चेहरे पर हमेशा मुस्कान रखने वाली उस लड़की का वास्तविक जीवन कितना दुखी था - खुशी (भाग - 4)

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खुशी के जाने के बाद मैं और भी चिंता में पड़ गया। मेरे जाने के नाम पर खुशी का उस तरह से रोना, उसका मायूस होना मेरे लिए खुशी का वो एक अलग स्वरूप प्रस्तुत कर रहा था। इसपर मुझे गहराई से ध्यान देना अति आवश्यक था। क्योकि मेरा स्वभाव है कि मैं स्वयं भले ही दुःखी रहा हूँ मगर मैं दूसरे किसी को दुःखी नहीं देख सकता। मैं छोटे छोटे जीव जन्तुओ की होने वाली पीड़ा को भी अपनी पीड़ा मानकर चलता हूँ फिर वो तो एक कन्या थी।

सोनल से बिना कुछ बोले ही मैं उस छत से बिलकुल सटी दूसरी छत पर चला गया। मैं दूसरी विशाल छत के उस भाग में चला गया, जो बिलकुल एकांत में वातावरण में था।

वो एक विशाल छत थी जो, तीन ओर से बड़े बड़े विशाल वृक्षों की शाखाओ से घिरी थी। उस छत पर जाने के बाद ऐसा प्रतीत होता था, मानो वो छत नहीं बल्कि घने जंगल के बीच का भाग हो। उस बिल्डिंग के मालिक शहर में रहने से वो बर्षो बर्षो तक ऐसे ही वीरान पड़ा रहता था। बिल्डिंग के मालिक कभी कभार ही शहर से वहां आया करते थे। इस कारण उस बिल्डिंग व उस विशाल छत पर हमेशा सन्नाटा पसरा रहता था।

उस एकांत छत पर जाकर मैं खुशी के बारे में गहराई से सोचने लगा। खुशी का आज का रूप मेरे लिए बिलकुल ही नया था। मेरे जाने के नाम पर उसका बहुत दुःखी हो जाना, एकदम से हताश हो जाना, उसका रोना। खुशी का वह रूप मेरे लिए अकल्पनीय, अतुलनीय और अविस्मरणीय भी था।

मैं विचारों में डूबा था तभी चंदन मुझे खोजते हुए वहां आ गया। वो मुझे चाय देने आया था। मुझे गंभीर देखकर उसने मुझसे इसका कारण जानना चाहा। बदले में मैंने उससे बस इतना पूछा कि तुम खुशी को कितनी अच्छी तरीके से जानते हो ?

"जितना एक छोटा भाई अपनी बड़ी बहन को जानता है !" चन्दन ने मुझसे कहा, "मैं खुशी दीदी को अपनी बड़ी बहन की तरह मानता हूँ।"

"तो ठीक है। तुम अपनी बड़ी बहन के विषय में जितना भी जानते हो वो मुझे अभी बताओ, क्योकि मेरे पास समय काम है। हो सके तो मुझे उसकी जीवनी भी बताओ क्योंकि अब तक मैं खुशी के विषय में ज्यादा नहीं जानता हूँ।"

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चंदन मुझे खुशी के विषय में बताने लगा। उसने मुझे बताया, "हमेशा मुस्कुराने वाली खुशी दीदी का वास्तविक जीवन बहुत ही दुःखी है। क्या आप जानते है, उनके जीवन में उनका अपना कहलाने वाला इस धरती पर कोई नहीं है।"

"क्या .......!!!!" मैं चौका।

"हां सर, खुशी दीदी एक अनाथ लड़की है और तो और खुशी दीदी गांव की रहने वाली भी नहीं है।" चन्दन ने सहज ढंग से मुझे बताया।

"क्या .......!!!!" चन्दन के बात पर एक बार फिर मैं चौंका।

"हाँ सर, खुशी दीदी का जन्म पटना में हुआ था और वो पटना की रहने वाली है। उनका घर भी पटना में ही है।"

"तो यहाँ उसका क्या है ?" मुझे खुशी का जीवन किसी रहस्य से कम नहीं लग रहा था।

"यहाँ उनका कुछ भी नहीं है। यहाँ तो वो एक दूर के रिस्तेदार के पास रह रही हैं ।"

"ओह !" खुशी के बारे में जानते हुए मुझे आश्चर्य हुआ और मन ही मन मैं उसकी जिंदगी की तुलना अपनी जिंदगी से करने लगा, 'खुशी भी इस गांव में मेरी तरह ही रह रही है। इसका अर्थ है हमदोनों में बहुत समानता है।'

"खुशी दीदी के पापा कोर्ट में जज थे और मम्मी हाउसवाइफ। खुशी दीदी का एक छोटा भाई था - नीलेश। पटना में खुशी दीदी का अपना घर था जो अब भी उन्ही के अधिकार में है।"

"तो फिर खुशी अपना घर परिवार छोड़कर यहाँ गांव में क्यों रह रही है, उसके जीवन में ऐसा क्या हो गया जो उसे पटना जैसा महानगर छोड़कर यहाँ गांव में रहना पड़ रहा है ?"

"सर ! मैं वही आपको बताने जा रहा हूँ।"

"अच्छा ठीक है ! तुम मुझे आज खुशी के बारे में विस्तार से बताते जाओ ! खुशी के बारें में मैं हर छोटी बड़ी बातें जानना चाहता हूँ !"

"जो खुशी दीदी आपको एक साधारण लड़की दिख रही है, वास्तव में वो बहुत धनवान घर की लड़की है। इस गांव में आने से पहले खुशी दीदी जीवन में न कभी भी गांव देखा था और न ही गरीबी देखी थी। खुशी दीदी के पास पैसे की कमी नहीं थी। खुशी दीदी के पापा चूँकि जज थे इस कारण खुशी दीदी के यहां सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी। उनके घर में सुख - सुविधाओं के सभी समान थे l घर के बाहर दरवाजे पर हमेशा कार खड़ी रहती थी।"


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"क्या .......!!!!" चन्दन की बातो पर एक बार फिर से मैं चौंका।

"हाँ सर ! शायद आपको मेरी बातो पर विश्वास नहीं हो रहा होगा। लेकिन सर, खुशी दीदी के जीवन का यही सच है।"

"नहीं नहीं ! ऐसी बात नहीं है। मुझे तुम्हारी बातो पर कोई संसय नहीं है। चन्दन, तुम मुझे खुशी के बारें में बताते रहो। अब मैं अपनी खुशी के बारें में हर छोटी बड़ी बातें जानना चाहता हूँ।"

"ठीक है। इसलिए तो मैं आपको खुशी दीदी की जीवनी विस्तार से बता रहा हूँ।"

"ठीक है। मुझे खुशी के बारे में तुम बताना जारी रखो !"

"खुशी दीदी के पिता डिस्ट्रिक्ट जज थे।"

"क्या ............खुशी इतने बड़े घर की लड़की है ........!!!!"

"हाँ सर ! खुशी दीदी कोई साधारण घर परिवार की लड़की नहीं है।"

"लेकिन खुशी के जीवन में फिर ऐसा क्या हो गया जो उसे पटना जैसा महानगर में स्थित अपना घर परिवार छोड़कर यहाँ इस गांव में और एक साधारण परिवार के साथ रहना पड़ रहा है। वो अपने माता पिता से दूर यहाँ इस गांव में क्यों रह रही है ?"

"सर ! वही तो मैं आपको बता रहा हूँ।"

"अच्छा ठीक है, लेकिन बात यह है की तुमने मुझे खुशी के बारे अब तक जितनी भी बातें बतलाये हो वो बहुत ही आश्चर्यजनक है, इसलिए मुझे जल्द से जल्द उसके बारे में आगे जानने की उत्सुकता हो गई है।"

"हाँ सर ! खुशी दीदी का जीवन सचमुच किसी को भी आश्चर्यजनक ही लगेगा। दरअसल इसके पीछे बहुत ही दुःख भरी घटना है। जिसके कारण खुशी दीदी जैसी एक धनवान, महानगर की रहने वाली लड़की को भी यहाँ इस गांव में एक साधारण परिवार के साथ रहने को बेबस होना पड़ा है। बात ये थी कि उनके पिता की सर्विस ऐसी थी जिसमें ट्रांसफर होता रहता था। जिसके कारण उनके पिता ने खुशी दीदी के दसवीं पास होते ही उन्हें दिल्ली में रहने की व्यवस्था कर दी थी। तभी से खुशी दीदी घर परिवार से दूर दिल्ली शहर में रहने लगी। वही रहकर उन्होंने 12वीं किया और फिर आगे बीएससी में एडमिशन भी ले लिया लेकिन तभी उनके जीवन में समस्याओ का पहाड़ टूट पड़ा।"

चंदन ने खुशी के बारें में जो बातें आगे बतलाया वो सचमुच हृदय झकझोड़ने वाली थी ----


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वो दिन खुशी दीदी के जीवन का सबसे बड़ा अशुभ दिन था। उस दिन उन्हें पता चला कि उनके मम्मी पापा का कार एक्सीडेंट हो गया है और वह सब पटना पीएमसीएच में भर्ती हैं।

जब खुशी हॉस्पिटल पहुंची तो उन्हें पता चला उनके 10 वर्षीय भाई नीलेश की मृत्यु घटनास्थल पर ही हो गई है। खुशी दीदी को अपने छोटे भाई की मृत्यु का समाचार सुनकर जबरदस्त सदमा लगा लेकिन दुःख अब भी उनका पीछा नहीं छोड़ा था। अपने छोटे भाई के गुजर जाने के सदमे से अभी वो निकली भी नहीं थी कि उन्हें पता चला कि उनके माता पिता की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। वे दोनों आईसीयू में एडमिट है जहां उनकी गहन चिकित्सा की जा रही थी।

जीवन में आये अचानक भयानक भूचाल से खुशी दीदी विक्षिप्त सी हो गई थी। उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब वह आगे क्या करें। उनका कोई भी अपना उन्हें इस समय सहारा देने वाला नहीं था। एक दो पड़ोसी थे, जो खुशी दीदी का साथ दे रहे थे। पागल की भांति वो कभी फूट-फूटकर रोतीं और फिर स्वयं ही चुप हो जाती हो जातीं।

छोटे भाई के गुजर जाने के बाद भी खुशी दीदी को एक आशा थी कि कम से कम उनके मम्मी पापा घायल सही लेकिन जीवित तो हैं और उनके ऊपर अभी भी माँ - बाप का छत्रछाया है। यही आशा उनमें थोड़ी उर्जा भर रही थी। इसकी वजह से वे बिना थके और बिना सोए हॉस्पिटल का रात दिन चक्कर लगाती रहीं।

रोते हुए भी वह अपने मम्मी पापा को बचाने के लिए दौड़ती भागती रहीं। उन्हें आशा थी कि उनके मम्मी पापा जल्द ही ठीक हो जाएंगे। मम्मी पापा के स्वस्थ्य होते ही वो इस समय के एक एक पल को उन्हें बताएगी। उन्हें बताएगी कि उसे क्या क्या पीड़ा झेलनी पड़ी थी। अपने छोटे भाई के गुजर जाने के बाद उसे कैसा सदमा लगा, वो भी अपने मम्मी पापा को बताएगी।


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वो लगातार इसी आशा से भागदौड़ कर रही थी कि जल्द से जल्द उनके मम्मी पापा स्वस्थ्य होकर उनके साथ घर में होंगे। डॉक्टरों की भागदौड़ एवं राजधानी की चमक धमक के कारण उस मासूम सी खुशी को पूर्ण भरोसा था कि उसके पैरेंट्स निश्चित ही स्वस्थ्य हो जायेंगे। फिर वह हॉस्पिटल से घर लौट आएंगे। फिर वो इस दुःखद घटना के एक एक दृश्य को उन्हें बताएगी और इसके बाद वो दिल्ली छोड़कर उन्हीं के साथ घर पर रहेगी। अब वो दिल्ली नहीं जाएगी। अब वो अपने मम्मी पापा के साथ घर पर ही रहेगी। खुशी लगातार मन ही मन यही सब सोचे जा रही थी।

मम्मी पापा के बिना वह बिलकुल अकेली महसूस कर रही थी। उनके ठीक होते ही अब वो उन्हीं के साथ रहेगी। ऐसा सोचकर वो अपने आप को दिलासा देती। लेकिन डॉक्टरों की तरफ से कोई सकारात्मक उत्तर न पाकर उसकी आंखें लगातार आँसुओ से भर जाया करती थी।

उसकी पथराई आंखें ईश्वर से बस एक ही चीज मांग रही थी कि उसके मम्मी पापा को कुछ ना हो और वे दोनों जल्द से जल्द ठीक हो जाए।

आशा निराशा के डोर को थामे खुशी को यह समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होगा। यदि उसके मम्मी पापा को कुछ हो गया तो वह क्या करेगी। कहाँ जाएगी। उस बड़े से घर में वह अकेली कैसे रहेगी। कोई दूर-दूर तक उसका अपना भी नहीं है जो उसका दुख समझ कर उसके लिए सहयोग का हाथ बढ़ाएं। परिवार और रिस्तेदार तो पहले से ही दुश्मन है। उनका रहना न रहना बराबर ही है।


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एक अकेली लड़की क्या कर लेगी। दिल्ली में रहकर अकेलेपन का दंश वो पहले ही झेल चुकी है। लेकिन वो अलग बात है क्योंकि इस समय मम्मी पापा साथ भले ही नहीं रहे है मगर वो घर पर तो है ही। मगर जब वे उसे छोड़कर हमेशा के लिए इस दुनिया से चले जाएंगे तब वह इस भयानक समाज में अकेलेपन का दंश किस आशा से झेलेगी ....... फिर क्या होगा उसका .....!

कौन मददगार सहयोग करने आएगा। पड़ोसी कुछ दिन के लिए साथ देंगे उनका भी अपना घर परिवार है। शहरी माहौल में सब अपने-आप में व्यस्त है। किसके पास दूसरे के लिए समय है और फिर जो निकट भी आएगा, वह उस का नाजायज लाभ ही उठाएगा। मनमानी शर्त रखेगा। मनमानी करेगा। तब वह उसका प्रतिकार कैसे करेगी। क्योंकि तब हुआ अकेली हो चुकी रहेगी।

खुशी अपने मम्मी पापा के नही रहने मात्र की कल्पना को याद करके डर से काँप जाती थी। लेकिन होनि तो होनि है। उसे किसी के दुःख से क्या लेना देना है। उस निर्दय होनि को केवल घटित होने से मतलब है। किसी को उससे क्या प्रभाव पड़ता है, इससे होनि को क्या लेना देना। होनि तो कफन चोर होती है। उस निर्दय को केवल घटित होने में आनंद आता है और उस कफन चोर होनि ने मासूम सी खुशी के साथ भी यही किया।

डॉक्टरों की टीम ने भी खुशी के मम्मी पापा को बचाने का भरसक प्रयास किया। मगर सब बेकार रहा। खुशी के मम्मी पापा खुशी को हमेशा हमेशा के लिए इस निर्दय दुनिया में अकेले छोड़कर स्वयं दूसरी दुनिया में प्रस्थान कर गए।


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मम्मी पापा के गुजरते ही मासूम सी खुशी अब पूरी तरह से अकेली हो गई। अब खुशी का इस बड़ी सी दुनियां में अपना कहलानेवाला कोई नहीं था। खुशी इस दुनिया में अकेली हो गई थी।


परिवार के नहीं रहने के बाद खुशी के सामने यह समस्या उत्पन्न हो गई कि अब वो पटना वाले उस बड़े से घर में अकेली कैसे रहेगी। ऐसी स्थिति में वो दिल्ली में भी अकेली नहीं रह सकती थी। क्योकि मासूम सी खुशी पूरी तरह से हतास हो चुकी थी। तब पड़ोसियों के कहने पर उसके दूर के एक रिश्ते के मामू मामी जो, खुशी के घर पर पहले भी प्रायः आया जाया करते थे, खुशी को उसकी इच्छा से यहाँ अपने पास ले आये। उन्होंने कहा कि कुछ दिन खुशी उनके यहाँ रह लेगी और जब वो परिस्थिति का सामना करने लायक हो जाएगी तो फिर से वो यहाँ पटना आ सकती है। मगर तत्काल इस परिस्थिति में वे लोग खुशी को यहाँ अकेले नहीं छोड़ सकते। क्योकि वे लोग खुशी को बहुत मानते थे।

"और तब से है खुशी दीदी इस गांव में है। फिलहाल खुशी दीदी पटना वाली अपनी कोठी को किराये पर लगा दी है। किराये का पैसा हर महीने खुशी दीदी के पास ही आता है। यहाँ उसे कोई दुःख नहीं है। उनके मामू - मामी बहुत अच्छे लोग है। वे दोनों उन्हें बहुत चाहते है और उनकी हर सुविधा का अपने स्तर से ध्यान रखते है।" खुशी की दुःख भरी जीवनी बतलाते हुए चन्दन ने मुझसे कहा।

"ओह ! बहुत दुख भरा जीवन है मुझे खुशी देने वाली उस मासूम खुशी का !" उस समय मैं उदासी की गहराइयों में डूब गया।

"यहाँ आने पर खुशी दीदी के सामने आगे की पढाई को जारी रखने की चुनौती थी क्योकि ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण यहाँ पटना जितनी सुविधाएँ नहीं है। खुशी दीदी के मामू के यहां रवि सर आया जाया करते थे। रवि सर ने खुशी दीदी का साहस बढ़ाया और उन्हें अपने पास पढ़ने के लिए बुलाने लगे। खुशी दीदी उनके घर पर उनसे ट्यूशन पढ़ने के लिए जाने लगी। फिर भी पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था। लेकिन जब से खुशी दीदी आप के संपर्क में आई है तब से वह पढाई पर ध्यान देने लगी है। उनके मन में जीने की थोड़ी इच्छा जागृत हुई है और अब अपने पुराने अतीत की दुःखद स्मृतियों से एक सीमा तक बाहर भी आयी है। तभी तो खुशी दीदी बीएससी फर्स्ट ईयर की एग्जाम को अच्छे अंको से पास कर पायी है।"

"आपसे मिलकर खुशी दीदी अपने दुःखद स्मृतियों से एक सीमा तक इस आशा से बाहर आ पायी है कि उन्हें लगता है कि इस झूठी दुनियां में कोई तो है जो सच्चा है, जो उनकी संपत्ति और सुंदरता का नहीं बल्कि उनके निश्चल और मधुर स्वभाव को पसन्द करने वाला है।"


चंदन के द्वारा खुशी की दुःखद जीवनी को सुनकर मेरा ह्रदय पीड़ा से भर गया। मैं उस सुनसान छत पर से अपने कमरे में आ गया।


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कमरे में आकर में चौंक गया। देखा, पलंग पर सोनल पेट के बल तकिया पर अपना मुंह औंधे लेटे हुए थी। वह अपने हाथों को तकिया पर रखे हुई थी। मैंने उसकी कलाई पर लाल रंग का रुमाल बंधे हुए देखा।

तभी मेरी दृष्टि फर्श पर पड़े हुए खून के कुछ बूंदो पर पड़ी। मैंने घबराते हुए सोनल के सिर पर अपना हाथ रखा, "क्या हुआ सोनल ! ये सब क्या है ! तुम ठीक तो हो न !"

मेरी सहानुभूति पाकर उसने पलटकर मेरी ओर दृष्टि डाली। उस समय वो रो रही थी।

"क्या हुआ सोनल ! मुझे बताओ ! ये सब कैसे हुआ !" मैंने सोनल से फिर सहानुभूति से पूछा।

उसने मुझे बताया कि धोखे से कलाई में चोट लगने के कारण बैंगल टूट कर कलाई में धस गई जिसके कारण खून निकल आया।"


"ओह ! ये बात है ! चलो कोई बात नहीं ! ये छोटी मोटी दुर्घटना तो जीवन में होती ही रहती है।" मैंने रुमाल को हटाकर उसकी कलाई देखा। कलाई ज्यादा घायल नहीं थी। इसलिए चिंता की कोई बात नहीं थी।


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उसकी सुनी कलाई देखकर मुझे ध्यान आया कि कुछ दिन पहले ही मुझे किसी जानकार ने एक ब्रासलेट दिया था। चूँकि उसने जो ब्रासलेट अपनी बहन के लिए क्रय किया था। वो साइज में थोड़ी बड़ी हो गई थी। मैंने उससे वो ब्रासलेट मांग कर अपने पास रख लिया था। शायद मेरे अंतर्मन में उस ब्रासलेट को खुशी को भेंट करने की थी। मगर परिस्थिति कभी ऐसी नहीं बन पायी थी। इस कारण मैं उसे खुशी को अब तक भेंट नहीं कर पाया था। उस समय मेरे हाँथ में सोनल की सुनी कलाई थी और वो दुखी भी बहुत थी। इसलिए उस समय उस ब्रासलेट को मैंने सोनल को देने का निर्णय ले लिया। फिर तत्काल वो ब्रासलेट अपने बैग से निकालकर सोनल को दे दिया।


सोनल उस ब्रासलेट को पाकर खुशी से उछल पड़ी। उसकी खुशी देखकर मुझे भी बहुत प्रसन्नता हुई। उसने मुझे अपने हाथो से उसे पहनाने को कहा। मैंने उससे कहा की तुम्हारी कलाई अभी घायल है। इसको बाद में पहन लेना। मगर उसने जिद्द की कि नहीं,इससे कोई दिक्क्त नहीं होगी। उसने मुझे अपने हाथो से उस ब्रासलेट को पहनाने को कहा। सोनल के आग्रह पर मैंने उसी समय उसकी सुनी कलाई में वो ब्रासलेट पहना दी। अब सोनल बहुत खुस थी। अब वो मुस्कुरा रही थी। सोनल खुश होकर अपने घर लौट गई।


अब मैं उस सुने विशालकाय घर में फिर अकेला था। मैं आने वाले कल के बारे में सोच रहा था। कल मैं हमेशा हमेशा के लिए उस शांत स्थल को छोड़कर एक भीड़भाड़ वाले नए आशियाने, नए मंजिल की तलाश में जा रहा था। बहुत कुछ पाने की चाह में मुझे बहुत कुछ छोड़ना पड़ रहा था। गांव छोड़ते ही मेरा बहुत कुछ छूट रहा था। लेकिन क्या किया जाएँ। समय की यही मांग थी। बहुत कुछ छूट रहा था। बहुत लोग बिछड़ रहे थे।


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