गरीब की बेटी बनी कलेक्टर

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गरीब की बेटी बनी कलेक्टर
Pic Credit-Unsplash

Short Film (Synopsis): -


Short Movie Script In Hindi

"Garib Ki Beti Bani Collector.....!!"- A Motivational Story In Hindi


वह गरीब थी लेकिन वह स्वाभिमानी थी, उसके पास धन का घोर अभाव था मगर वो महत्वाकांक्षी थी, वह एक छोटे से शहर में रहती थी मगर उसकी ईच्छा देश की राजधानी दिल्ली के टॉप ब्यूरोक्रेट्स के रूप में अपना नाम अंकित करवाने की थी। वह छोटे से शहर के एक साधारण से कॉलेज में पढ़ी थी मगर वो दिल्ली के टॉप कॉलेज के स्टूडेंट्स पर भारी पड़ती थी क्योकि वो निशा थी। वो कोई साधारण लड़की नहीं, वो बिहार की रहने वाली लड़की थी।


(दिवाकर घर आता है। वो थका हुआ व बीमार सा दीखता है। घर आकर वो ग्लास में पानी डालकर पीता है और एक ओर बैठ जाता है। तभी दूसरे कमरे से चलते हुए उसकी बेटी निशा उसके पास आती है और परेशान होकर अपने पिता से कहती है।)

निशा - पिता जी ! आप कब आएं ! मुझे पता ही नहीं चला।

दिवाकर - बेटी तुम पढाई में लगी थी न इसलिए तुम्हे पता नहीं चला ! वैसे मैं अभी तुरंत ही आया था। आज तबियत भी ठीक नहीं लग रही थी और थकावट भी बहुत महसूस हो रही थी। तो सोचा घर जाकर आराम करूँ।

निशा - ये तो आपने अच्छा किया पिता जी ! आप बैठिये। मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूँ।

(चाय बनाकर लाती है)

निशा - (चाय देती है) ये लीजिये पिता जी !

दिवाकर - रख दो ! बेटी !

(पैसे देते हुए) ये लो बेटी पांच हजार ! तुमने कहा था न, तुम्हे परीक्षा की तैयारी के लिए नोट्स लेने है।

निशा - हाँ पिता जी ! (पैसे लेती है) कहा था।

दिवाकर – निशा, आज दुकान में बिक्री भी ज्यादा नहीं हुई थी । लेकिन क्या करें। भाग्य में जितना दुःख लिखा है वो तो हमें ही भोगना होगा न !

निशा - (हाथ छूकर देखती है) पिता जी ! आपको तो तेज बुखार है।

आप चाय पीकर आराम कीजिये। मैं अभी पास वाले डॉक्टर साहब से आपके लिए दवाई लाती हूँ।

(दवाई लेने जाती है और दिवाकर चाय पीता है)

(निशा दवा लेकर आती है)

निशा - ये लीजिये पिता जी ! डॉक्टर ने कहा है चिंता की कोई बात नहीं है। मौसम का प्रभाव है। मौसम बदलने पर शरीर में ऐसी समस्या हो सकती है।

दिवाकर - ये सब भगवान की कृपा बेटी। हम जैसे गरीबो को गंभीर बिमारी से बचाये हुए रखता है। वरना हम जैसे गरीब लोग कहा से गंभीर बीमारी का सामना कर पाएंगे। अब तो बस एक ही सपना है बेटी कि तुम आईएएस की परीक्षा में सफल हो जाओ।

निशा - कोशिश तो मैं पूरी कर रही हूँ। पिता जी ! आगे भगवान की ईच्छा !

दिवाकर - सब अच्छा होगा बेटी।


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दो दिन बाद

(दिवाकर घर आता है। वो फिर आज थका हुआ व बीमार सा दीख रहा होता है। निशा उसे देखते ही अपनी पढाई छोड़कर उसके पास आती है।

निशा - क्या हुआ पिता जी !

दिवाकर - कुछ नहीं बेटी ! लगता है दवा का असर कम हो गया है।

निशा - (पिता जी की कलाई छूकर बुखार का अंदाज लगाती है) ये क्या पिता जी ! आज तो फिर वैसा ही बुखार है जैसा दो दिन पहले था।

दिवाकर - हाँ निशा ! लगता है दवा का असर कम गया है।

निशा - ठीक है। पिता जी आप चिंता मत कीजिए मैं अभी डॉक्टर साहब के पास जाकर आपके लिए बढ़िया वाली दवाई मांगती हूँ।

दिवाका - हाँ निशा ! इस बार उन्हें कहना कि कोई कड़ा पॉवर वाली दवाई दें। रोज रोज के बुखार से मैं तंग आ गया हूँ।

निशा - ठीक है पिता जी। आप आराम कीजिये। मैं अभी गई और अभी आयी। (चली जाती है।)

(निशा दवा लेकर आती है मगर इस बार उसके चेहरे पर गंभीरता है)

निशा - ये लीजिये पिता जी ! डॉक्टर ने केवल ये दो दवाई ही दी है।

दिवाकर - क्या हुआ बेटी। तुम इतना उदास क्यों हो। क्या कहा डॉक्टर साहब ने।

निशा - डॉक्टर ने कहा है कि बिना टेस्ट करवाए इस तरह से और अधिक दवा नहीं दिया जा सकता है। अगर कल तक बुखार आना बंद नहीं हुआ तो ..... (निशा चुप हो जाती है, लेकिन वो बहुत गंभीर है)

दिवाकर - तो क्या निशा

निशा - डॉक्टर ने कहा है अगर इस दवा से भी लाभ नहीं होता है तो फिर उसके कहे अनुसार आपको कुछ जरुरी मेडिकल चेक अप करवाना पड़ेगा।

दिवाकर - चेक अप ......! इसमें तो बहुत पैसे लगेंगे..... लेकिन बेटी ....तुम्हारे चेहरे को देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम मुझसे आधी बात ही बता रही हो ..... बताओ न डॉक्टर को क्या शक है ..... उसे क्या लगता है ....

निशा - पिताजी ! ये तो चेक अप के बाद ही क्लियर होगा।

दिवाकर - ओह ....हे भगवान् ! एक तो तुम्हारी कॉम्पिटिशन का खर्च ...... दूसरा घर का खर्च और अब एक नयी समस्या मेरी बिमारी का खर्च भी इसमें शामिल हो गया ...... और इन सबके लिए जो सबसे जरुरी चीज है वो है कमाई --- जो लगभग नहीं के बराबर है ..... न जाने क्या लिखा है अपने भाग्य में .....

निशा - पिता जी !

दिवाकर - लेकिन तुम चिंता मत करो निशा ! तुम्हे अपनी कॉम्पिटिशन की तैयारी नहीं रोकनी है। जब तक मैं हूँ तुम्हे कोई दिक्क्त नहीं होने दूंगा और चिंता मत करो ..... मुझे कुछ नहीं होने वाला है ..... अगर यमराज भी मुझे लेने आएगा तो उसे भी खाली हाथ ही लौटना पड़ेगा .....क्योकि मैं तुम्हे ऑफिसर के पद पर देखे बिना मरने वाला में से नहीं हूँ। इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। जाओ बेटी अपना समय मत गंवाओ ....जाकर तैयारी करो ....

निशा - ठीक है पिता जी ! लेकिन कल तक अगर आपकी तबियत ठीक नहीं होती है तो आपको डॉक्टर के कहे अनुसार टेस्ट करवाना होगा।

दिवाकर - ठीक है बेटी ! तुम चिंता मत करो। कल मैं स्वयं डॉक्टर साहब से मिल लूंगा। अगर टेक्स्ट की बात होगी तो वो भी करवा लूंगा। मगर तुम अपनी तैयारी पर ध्यान दो।

निशा - ठीक है पिता जी। जैसी आपकी ईच्छा।


दूसरा दिन

(निशा अपने कमरे में पढाई कर रही होती है तभी उसे पिताजी के आने की आहट सुनाई पड़ती है। वो जल्दी से अपने कमरे से बाहर आती है।)

निशा - पिता जी (निशा अपने पिता से आगे कुछ कहे बिना आगे बढ़कर उनकी कलाई को छूकर बुखार का अनुमान लगाती है।) ये क्या ....... आज फिर आपको हाई फीवर है।

दिवाकर - चिंता मत करो बेटी। मैं डॉक्टर के यहाँ से ही आ रहा हूँ। डॉटर को जो - जो जरुरी चेक अप करवाना था, वो सब मैं करवा आया हूँ।

निशा - ठीक किया पिता जी आपने। अब आप कल डॉक्टर के पास जाकर परेशान मत होइएगा। दीजिये पिता जी ये पर्ची मुझे दीजिये। मैं कल जाकर सारे रिपोर्ट्स ले आउंगी और उन रिपोर्ट्स को दिखलाकर डॉक्टर से आगे की दवाई भी लिखा आउंगी। (पिताजी से ग्लूकोज सहित कुछ टॉनिक की बोतल को अपने हाथ में लेती है।) दीजिये पिताजी।

दिवाकर - हाँ बेटी। यही करना। अभी मैं थोड़ा आराम कर रहा हूँ।

निशा - पिताजी ! आप बैठिये। मैं अभी आपके लिए पानी में ग्लूकोज डालकर लाती हूँ।


Hindi Short Film Script


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दूसरा दिन

(निशा अपने पिता दिवाकर के सभी मेडिकल रिपोर्ट्स के साथ दवा लेकर आती है मगर इस बार उसकी आँखे आँसुओ से नहा रहे थे)

दिवाकर - बेटी निशा ..... !!

निशा - पिताजी .....!!

दिवाकर - नहीं - नहीं - नहीं बेटी निराश नहीं होते .....

निशा - पिताजी .....!! (रोती है) रिपोर्ट्स ....

दिवाकर - निशा मैंने कहा न निराश नहीं होते ..... मेरी बेटी होकर .... इतना कमजोर ..... नहीं - नहीं बेटी .... उन रिपोर्ट्स में जो है, उसका अनुमान तो डॉक्टर ने मुझे कल ही बता दिया था। लेकिन देखो मैं मेरे चेहरे पर अब भी कोई गम नहीं है।

निशा - हाँ पिता जी ....... आपके चेहरे पर कोई गम नहीं है .... लेकिन यह चेहरा केवल मेरे सामने ऐसा होता है ताकि मेरा मनोबल कम न हो जाएँ। पिताजी कल रात मैंने आपको अकेले में रोते हुए देखी थी। लेकिन चाह कर भी कल मैं आपको साहस बढ़ाने की साहस नहीं कर पायी क्योकि इससे आपके आत्मस्वाभिमान को ठेस पहुँचता ..... मैं जानती हूँ हम स्त्रियां तो कभी भी कही भी आसुंओ की बौछार लगा देते है मगर पुरुषो के लिए यह आंसू एक कीमती गहने के सामान है जो वो सब से छिपाकर अकेले में व्यक्त करता है। लेकिन पिताजी मैं भी आपकी आँखों से गिरे एक एक बून्द आंसू की सौगंध खाकर कहती हूँ - मैं आपके सपने को हर कीमत पर साकार करुँगी .... मैं किसी भी कीमत पर यूपीएससी एग्जाम को क्लियर करके रहूंगी। मैं आईएएस ऑफिसर बन के रहूंगी।


........क्या निशा आईएएस (IAS) बन पायी ...... और उस पर से भी तब जब इस बड़ी सी दुनिया में उसका एकमात्र सहारा कहलाने वाले पिता का भी साया उस पर से अचानक उठ गया .....!!!!

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गरीब की बेटी बनी कलेक्टर

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Rajiv Sinha

(Delhi-based Writer / Author)

Screenwriters Association (SWA), Mumbai Membership No: 59004

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