाश्त कर ही लेंगे तो! शादी रोज रोज थोड़ी होती हैं! और देखो ना, वैसे भी हमलोग तो लड़कियाँ हैं, हमे तो ये सब सीखना ही चाहिए। हमलोग लड़के तो नही हैं ना, जो इन गीतो से दूर भागेंगे और हमे ऐसा करना भी नही चाहिए कल होकर हमे भी तो इन परंपराओ को आगे बढ़ाना हैं।"


"तुम जाओ रिया! तुम्हे परंपरा निभाना हैं! क्योंकि तुम्हारा परिवार हैं। तुम्हारे सब अपने हैं। मेरा कौन हैं इस दुनिया में? मुझे कौन सी बहन के लिए गीत गाना हैं?"


"रुबी! मैं तुम्हारे मन की पीड़ा समझती हूँ। तुम बहुत अकेलापन महसूस करती हो! बाहर से भले ही तुम हँसती मुस्कुराती लड़की हो लेकिन अंदर से तुम टूट चुकी हो। लेकिन मैं फिर कह देती हूँ तुम अपने आपको कभी अकेली मत समझना । जब तक तुम्हारी ये बहन 'रिया' इस दुनियां में जिंदा हैं तब तक तुम अकेली नही हो! मैं ही तुम्हारी बहन हूँ, मैं ही तुम्हारी फ्रेंड हूँ। तुमको इस बहन की शादी में गीत गाना हैं और मैं तुम्हारी शादी में गाऊँगी।"


रिया पहले से ही मुजे एक सगी बहन की तरह अपनापन देती रही थी। लेकिन उस रात को तो वह मुझसे गले लगकर रोने लगी थी।


"तुम ही तो मेरी एक सच्ची बहन हो, रिया!" मै भी उसे जोर से अपनी बाहों में भरते हूए बोली, "तुम मेरी शादी में गाना और मैं तुम्हारी शादी में गाऊँगी भी और खूब नाचूँगी भी। ठीक हैं ना!"


"तो चलें, रुबी!"


"आज नही रिया! आज मुजे यही आराम करने दो! मेरा सिर बहुत दर्द कर रहा हैं। मैं सुबह चार बजे तुम्हारे पास आ जाऊँगी! कल से मैं वही रहूँगी और शादी की हर परंपरा को भी सीखूंगी और गीत भी सीखूंगी।"


"ठीक हैं मेरी प्यारी बहन, रुबी!....... वह गेट के दरवाजे पर लगा ताला खोलते हूए बोली, रुबी! तुम इस शहर के लिए अजनबी हो! मुजे डर लग रहा हैं तुम्हे यहां रात में अकेले छोड़ने में! तुम समझ रही हो ना, रुबी! यह दिल्ली नही हैं!"


"रिया! राजधानी दिल्ली भी कौन सी सेफ हैं गर्ल्स के लिए! मुझे कुछ भी नही होगा यहां! तुम निश्चिन्त रहो! माँ दुर्गा, माँ काली हैं ना मेरे साथ! वह कुछ भी अनिष्ट नही होने देंगी मेरा! वही तो मेरी माँ हैं! उन्हीं पर तो मेरा अब विश्वास हैं!"


"रुबी! तुम गेट का ताला अंदर से लगा लेना!" रिया उस बंगले की सारी जगहो की चाभियाँ मुझे देते हूए बोली, "और हाँ, यदि तुम्हे थोड़ा सा भी डर महसूस हो, तुम रात के किसी भी समय तत्काल बेहिचक मुझे या मेरे भैया को या मेरी दीदी को…..तुम किसी को भी कॉल कर देना ! हम पाँच मिनट के अंदर यहॉ आ जाएंगे।"


"Bye... Riya.....!"


"Bye Ruby......Good Night Ruby....!"


रिया चली गई थी।


मेरी सुरक्षा के लिए जहॉ मेरे स्वंय के घर के गेट पर चौबीसों घंटे पहरा देते हूए गार्ड्स तैनात रहते थे वही आज यहॉ मेरा कोई नही था। जो काम एक सेक्युरिटी गार्ड करता हैं वह काम आज मैं कर रही थी! और वो भी उस भूतिया बंगले में। अकेले रहने का काम, गेट में ताला लगाने का काम! आमतौर पर मेरे घर में यह काम मेरे गार्ड्स ही करते थे।


मैं अंदर से उस तीन मंजिले भूतिया बंगले के बड़े से गेट को लगाकर अंदर से लॉक्ड कर दिया। ताला लगाकर मैं बंगले में अंदर आगे बढ़ने लगी और अब मैं बंगले के ठीक सामने खड़ी थी । जहॉ मेरे सामने वह तीन मंजिला भूतिया ईमारत सन्नाटा लिए चुपचाप खड़ी थी। अब मेरे अलावे उस भूतिया बंगले के कैम्पस में और कोई भी नही था, सिवाय सन्नाटो के। मेरे पीठ के पीछे बगीचा था, जिसमें कई छोटे, बड़े पेड़ पौधे लगे हूए थे। रात के उस सन्नाटे में वे पेड़ पौधे वहा की भयानकता को और भी कई गुना बढ़ा रहे थे। बाहर मेन रोड पर भी लगभग सन्नाटा ही पसरा हुआ था। हाँ, उस सन्नाटे को चीड़ती हुई बीच बीच में तेज भागती हुई गाड़ियों की आवाजे मुझे जरूर सुनाई पड़ रही थी।


***********


"अब देखती हूँ मैं, कौन हैं वो लड़की…….जो सीढ़ी पर खड़ी होकर बंद ग्रिल के अंदर से मुझे यहां रुकने के लिए अत्यंत करून विलाप कर रही थी । मेरे पूछने पर उसने अपना नाम स्वाति बताया था ! अब देखती हूँ मैं, कौन हैं ये स्वाति…..!"


"स्वाति....स्वाति.....स्वाति…….!!!!!"


रात के उस सन्नाटे में उस निर्जन बंगले के अंदर यह नाम बार बार प्रतिध्वनित होने लगी ।


मुझे अपनी बहन की याद आ रही थी । मुझे अपनी माँ की याद आ रही थी । मैं बहुत निराश होती जा रही थी । मैं कमजोर पड़ती जा रही थी । मेरी आँखे आँसुओं से भरी हुई थी । मैं वहा रो रही थी ।



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स्वाति तो मेरी छोटी बहन का भी नाम था, जो बहुत पहले मम्मा के साथ हुई निर्मम दरिंदगी में भी अपनी जान गवा बैठी थी ।


"क्या कही ये मेरी छोटी बहन स्वाति की आत्मा तो नही थी ।" मैं पागलो की भाँति स्वंय से ही बातें करने लग गई, "नही….नही ! ये कैसे हो सकता हैं ! मेरी बहन तो उस समय केवल तीन साल की बच्ची थी । जबकि ये लड़की तो लगभग अठारह साल की लग रही थी ।"


"तो फिर ये स्वाति कौन हैं ? ये क्या चाहती हैं मुझसे ! इसके साथ कैसी हैवानियत हुई होगी ! बेचारी ! फुट फुट कर रो रही थी । ये जो भी हो, मैं इस लड़की की सहायता जरूर करूँगी....! ये भी किसी की बहन, किसी की बेटी होगी ! ना जाने क्या हुआ होगा इसके साथ.....! कैसे इसकी मृत्यु हुई होगी ! बेचारी स्वाति......!"


कमजोर पड़ते अपने मन को मैं स्वंय ही साहस देने लग गई और अपनी आँखों की आँसूओं को पोंछकर आगे बढ़ने लगी ।


मैं सबसे ऊपर तीसरे मंजिले पर जाने के लिए सीढ़ी के बाहर बंद ग्रिल के पास पहुँची । जहॉ कुछ देर पहले वह लड़की मुझे खड़ी दिखी थी । मैं हाँथ में चाभियों का गुच्छा लिए ग्रिल पर लगे ताले में अलग अलग चाभी लगाकर उसे खोलने लगी और फिर एक चाभी से उस ग्रिल का ताला खुल गया !


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ताला खुलते ही मैने एक झटके के साथ धक्का देकर ग्रिल को खोल दी और अगलें ही पल मुझे ग्रिल के अंदर लाईट जलाने के लिए स्विच बोर्ड दिख गए । मैंने कई स्विच को ऑन करके अंदर सीढ़ी पर दूर तक लगी लाइट्स से जगमग कर दी । सीढ़ी के फर्श कीमती पत्थरो से बनें हूए थे ।


वहा जगह जगह लगे रंग बिरंगी एवं सफेद एलईडी लाईट्स से सीढ़ी पर के लगे कीमती पत्थर और दीवारों पर थोड़ी ऊँचाई तक लगे महंगे टाईल्स शीशे की तरह चमक रहे थे । वे सब बहुत साफ सुथरे थे । वहा कही भी धूल या गन्दगी का नामोनिशान तक नही था ।


वहा की सफाई देखकर साफ अनुमान लगाया जा सकता था की मकान मालिक भले ही वहा नही रहने आया हो मगर वे हर दिन नही भी तो कम से कम सप्ताह में दो बार उस पूरी बिल्डिंग्स की साफ सफाई जरूर करवाता रहा होगा ।


फिर मैं ऊपर तीन मंजिला छत पर जाने के लिए सीढ़ी पर धीरे धीरे ऊपर चढ़ने लगी…….!



My Life, My Autobiography......


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थर्ड फ्लोर पर जाने के लिए मैं धीरे धीरे अभी ऊपर चढ़ ही रही थी तभी मुझे मेन गेट को जोर से झकझोरने की एक जोरदार आवाज आई ! आवाज बहुत तेज की थी और स्पष्ट भी थी ।


आवाज सुनकर मैं सावधान हों गई । मैं पीछे मुड़कर नीचे बरामदे की ओर सशंकित नजर से देखने लगी । सीढ़ी के इंट्री का ग्रिल गेट दोनो ओर से खुला था । उस समय मेरे हृदय की धड़कन तेज हों गई थी।


'कही कोई आदमी तो नही हैं......कही कोई गेट फांदकर बुरी नियत से अंदर तो नही आ गया.......!'


अब तक तो मैं यहां केवल भूत प्रेत वाला क्षेत्र मान रही थी, लेकिन उस आवाज ने मेरा ध्यान दूसरी ओर भी केंद्रित कर दिया था ।


'तो क्या रिया मुजे इस प्रकार के खतरे की ओर भी संकेत कर रही थी !' मैं सोचने लगी ।


अब मैं ऊपर चढ़ने की बजाए फिर से नीचे सीढ़ी के गेट के पास आ गई । सामने बिल्डिंग का बरामदा था । पूरा बरामदा हर ओर से जलने वाली लाइट्स से चकाचौंध था ! मैं सिर थोड़ा सा बाहर निकाल कर बरामदे के दोनो ओर देखने लगी । मेरे बाई ओर मेन गेट था, जहॉ से अभी आवाज आई थी ।


'अगर कोई आदमी गेट फांदकर आ रहा होगा तो दिख जाएगा !' मैं ऐसा सोचकर सीढ़ी के दरवाजे से सिर थोड़ा बाहर निकालें ही चुपचाप मेन गेट को ठीक से देखने लगी । मेन गेट वहा से तीस फुट से अधिक दूर नही था । मुझे गेट के आस पास कोई नही दिखा ।


तभी मुझे ध्यान आया की मैने बेड रूम तो खुला ही छोड़ दिया था और मुजे आज की रात उसी में सोना था । यह मेरे लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता था ।


मैं सोचने लगी, 'कोई भी गलत इरादे से उस कमरे में छिपकर बैठ सकता हैं और जब मैं सोने जाऊँगी तो वो आसानी से मेरा ..........!'


'नही नही, मुजे तत्काल उसे बाहर से लॉक्ड करना होगा । मेरी एक छोटी सी भी गलती मेरे लिए बहुत भारी पड़ सकती हैं !' मैं आगे की कल्पित दृश्य सोच कर सिर से लेकर पांव तक काँप उठी ।


अब मैं सावधान होकर बरामदे के दायी ओर स्थित बेड रूम की तरफ बढ़ने लगी । रूम में अंदर जाने से पहलें मै साँस रोककर बाहर से ही रूम का मुआयना करने लगी, 'कही कोई अंदर तो नही आ गया हैं !'


बाहर से देखने पर मुजे रूम में कोई नही दिखा । तब मैं सावधानी से रूम के अंदर गई और हर ओर देखने लगी ! वहा कोई नही था । मैने थोड़ी राहत की साँस ली ।


'क्या करूँ अब मैं ? ...... स्वाति के विषय में जानकारी करने के लिए मैं छत पर ना जाऊँ ? क्या मैं बेडरूम का अंदर से दरवाजा लगाकर अब सो जाऊँ ? लेकिन अगर मैं सो भी गई तो भी मुजे रात को बाथरूम जाने के लिए बरामदे पर आना ही होगा ! क्योंकि टॉयलेट रूम के दायी ओर हैं जहॉ मैं बरामदे से होकर ही जा सकती हूँ ! 'मैं मन ही मन कई विकल्पों पर विचार करने लगी,'या फिर मैं रिया को कॉल करके बुला लूँ ! ........लेकिन ऐसा करने पर मैं स्वाति के बारे में पता नही लगा पाऊँगी ! .......नही नही, मैं स्वाति का पता लगाऊँगी ।'


मैने तत्काल निर्णय लिया की मैं स्वाति का पता लगाने छत पर जरूर जाऊँगी । ऐसा निर्णय लेकर मैं उस रूम से बाहर आकर उसमे ताला लगा दिया और झटकते हुएँ सीढ़ी के एंट्री गेट के अंदर आ गई ।


***********


सीढ़ी के एंट्री गेट के अंदर आकर मैने जल्दी से उस मजबूत लोहे के ग्रिल को जोर से खींचकर लगा दिया और उसपर झटपट अंदर से वही ताला लगा दिया जो पहलें गेट के बाहर लगा हुँआ था । ताला और वह लोहे का गेट दोनो बहुत मजबूत था ।


अब मैं आँख बंद करके कुछ देर के लिए राहत की साँस लेने लगी ! मेरी जान में जान आ गई थी की अब मैं सुरक्षित हूँ । अब कोई आदमी यदि गलत इरादे से गेट फांदकर आ भी जाएगा तो वो मेरा कुछ भी हानि नही पहुँचा सकता हैं । वह मुझ तक नही पहूँच सकता हैं ।


लेकिन वहा रहने वाले भूत प्रेतों का क्या, जिसके कारण वह बिल्डिंग बदनाम थी, अभिशप्त बन चुकी थी । उनको कैसे रोका जाएँ ! उनपर कैसे नियन्त्रण पाया जाएँ ! वे तो उस बिल्डिंग के स्थायी निवासी थे । जो आम लोगो को तो नही दिखती होगी मगर मैं माँ दुर्गा की साधना की शक्ति से सभी को देख भी रही थी और उन्हें सुन भी रही थी ।


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इस समय मैं सीढ़ी पर ठीक उसी जगह खड़ी थी जहॉ कुछ देर पहलें मुझे स्वाति खड़ी दिखी थी और जो रो रो कर मुझसे कुछ कहना चाह रही थी ।


वास्तव में, वह बिल्डिंग अनेको प्रेतात्माओ का पसंदीदा निवास स्थान बन चुका था । वे प्रेत आत्माएँ वहा चौबीसों घंटे विचरती रहती थी। इस सच्चाई से कोई भी इंकार नही कर सकता हैं की रात के सन्नाटे प्रेत आत्माओ की ही होती हैं। रात के वैसे सन्नाटो में प्रेतात्माओ की शक्ति कई गुना बढ़ जाया करती हैं और मैं अकेली लड़की ! ये सब जानकर भी मैं छत पर जाने के लिए चुपचाप सीढ़ी पर आगे बढ़ती जा रही थी ।


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सेकेंड फ्लोर आने पर मुझे दाएँ बाएँ दोनो ओर दरवाजे दिखे , जिसपर तालें लगे हुएँ थे। सेकेन्ड फ्लोर पर लैंडलॉर्ड का सामान रखा था । सीढ़ी वहा से उत्तर दिशा और फिर थर्ड फ्लोर से पहलें दक्षिण दिशा की ओर मुड़ गई थी । सीढ़ी पर से होते हुएँ मैं थर्ड फ्लोर पर आ चुकी थी ।


मेरे दांयी ओर एक बंद कमरा था, जिसपर बाहर ताला लगा था ! हाँलाकि उस बंद कमरे की चाभी भी मेरे पास थी । उस कमरे के सामने और सीढ़ी के बांयी ओर दूर तक फैला विशाल छत था । छत के पश्चिम भाग में दो कमरे, एक बड़ा सा किचन, टॉयलेट, बाथरूम भी था !


उस विशाल छत पर कदम रखते ही हवा का एक जोरदार झोंका मेरी ओर आई ! मैं उस विशाल छत के चारो ओर देखने लगी। छत के उत्तर दिशा की ओर का नजारा देखने लायक था !


दूर गंगा नदी दिख रही थी और उस पर रेलवे ब्रिज, जिसपर सन्नाटे को चीड़ती हुई ट्रैन कुछ कुछ समय अंतराल पर गुजर रही थी । छत उत्तर और दक्षिण दोनो ओर से चार फुट ऊँची दीवारो से घिरी हुँइ थी ।


मैं छत के उत्तर दिशा की ओर स्थित दीवार के सहारे शांतचित्त अवस्था में खड़ी होकर दूर गंगा नदी का मनोरम दृश्य देख रही थी । रात्रि के उस शांत वातावरण में मैं दूर से माँ गंगा की बहती जलधारा को निहार रही थी !


वह चाँदनी रात थी! हर ओर का नजारा रमणीक था। तभी अचानक से मुझे चारो ओर से शक्ति का दबाव महसूस होने लगा। मेरे चारो ओर शक्ति के घेरे के साथ ही मेरे शरीर पर दबाव तब महसूस होने लगता हैं जब कोई भूत, प्रेत, जिन्न, पिशाच, चुड़ैल जैसी नकारात्मक शक्ति या शक्तियाँ मेरे निकट आने की कोशिश करने लगती हैं या वैसी शक्तियाँ कही मेरे आस पास होती हैं या मैं उसके पास जाने लगती हूँ।


इस प्रकार की शक्ति के घेरे का एहसास मुझे पिछले कुछ सालो से होने लगा हैं ! वास्तव में ये मेरे लिए अभेद्य सुरक्षा कवच हैं, जिसको सामान्य आँखो से नही देखा जा सकता हैं ।


चूँकि मैं बचपन से ही माँ दुर्गा, माँ काली की साधना करती रही हूँ, इस कारण मुझे अब कोई भी बुरी शक्तियाँ हानि पहुँचाना तो दूर, मेरी आज्ञा के बिना मेरे पास भी नही फटक सकती हैं ! चाहे वे कितनी भी शक्तिशाली क्यूँ ना हों ! मेरे शक्ति घेरे को भेदना उनके लिए असंभव हैं और ये अदृश्य सुरक्षा चौबीसों घंटे, सोते जागते मेरे साथ रहती हैं ।


उस समय वहा सैकड़ो भूत प्रेत, जिन्न, पिशाच, चुड़ैल मुजे घूर घूर कर ऐसे देख रहे थे, मानो उन्होने अपनी प्रेत योनि में ऐसी दिव्य शक्ति पहली बार देखी हो !


वास्तव में उनलोगों को पहले कभी भी ऐसी ईश्वरीय शक्ति का एहसास नही हुआ होगा, इसलिए वे सब कौतूहलवश वहा इकट्ठा होकर मुझे घूर रहे थे । चूँकि मेरे चारो ओर की सुरक्षा घेरा उनलोगों को तेज प्रकाश के रूप में दिखाई पड़ रहे थे इसलिए वे जानना चाहते थे की मैं क्या हूँ !


खैर, मैने उन सभी प्रेतात्माओ को छोड़कर छत पर वही दीवार के सहारे खड़ी खड़ी ही स्वाति की प्रेतात्मा को बुलावा भेजा और कुछ ही पल बाद वह लड़की मेरे सामने छत पर प्रत्यक्ष रूप से आ गई.......!


"कौन हो तुम ? तुमने मुझे यहां रुकने के लिए क्यों कहा ? मुझे तुम अपना पूरा परिचय दो !" मुझसे कुछ दूर हट कर खड़ी उस प्रेतनी से मैने पूछा ।


उस समय वह एक दिव्य सुंदरी जैसी दिख रही थी। उस चाँदनी रात के उस एकांत पल में उसकी दिव्य सुन्दरता, उसका मासूम चेहरा बहुत से पुरुषो को वश में करने में सफल भी हों सकती थी ।


लेकिन मुझे क्या? मुझपर उसकी दिव्य सुन्दरता का कोई रिएक्शन नही हुआ क्योंकि मैं स्वंय भी उसी की हमउम्र लड़की थी और मैं भी उससे कम सुंदर नही हूँ!


वैसे उस समय तक मुजे अपनी ईश्वरीय शक्ति से यह जानकारी मिल चुकी थी की वह लड़की जिसको मैने यहां बुलाया हैं वो अत्यन्त शक्तिशाली प्रेतात्मा हैं.........!


दूसरी ओर उस लड़की को भी मेरी शक्ति का एहसास तभी हो गया था जब मैंने उस बिल्डिंग में प्रवेश की थी । उस लड़की को मालूम हो गया था की मैं कोई साधारण लड़की नही हूँ ! उसे जानकारी हो गई थी की मैं उसे अपनी शक्ति से देख भी सकती हुँ और उसे सुन भी सकती हूँ.......!


उसे यह भी जानकारी हो गई थी की मेरे पास इतनी शक्ति हैं की मैं उसके जैसी भटकती हुई शुद्ध प्रेतात्माओ की सहायता कर सकती हूँ । तभी वह मुझसे सहायता लेने के लिए सीढ़ी पर आकर रोते हुएँ विलाप करने लगी थी........!


My Life, My Autobiography......


उस रात मैं स्वाति को नीचे तो क्या, कही भी बुला कर पूछ ताछ कर सकती थी ! मगर मैने ऐसा ना करके ऊपर ही जाना क्यों जरूरी समझी, इसके कई कारण थे ।


पहला यह की वह लड़की मुजे बार बार ऊपर आने के लिए और वहा रुकने के लिए कह रही थी !


दूसरा कारण यह था की मुजे अपनी शक्ति से पहले तो कोई जवाब नही मिला और मैं इस भ्रम में पड़ गई की कही ये मेरी छोटी बहन स्वाति की आत्मा तो नही हैं, हालाकि यह संभव नही था क्योंकि वह एक जवान लड़की थी । मगर छत पर कदम रखते ही मुझे स्पष्ट जानकारी मिल गई की यह कोई और लड़की हैं और इसका मेरी बहन से कोई लेना देना नही हैं ।


साथ ही मुझे यह भी जानकारी हो गई थी की यह लड़की जीवित अवस्था में उस बिल्डिंग में आ चुकी हैं। इसके अलावे उसके मृत शरीर का अंतिम संस्कार भी उसी छत के उत्तर दिशा में गंगा नदी के दूर तट पर स्थित श्मशान घाट में हुआ हैं ।


इस कारण उस लड़की की प्रेतात्मा को वहा से विषेश लगाव भी था और उसे वहा अधिक शक्ति भी प्राप्त हो रही थी। इस तरह की जानकारी मैने 'भूत प्रेतों का निवास स्थान' शीर्षक वाले लेख में भी लिखा हैं ।


मैं ऊपर जाकर स्वंय उस बात को महसूस करना चाह रही थी और वो लड़की भी यही चाहती थी मैं उसके पसंदीदा स्थान पर अपना कदम रखूँ जिससे उसके प्रेत योनि से मुक्त होने का रास्ता आसान हो जाएँ !


वैसे तो मुजे अब उस लड़की के बारे में सारी जानकारी मिल चुकी थी मगर फिर भी मैं उससे पूछ कर यह पता लगाना चाहती की वह लड़की केवल देखने में ही मासूम हैं या सचमुच ही हृदय से भी सच्ची हैं ! क्योंकि ऐसा देखा गया हैं की प्रेत योनियों में रहने वाली अधिकांश प्रेतात्माएं अपने विषय में पूछ्ने पर झूठी बातें ही ज्यादातर बताया करती हैं ! वास्तव में, वे ऐसा करके सामने वाले मनुष्यों को भ्रमित करके लाभ उठाना चाहती हैं ।


लेकिन मुजे उस प्रेतात्मा की यह बातें बहुत अच्छी लगी की जैसी वो बाहर से मासूम दिख रही थी वो वास्तव में हृदय से भी सच्ची और मासूम थी । मुजे व्यक्तिगत जीवन में ऐसे लोग ही पसंद हैं ! इसलिए मैं उससे सहानुभूति रखते हुएँ उसके लिए कुछ बड़ा सोचने लगी !


वह लड़की रोते हुएँ अपने जीवन की जो कहानी मुझे सुनाई, वो ये हैं ........!!


"उस लड़की का नाम स्वाति कुमारी..(बड़ी जाति का सरनेम) (यहां मैं उसका सरनेम नही लिख रही हूँ) था । उसकी एक छोटी बहन थी खुशी कुमारी....(बदला हुँआ नाम) उसके पिता का कुछ साल पहले उस शहर में ट्रांसफर हुँआ था और उन्होने बाद में अपने परिवार को भी वही बुला लिया ! उन्होने उसी शहर में ही एक मकान किराए पर लें लिया था ! परिवार खुशहाल था ! ये अलग बात थी की स्वाति के पैरेंट्स को एक लड़के की कमी महसूस होती थी क्योंकि स्वाति के कोई भाई नही था ।


स्वाति और उसकी छोटी बहन खुशी दिव्य सुंदरी थी ! पैर से लेकर सिर तक उन बहनों को सुन्दरता की मूर्ति कही जा सकती थी । बीएससी फर्स्ट ईयर में पढ़ने वाली स्वाति जिस लड़के के पास ट्यूशन पढ़ने जाती थी, वह स्वाति को छोटी बहन जैसी मानता था । मगर उसके बैच में पढ़ने वाला एक मुस्लिम लड़का स्वाति पर नजर गड़ाए बैठा था ।


उस मुस्लिम लड़के ने धोके से स्वाति को प्रेमजाल में फँसा कर उसके साथ अनैतिक सम्बन्ध स्थापित कर लिया ! कहते हैं पाप ज्यादा दिन नही छिपता हैं, वह उजागर हो कर ही रहता हैं !


सतरह साल की स्वाति ने उस मुस्लिम लड़के से प्रेम करके अपने आप को बर्बाद कर लिया था और एक दिन वही हुँआ, जिसका डर था । वह गर्भवती हो गई । बात स्वाति के माँ बाप तक पहुँची तो वे दोनो अंदर तक टूट गए ! जिस बेटी को उन्होने जीवन में आगे बढ़ने के लिए खुली छूट दें दी थी, उसने उसी छूट का जमकर दुरुपयोग कर किया था । लेकिन अब क्या होगा !


बात एबोर्सन से खत्म हो जाती तब भी स्वाति बच जाती ! क्योंकि इतना सब होने पर भी जहॉ दूसरे घर वाले वैसी बेटी को मारते, पीटते, उसे यातना देते जबकि उसके माता पिता ने स्वाति के साथ ऐसा कोई बुरा व्यवहार नही किया । बल्कि यहॉ कहानी अलग थी !


स्वाति के माता पिता सहित उसकी छोटी बहन उसका अब पहले से भी ज्यादा ख्याल रखने लगे थे ! कारण यह था की वे स्वाति को बहुत चाहते थे ! शायद , अपने जान से भी ज्यादा । उनलोगों को डर था की घबराकर स्वाति कही आत्महत्या ना कर लें ! इसलिए इतनी बड़ी बात होने पर भी उनलोगों ने स्वाति को कुछ भी नही कहा !


उसके पापा ने डॉक्टर से मिल कर स्वाति के एबोर्सन की बात कर आएँ ! यहॉ तक भी बहुत ज्यादा क्षति नही हुई थी ! सब गुप चुप तरीके से हो रहा था ! मगर उस मुस्लिम लड़के को यह सब अच्छा नही लग रहा था ! वह अपने घरवालों के साथ मिलकर उसे शादी का दबाव देने लगा ! साथ ही शादी के बाद धर्म परिवर्तन करके इस्लाम कबूलबाने का भी दबाव बनाने लगा और नही मानने पर उसके कुछ आपत्तिजनक पिक्स सार्वजनिक करने की धमकी देने लगा !


स्वाति यह सब बर्दाश्त नही कर सकी और एबोर्सन से पहले ही उसने आत्महत्या कर ली । अपनी जान से भी प्यारी बेटी के चले जाने के बाद उसके माता पिता और उसकी छोटी बहन अंदर से टूट गए थे । उसके पिता अपनी लाडली बेटी स्वाति को गंवा कर अपनी पत्नी और इकलौती बची बेटी खुशी को लेकर दूसरे शहर ट्रांसफर करवा कर चले गए ।


तब से स्वाति की आत्मा उस बिल्डिंग के आस पास ही भटक रही थी क्योंकि उसके परिवार पास के बिल्डिंग में ही किराए पर रहते थे । साथ ही स्वाति उस मकान की मालकिन से जो, पेशे से एक सीनियर प्रोफेसर भी थी, उससे भी एक विषय पढ़ा करती थी ! इसलिए स्वाति अक्सर उस बिल्डिंग में अकेले भी घूमने चली जाया करती थी । बिल्डिंग की वो सारी चाभियाँ जो उस रात मेरे पास थी, वो भी कभी कभी स्वाति के पास ही रहा करती थी । स्वाति अक्सर दिन के समय उसी शांत छत पर जाकर स्टडी किया करती थी ।


इस प्रकार स्वाति की कहानी खत्म हो गई थी । उसकी एक छोटी सी गलती ने उसकी जीवन लीला का अंत कर दिया था । स्वाति मर चुकी थी और पहले से ही अभिशप्त, भूतिया उस बिल्डिंग में उसकी प्रेतात्मा भी भटकने लगी थी ।


स्वाति की कहानी सुनकर मुझे उस समय बहुत क्रोध आ गया । आमतौर पर मैं बहुत कम क्रोध करती हूँ मगर ना जाने क्यूँ उस समय मुजे ऐसा मन कर रहा था की स्वाति को भस्म कर डालूँ ! उसने अपने ईश्वर तुल्य माता पिता के विश्वास को तोड़ा था ! उसने सनातन धर्म की अवहेलना की थी । उसने अपनी छोटी बहन का भी भविष्य बर्बाद करने का पाप किया था ।


उस समय मेरे क्रोध की कोई सीमा नही थी ! मुजे अपने आप पर नियन्त्रण कम होता जा रहा था ! क्रोध से मेरा चेहरा लाल हो गया था ! मेरे उस रूप को देखकर सामने स्वाति की प्रेतात्मा डर से पत्ता की भांति काँप रही थी ! क्योंकि उस समय मेरे अंदर माँ काली की शक्ति आ गई थी और वह मेरे जीवन का पहला अवसर था जब मैने माता काली को अपने इतने करीब पाया था ।



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"स्वाति ! तुम्हारे पाप अक्षम्य हैं ! तुम्हे अपने कुकर्म का फल भोगना होगा ! तुमने एक साथ कई अपराध किए हैं !" मेरे ऊपर आयी माता की शक्ति ने स्वाति से कहा, "तुम मुझे पहचाती हो ना.......मैं कौन हूँ .......मैं रुबी नही हूँ ! मैं साक्षात काल स्वरूपनी काली हूँ .......देखो ! अपने चारो ओर.......! अब तुम्हारे अलावा यहां दूर दूर तक कोई भूत प्रेत, पिशाच, चुड़ैल नही हैं ! क्योंकि अब मैं यहॉ आ गई हूँ !"


"माता ! मुझे क्षमा कर दीजिए ! मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई !" स्वाति रो रो कर उस समय माता के शक्ति स्वरूप के सम्मुख प्रार्थना कर रही थी !


स्वाति के लगातार विलाप करने व माता के सामने विनती करने से माता का वह रौद्र रूप जल्द ही शांत हो गया और उन्होने स्वाति को वो आशीर्वाद दें दिया जो कई जन्मों की सच्ची भक्ति के बाद ही किसी किसी को संभव हो पाता हैं ।


"जाओ बेटी ! मैं तुम्हे इस जीवन मरण के बन्धन से मुक्त करती हूँ ! समय आने पर तुम्हे इस योनि से भी मुक्त कर दूँगी .......लेकिन बेटी अभी इसमे कुछ समय हैं, क्योंकि हर घटना एक निश्चित समय पर ही घटती हैं और यह पूर्वनिर्धारित होती हैं। फिर भी तुम इस योनि में रहते हुएँ भी अब शांति महसूस करोगी ! तुम्हे अब भटकने से मुक्ति मिल जाएंगी और इस योनि से मुक्त होकर तुम मेरी सेविका बनकर मेरे लोक में वास करोगी ! लेकिन हाँ, बीच में कुछ पल के लिए तुम्हे संकट का सामना करना पड़ेगा, मगर डरना मत ! मैं उस संकट से भी तुम्हे निकाल लूँगी......! अब तुम निश्चित होकर शांति का अनुभव करो.........!" ऐसा कहकर माता चली गई !


माता का मेरे शरीर से हटते ही मैं हल्का महसूस करने लगी । लेकिन मुजे वो सभी बातें अब भी याद थी जो माता ने स्वाति से कही थी ।


"स्वाति ! तुम बहुत भाग्यवान लड़की हो ! जिसको स्वंय माता ने ऐसे दुर्लभ वरदान दिया हो !"


"हाँ दीदी ! मैं आज बहुत खुश हूँ ! मैं बहुत शांति अनुभव कर रही हूँ । लेकिन दीदी ! ये सब आपकी वजह से हुँआ हैं ।"


"कोई बात नही स्वाति ! तुम मेरी बहन जैसी हो ! मेरी प्यारी चुड़ैल बहन !" मैने हँसते हुएँ कहा ।


"दीदी ! आप भी हमको चुड़ैल मानती हैं !" स्वाति उस समय बच्ची जैसी नखड़े दिखाती हुई बोली ।


"स्वाति, मैं मजाक कर रही थी ! और वैसे भी अब तुम चुड़ैल कहा रही, तुम तो माता की प्रिय पुत्री स्वाति बेटी हो !.......अच्छा स्वाति ! तुम्हारा काम तो हो गया अब मैं सोने जा रही हूँ । रात के एक बज चुके हैं और मुझे चार बजे सुबह में उठना भी हैं!"


"दीदी .......! एक बात हैं .....!" स्वाति मुझसे कुछ कहना चाह रही थी मगर वह संकोच कर रही थी ।


"क्या बात हैं स्वाति ! तुम मुझसे कुछ कहना चाह रही हो !"


"हाँ दीदी ! मगर डर लग रहा हैं !"


"किससे तुम्हे डर लग रहा हैं ?" मैने चारो ओर देखकर उससे बोला, "मेरे और तुम्हारे सिवा यहां दूर दूर तक कोई नही हैं, फिर तुम्हे डर किससे लग रहा हैं, स्वाति.......?"


"आपसे दीदी !"


"डरो मत स्वाति ! तुम्हे जो कहना हैं तुम कहो ! मैं तुम्हारी हर ईच्छा पूरी करूंगी !"


"दीदी, मैं इस घर में नही रहना चाहती हूँ, मैं आपके साथ रहना चाहती हूँ !"


"ठीक हैं स्वाति ! तुम्हारी मुक्ति में अभी कुछ महीने विलंब हैं तब तक के लिए मैं तुम्हे अपने बंगले में रहने का सुंदर स्थान देती हूँ ! तुम मेरे वॉलकोनी में स्थित कैक्टस के पौधे वाले एक गमले में रहोगी । यह वो स्थान हैं जहॉ मैं रात के तन्हाई में यादो के पल बिताया करती हूँ !"


"सच दीदी !" स्वाति के खुशी का ठिकाना नही था, "दीदी, अब मैं आपको रोने नही दूँगी! वहा रहूँगी तो आपका मनोरंजन करती रहूँगी !"


"स्वाति! यहां छत पर कही पानी हैं क्या ?"


"हाँ दीदी ! उधर हैं !" स्वाति ने दूर छत की एक ओर इशारा करके कहा ।


उसी समय मैने नल से हाँथ में पानी भरकर स्वाति से कहा, "स्वाति ! मैं तो अभी यही हूँ मगर मैं तुम्हे अभी, इसी समय अपनी शक्ति से अपने घर भेज रही हूँ ! मेरी शक्ति से अभिमंत्रित पानी पड़ते ही तुम वहा पहुँच जाओगी ।"


"सच दीदी !" स्वाति के खुशी का ठिकाना नही था ।


"हाँ स्वाति !" मैने माता का स्मरण करते हुएँ अपनी हथेली का जल उस पर रखते हुएँ कही, "अब तुम जाओ स्वाति, मेरे निवास स्थान के निकट वास करो ! अब से तुम्हारा वही निवास स्थान होगा....जाओ !"


और मेरे हाथ के अभिमंत्रित जल के पड़ते ही स्वाति उस छत से अदृश्य हो चुकी थी ! स्वाति के अदृश्य होते ही एक बार फिर से उस वीरान छत पर सन्नाटा छा गया । अब उस सुनसान छत पर मेरे अलावे कोई और नही था । उसी छत से मैं उत्तर दिशा में दूर बहती गंगा नदी की ओर देखने लगी ! ऊपर रेलवे ब्रिज पर दौड़ती गरजती एक ट्रैन नदी के उस पार जा रही थी और फिर दौड़ती गरजती हुई वह ट्रैन भी गुजर गई ! ब्रिज पर भी फिर से वही सन्नाटा छा गया ।


मैं सोच रही थी ये जिन्दगी भी एक ट्रैन की भाँति हैं ! लोग आते हैं, मिलते हैं और फिर इस भीड़ में हमेशा के लिए कही खो जाते हैं । मैं दूर से ही गंगा नही को प्रणाम करके नीचे अपने बेड रूम में जाने के लिए धीरे धीरे सीढ़ी की ओर बढ़ने लगी..........!


बहुत से लोगो का मानना हैं की मृत्यु के बाद सबकुछ खत्म हो जाता हैं ! लेकिन वास्तव में ऐसा नही हैं । मृत्यु के बाद भी कई अन्य दुनियां की यात्राओं का दौर आरंभ होता हैं ! मृत्यु उपरांत छाया शरीर को वैसी दुनियां के विभिन्न अनुभवो से गुजरना पड़ता हैं ! जिसे मृत्यु के बाद की यात्रा कही जा सकती हैं ।


आमतौर पर कुछ लोग छाया शरीर को अंधविश्वास मानते हैं ! ये उनकी सोच हो सकती हैं ! और अगर छाया शरीर या प्रेतात्मा नही होते तो फिर किसी की मृत्यु उपरान्त हम उसकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से क्यूँ प्रार्थना करते हैं ! इसलिए सनातन धर्म को मानने वाले व उन धर्म ग्रन्थों का अध्ययन करने वालो को यह मालूम होगा की हमारे धर्म शास्त्रों में भी छाया शरीर के अस्तित्व को स्वीकारा गया हैं !


स्वाति भी उस दुनियां में भटक रही थी जहॉ जाना तो संभव हैं मगर उसी रूप में दुबारा इस दुनिया में लौट कर आना ना कभी संभव था और ना कभी संभव होगा । जाने वाले चले जाते हैं , लेकिन उसकी यादें शेष रह जाती हैं !


लेकिन एक सच्चाई यह भी हैं की जाने वाले इन्सान भी उस दुनियां में उतना ही तड़पते हैं जितना इस दुनियां में उनके चाहने वाले ! अंतर बस यह हैं की वे हमारी तड़प देख सकते हैं मगर हम उन्हें नही देख सकते हैं ! अगर देखा जाएँ तो वे प्रेतात्माएं हमसे भी ज्यादा तड़पते हैं । तभी तो किसी की मृत्यु के उपरांत श्राद्ध कर्म किया जाता हैं और उस आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना किया जाता हैं ।


स्वाति भी इसी दौर से गुजर रही थी । उसने आत्महत्या तो कर ली थी, मगर वो वहा भी तड़प रही थी । उसकी आत्मा वहा भी बेचैन थी । दुनियां वालो की नजरो में स्वाति एक गुजरी हुई कल थी ! एक मृत लड़की थी ! मगर मैं उसे देख रही थी । मैं उसकी बेचैनी को महसूस कर पा रही थी ।


मेरी कोशिश से स्वाति की प्रेतात्मा मेरे बंगले में निवास करने के लिए पहुँच चुकी थी। यहां उसे असीम शांति की अनुभूति हो रही थी । उसने मृत्यु उपरान्त भी देवी से वैसे वरदान प्राप्त कर लिए थे, जो किसी भी जीवात्मा के लिए अपने आप में दुर्लभ हैं और जिसको प्राप्त करने के लिए हर आत्मा लालायित होती हैं ।


वैसे कुछ समय के लिए ऐसा लग रहा था जैसे स्वाति के साथ अब सब कुछ अच्छा हो गया हैं, दुःख उसके मृत्युपर्रान्त जीवन से कोशों दूर जा चुकी हैं ! ऐसा लग रहा था की अब उसे उस अभिशप्त बिल्डिंग में फिर कभी लौटकर नही जाना पड़ेगा ! मगर दुर्भाग्य से ऐसा नही हुँआ।


कहते हैं "होनी बड़ी दुर्जय होती हैं। काल और कर्ता होने का सौभाग्य भी उसी को प्राप्त हैं। उसके सामने सबकी शक्ति कमजोर पड़ जाती हैं......हानि पहुँचाने वालो की भी और सहायता करने वालो की भी !"


इस बात का एहसास मुझे तब हुँआ जब एक शाम मैं रिया के साथ स्वंय कार ड्राइव करती हुई दिल्ली के नेहरू प्लेस से होते हुएँ कालका जी मंदिर जा रही थी .......उस भीड़ भाड़ भरे सड़क पर कार ड्राइव करते हुएँ ही अचानक से मुझे मालूम हुँआ की स्वाति की प्रेतात्मा को मेरे दिए गए स्थान से खींच कर फिर से उस अभिशप्त बंगले में वापस बुला लिया गया हैं......! वही अभिशप्त बिल्डिग, जहॉ वह पहले रहा करती थी.......!


मैं चौक गई ........!


'ऐसा कैसे हो गया ! ! ! किसने ऐसी हरकत की हैं ! किसने मेरी शक्ति को चुनौती दी हैं ! ! ! और क्यों ऐसा किया हैं ? ?' मेरे चेहरे पर क्रोध के साथ साथ मस्तिष्क में कई प्रश्न प्रकट होते चले गए ।


लेकिन जल्द ही मुझे सारी बातें मालूम हो गई । स्वाति की प्रेतात्मा को वापस अपने पास बुलाने वाला कोई साधारण तंत्र मन्त्र वाला इन्सान नही था बल्कि एक शक्तिशाली भगत के साथ एक सिद्ध तांत्रिक की संयुक्त शक्ति वहा काम कर रही थी । वे दोनो वहा उस समय मकान मालिक की उपस्थिति में बहुत शक्तिशाली अनुष्ठान करके वहा वास करने वाली सभी प्रेतात्माओ को अपने वश में कर रहे थे.......!


'लेकिन ! उन्होने स्वाति को क्यों बुलाया ! माना की वह पहले वहा रहती थी, लेकिन अब तो वह वहा नही रहती हैं......!' उनदोनो तांत्रिकों के लिए मेरे क्रोध की ज्वाला बढ़ती जा रही थी ।


मैंने रिया से सारी बातें बतलाई । मेरी बातें सुनकर रिया के चेहरे पर भी दुःख की रेखाएँ साफ झलकने लगी । क्योंकि स्वाति के जीवित अवस्था में वह उससे कई बार मिल चुकी थी । वह तो स्वाति और उसके घरवालों को भी अच्छी तरीके से जानती थी । क्योंकि रिया का घर भी वही था, जहॉ कभी स्वाति अपने मम्मी पापा और बहन के साथ रहा करती थी ।


दरअसल रिया दिल्ली में रहकर मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी और दिल्ली आने से पहले वह स्वाति से तब कई बार तब मिल चुकी थी, जब स्वाति जीवित थी । वह उसके माता पिता और बहन 'खुशी' से भी कई बार मिल चुकी थी और स्वाति की मृत्यु के बाद भी वह उसके परिवार वालो के संपर्क में थी ।


रिया स्वाति को लेकर गहरी चिंता में डूब गई । वह जानती थी कि वे तांत्रिक उसे अपने वश में करके उसे यातना देंगे या फिर उसे वैसी जगह बंद कर देंगे, जो स्वाति के लिए असहनीय पीड़ा देनेवाली होगी । इसलिए रिया मुझसे स्वाति को बचाने के लिए अनुरोध करने लगी।


रिया बार बार स्वाति को याद करके दुःखी हो रही थी। वह मुझसे आश्वासन चाहती थी। लेकिन मैं गंभीर थी ! मैं उससे कुछ बोल नहीं रही थी ।


कुछ सोचकर मैने अचानक से गाड़ी आगे जाकर यूँ टर्न लें ली ! रिया चौक गई, "ये क्या कर रही हो रुबी तुम ? अब हम कहा जा रहे हैं ?"


"सिविल लाइन्स अपने बंगले पर ! ! ! ! !"


"लेकिन.....! मंदिर ? ?" रिया प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देखते हुएँ बोली ।


"मंदिर तो कभी भी जाया जा सकता हैं, रिया.....! लेकिन अगर स्वाति को अभी उन तांत्रिकों के चंगुल से नही छुड़ाया तो फिर बाद में उसे बचाना बहुत मुश्किल होगा ! ! ! !"


मैं रिया को साथ लिए कार को फास्ट चलाती हुई तेजी से अपने घर की ओर बढ़ रही थी, क्योंकि इस बार मुझे स्वाति को बचाने के लिए एक घातक तांत्रिक और एक शक्तिशाली भगत की संयुक्त शक्ति का सामना करना था........!


घर पहुँचकर मैं रिया के साथ बॉलकोनी में आकर बैठ गई । उस समय मैं स्वाति को उन तांत्रिकों के बन्धन से निकालने कि युक्ति सोच रही थी ।


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बहुत सोच विचार कर अंत में मैने कोमल से कहा, "कोमल ! मेरे पूजा के स्थान से अच्छ्त (अरवा चावल) सिंदूर का डब्बा और एक लाल कपड़ा लें आओ !"


कोमल के अच्छ्त, सिंदूर और लाल कपड़ा लाने पर मैं वही बैठ गई जहॉ मैने स्वाति को स्थान दिया था । पास ही रिया भी बैठ गई थी । मैं वही से बैठी हुई स्वाति पर नजर रखे हुई थी ।


मैं देख रही थी......! वहा पर स्थायी व अस्थाई रूप से वास करने वाली सभी प्रेतात्माओ को तांत्रिक अपने मन्त्रों की शक्ति से बुला बुला कर उसे वश में करता जा रहा था । सभी प्रेतात्माएं जो पहले तक अपने आप को बहुत शक्तिशाली मानते थे, वे सब के सब उस तांत्रिक और भगत की शक्ति के सामने असहाय होकर तड़प रहे थे ! ये सब वही प्रेतात्माएं थी जिन्होंने उस बिल्डिंग को अभिशप्त बना रखा था, ये वही प्रेतात्माएं थी जिन्होंने उस बिल्डिंग पर अपना अधिकार करके मनुष्यों को वहा रहने से वंचित कर दिया था । कल तक साधारण मनुष्यों पर अपनी आसुरी शक्ति दिखलाने वाली वे प्रेतात्माएं आज उन तांत्रिकों के सामने बिल्कुल निर्बल से खड़े थे ।


मैं वहा घटने वाली सभी दृश्यों को देख भी रही थी और सभी को सुन भी रही थी। मेरी नजरे स्वाति पर टिकी थी । अन्य प्रेतात्माओ से हमेशा से भिन्न रहने वाली स्वाति इस समय भी सभी से अलग एक ओर शांत खड़ी थी । उसके चेहरे पर ना तो कोई घबराहट थी और ना ही कोई भय ।


घंटो गुजर गएँ ! तांत्रिक अब तक अधिकांश प्रेतात्माओ को अपने वश में कर चुका था । लेकिन स्वाति अब भी बिल्कुल शांत थी । भय और घबराहट तो उसके चेहरे से कोशों दूर थी । मैं उसे और उन तांत्रिकों को तो देख रही थी मगर वे सब मुझे नही देख पा रहे थे । लेकिन आश्चर्य की बात तो यह थी की स्वाति को यह मालूम नही था की मैं उसे बचाने के लिए उसपर अपनी दृष्टि रखे हुई हूँ , इसके बावजूद उसे मुझ पर और मेरी शक्ति पर अटूट भरोसा था और वह मुझे तब देखने को मिला जब सभी प्रेतात्माओ को वश में करने के बाद तांत्रिक अंत में स्वाति पर अपने मन्त्रों का प्रयोग करने लगा। तब स्वाति उनदोनो को ललकारते हुएँ उनके सामने जोर जोर से हँसने लगी ।


"क्यों हँस रही हो तुम , क्या नाम हैं तुम्हारा ? ?" भगत स्वाति पर आगबबूला होते हुएँ बोला ।


"तुमदोनो बहुत बड़े तांत्रिक हो ना, तो फिर स्वंय ही क्यों नही मालूम कर लेते हो मेरे विषय में सारी बातें ! ! ! मुझसे पूछने की क्या आवश्यकता हैं तुम्हे ?" रात के उस सन्नाटे में उनदोनो तांत्रिकों को ललकारते हुएँ स्वाति बोली ।


"ठीक हैं, हम अभी पता लगाते हैं, आखिर तुम्हारे इतने शक्तिशाली होने का राज क्या हैं ! कौन हैं वो जो तुम्हे मेरी आँखों के सामने ही अपनी शक्ति की घेरे में रखकर मेरी शक्ति और मेरे दूतों की शक्ति को निष्प्रभावी कर रहा हैं ! !" अब तक अन्य सभी प्रेतात्माओ को वश में कर लेने वाले उन तांत्रिकों के अब स्वंय के चेहरे पर ही बेचैनी झलकने लगी थी ।


उनदोनो ने मुझसे संपर्क किया । उसने मुझसे स्वाति को बचाने का कारण मुझसे पूछा । उसके पूछ्ने पर मैने स्वाति की हृदयविदारक कहानी बता दी और उनदोनो को उसे मुक्त करने का आदेश दिया । मगर उनदोनो ने स्वाति को मुक्त करने के बदले मेरे सामने नाजायज व अनैतिक शर्त रख दी ।


"आप कहे और हम आपकी बात नही माने.......! भला यह कैसे हो सकता हैं.......! आप कहे तो हम स्वाति तो क्या यहां के सभी प्रेतात्माओ को मुक्त कर दें !" तांत्रिकों ने मुझसे कहा ।


"अच्छी बात हैं ! अब तुम दोनो बिना देर किए स्वाति को तत्काल मुक्त कर दो ! यह मेरा आदेश हैं !"


"लेकिन ! स्वाति को मुक्त करने से पहले हमदोनो की भी एक ईच्छा हैं, अगर आप उसे पूरा कर दें तो हमे बहुत खुशी होगी ।"


"क्या हैं तुम दोनो की ईच्छा ? अगर वह सही हुँआ तो मैं तुम्हारी ईच्छा भी जरूर पूरी करूँगी !"


"हम आपको अपनी आँखों के सामने देखना चाहते हैं और वो भी अभी !!"


"ठीक हैं !"


फिर तांत्रिको ने अपनी शक्ति का दुरूपयोग करते हुएँ मुझे चारो ओर से घेर दिया। जल्द ही मैं समझ गई की तांत्रिकों की नियत अच्छी नही हैं । उसने अपनी औघड़ वाली शक्ति से मुझे वश में कर लिया था ! लेकिन इसके बावजूद उसने स्वाति को नही छोड़ा था ।


"तांत्रिकों ! तुम ये क्या कर रहे हो ? तुम्हे मालूम हैं, तुम अपनी शक्ति का अनैतिक लाभ उठा रहे हो ! ये तुम्हारे लिए विनाश का कारण बनेगा !"


"कुछ भी हो ! अब मैं तुम्हे नही छोड़ सकता ! जिन्दगी में पहली बार मुझे तुम जैसी कोई स्वप्न सुंदरी मिली हैं, ऐसा मैने कभी सोचा भी नही था ! सचमुच ! भगवान जब देता हैं तो छप्पर फाड़ कर देता हैं ! अब तुम मेरी हो, केवल मेरी !" उनमें से एक तांत्रिक ने बहुत ही जोश में कहा ।


स्वाति उसके बन्धन में थी और वो ये सब देख रही थी मगर वो बेबस थी ! उसके पास इतनी शक्ति नही थी की वो उन तांत्रिकों से लड़ाई लड़ सके । जबकि तांत्रिकों ने अपनी कुटिलता दिखाते हुएँ मुझे भी बेबस कर देने का भरसक प्रयास किया था । मगर मैं जानती थी की उसकी वह शक्ति क्षणिक रूप से ही मुझे बांध सकती थी !


मैं मन ही मन देवी की साधना करने लगी और अगलें पल मैं उसकी सभी मन्त्रों की शक्ति तोड़ चुकी थी ।


"तांत्रिकों ! तुमने अपनी शक्ति का प्रयोग अनैतिक कार्यो को सिद्ध करने के लिए किया हैं ! याद रखो, कोई भी मंत्र शक्ति तभी तक फलदायी होती हैं जबतक उसके प्रयोग सही कार्यो के लिए किया जाएँ ! अन्यथा ऐसा नही करने पर उस मंत्र का प्रयोग करने वाले का विनाश हो जाता हैं ! और अब यही हाल तुम्हारे साथ भी होगा......! तुमने इस अभिशप्त बिल्डिंग में वास करने वालें जितने भी भयानक प्रेतात्माओ को अबतक वश में किया हैं, मैं सभी को फिर से मुक्त करती हूँ.........! और याद रखो......अब यही प्रेतात्माएं तुम्हारे लिए काल साबित होगी.....! अब तुम इसे रोक सको, तो रोक लो......! अपने आपको बचा सको, तो बचा लो.......!"


"नही.......नही, ऐसा मत कीजिए ! अगर वे फिर से मुक्त हो गएँ तो वे सबसे पहले हमदोनो को ही मार डालेंगे !" तांत्रिक चिल्लाया ।


"अब मैं कुछ नही कर सकती । तुमने मुझ पर बुरी दृष्टि डाली हैं । मैं तुम्हे क्षमा नही कर सकती..... ! बुरे का अंत बुरा ही होता हैं........! अब तुमदोनो का अंत तय हैं ।"


इतना कह कर मैने स्वाति को उसके बन्धन से मुक्त कर दिया और उसे अपने पास बुला लिया । स्वाति के आते ही मैने रिया और कोमल को वे सारी बातें बतलाई जो अब तक घटित हुई थी । इसके बाद अगले दिन मैने स्वाति के मम्मी पापा और उसकी छोटी बहन को भी फोन करके अपने पास दिल्ली बुलाया ।



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अगले ही सप्ताह वे लोग मेरे पास दिल्ली आ गएँ ! उन सभी के आने पर मैने उन्हें उन घटनाओं से अवगत करवाई जो स्वाति की मृत्यु के बाद उसके साथ घटित हो रही थी । स्वाति की आत्मा की शांति के लिए मैने उन्हें एक पूजा देने के लिए भी कहा ।


मेरे कहने पर उन्होने स्वाति की आत्मा की शांति के लिए एक पूजा दी । चूँकि वह पूजा मेरे निर्देश पर दिए गएँ थे ! इसलिए उस पूजा में कोई पंडित नही था । स्वंय मैं ही उस पूजा का संपूर्ण नेतृत्व कर रही थी । उस पूजा दौरान ही स्वंय माता की शक्ति का मेरे शरीर पर आह्वान हुँआ जिन्होने स्वाति की भटकती प्रेतात्मा को हमेशा के लिए जीवन मरण के बन्धन से मुक्त करके मोक्ष प्रदान कर दिया ।


स्वाति की आत्मा अब देवी में विलीन हो चुकी थी ! देवी में विलीन होकर वो भी दैवीय शक्ति का रूप लें चुकी थी । स्वाति की इहलोक से परलोक तक की कहानी हमेशा हमेशा के लिए समाप्त हो चुकी थी । मगर अपने चाहने वालो के बीच जो यादें वो छोड़ गई थी......उसका क्या ! ! ! ! उसे भला कैसे भुलाया जा सकता था........वो यादें तो शेष ही रह गई थी.......!


इन्सान तो चले जाते हैं मगर उनके चाहने वालो की आँखों के सामने उनकी हर छोटी बड़ी स्मृतियाँ किसी चलचित्र की भाँति निरंतर घूमती रहती हैं । वे दुःखी होकर उसे पल पल याद करते हैं । वे हर पल उसकी कमी को महसूस करते हैं ! मगर जाने वाले भला, कहा लौटते हैं, वो तो बस यादों का समंदर छोड़ जाते हैं, जिसमे डूबा तो जा सकता हैं मगर हासिल कुछ भी नही किया जा सकता हैं और अगर कुछ हासिल भी होता हैं तो वो हैं केवल उदासी........कभी ना खत्म होने वाली उदासी....एक कमी.....एक अधूरापन......जिसकी पूर्ति दूसरा कोई नही कर सकता.......!


स्वाति के चले जाने के बाद यही हाल उसके परिवार वालो का भी था । उसके माता पिता और उसकी छोटी बहन खुशी के लिए स्वाति की यादें अब भी असहनीय पीड़ादायक ही थी । उन्हें मालूम था की उनकी प्यारी सी स्वाति अब इस दुनियां में फिर कभी लौट कर नही आएँगी.......! लेकिन इसके बीच भी उन सभी के चेहरे पर एक खुशी जरूर झलक रही थी और वह खुशी इस बात की थी की दुनियां की इस अनजानी भीड़ में स्वाति तो नही......... मगर स्वाति के बदले एक अच्छी बेटी, एक प्यारी बहन "रुबी" जरूर मिल गई थी.......!


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(समाप्त)



My Life, My Autobiography


रूबी सिन्हा (स्वाति) जी के जीवन से ली गई सच्ची घटना

A Memorable Story In Hindi.....


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A Part Of Heart Touching Biography In Hindi - एक थी स्वाति.....!!

"Film Script for Sale"


मूल घटना रूबी सिन्हा (स्वाति) जी के जीवन पर आधारित है। इसका सर्वाधिकार (कॉपीराइट) राजीव सिन्हा के पास है।


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Writer and Editor

Rajiv Sinha

(Delhi-based Writer/Author)

Screenwriters Association (SWA), Mumbai Membership No: 59004

(सर्वाधिकार लेखक/एडिटर के पास सुरक्षित है। इसका किसी भी प्रकार से नकल करना कॉपीराईट नियम के विरुद्ध माना जायेगा।)

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