सरूमा - माँ - बेटी के अटूट प्रेम को दर्शाने वाली असम की एक मार्मिक लोक कथा

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सरूमा-माँ-बेटी के अटूट प्रेम को दर्शाने वाली असम की एक मार्मिक लोक कथा

लोककथाओं का अपना ही एक अलग संसार होता है। इन कथाओ में असंभव सा दिखने वाला कार्य भी संभव होता हुआ दीखता है और ऐसा प्रतीत होता है कि इन कथाओ के पात्रो की इच्छाएं अंत में पूरी हो जाती है। प्रायः ऐसा देखा जाता है की इन कथाओ के अंत में अन्याय व अन्यायी का अंत होता है और उसके स्थान पर अच्छाई की विजय होती है। इससे लोगो को आत्मसंतुष्टि मिलती है। उन्हें ऐसा लगता है जैसे मानव भी वो असम्भव कार्य कर सकता है जो उसकी पहुँच से बाहर है। लोककथाओं की उत्पत्ति के कई कारणों में से शायद एक कारण ये भी रहा हो।


ऐसी ही एक लोक कथा है जिसका नाम है - सरूमा ....... 'सरूमा' असम की एक लोककथा है और जब आप इस लोककथा को आरम्भ से अंत तक पढ़ेंगे तब आपको ऊपर बताई मेरी बातें सही प्रतीत होगी। साथ ही कहानी को पढ़कर पीड़ा के साथ साथ एक आत्मसंतुष्टि भी प्राप्त होगी। क्योकि इसमें न्याय करने के लिए मनुष्य किसी ग्रह या ईश्वरीय शक्तियों के भरोसे नहीं है बल्कि वो स्वयं ही अपनी दिव्य शक्तियों से अन्यायी को दंड देता है और अपनों की रक्षा करता है।


ये लोक कथा मुझे बहुत पसंद है। मैं नहीं जानती मुझे ऐसी लोक कथाये क्यों पसंद आती है। लेकिन ये बिलकुल सच है कि मुझे ऐसी लोक कथाएं बहुत पसंद है। तो आप भी इस लोक कथा को अवश्य पढ़े.....


असम की प्रसिद्ध लोककथा-Popular Folk Story Of Assam In Hindi


असम के एक शहर में एक परिवार रहा करता था। उस परिवार में पति पत्नी और उसकी एक छोटी सी बेटी थी। बेटी का नाम था - सरूमा। सरूमा छोटी थी मगर बहुत भोली भाली थी। वह और बच्चो कि भांति ज्यादा नहीं बोलती थी। वो सबसे अलग रहती थी और बहुत कम बोलती थी। वह देखने में भी बहुत सुन्दर थी। लेकिन दुर्भाग्य.... कुछ ही दिन बाद उसकी माँ की मृत्यु हो गई।


उसकी माँ की मृत्यु हो जाने पर उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली। जब सौतेली माँ आयी तो वो सरूमा के लिए काल बन कर आयी। क्योकि सच्चाई यही है की इस संसार में नारी ही नारी की शत्रु है।


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तथाकथित नारीवादी लोग नारियों के अधिकारों के लिए आवाज बहुत उठाते है। मगर उन मूर्खो को ये पता नहीं होता है की इस संसार में नारी ही नारी के सबसे बड़े शत्रु है। यदि एक स्त्री दूसरे अन्य स्त्रियों की पीड़ा समझने लगे, उसके साथ खड़ी होने लगे तो समाज में आधे से ज्यादा अपराध रुक जायेंगे। इसके लिए स्त्रियों को अपना बौद्धिक विकास करना होगा। उसे व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठना होगा। क्योकि ये बातें केवल इस लोक कथा तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये सदियों से चली आ रही समाज की वो सच्चाई है जिसपर कोई बातें करना नहीं चाहता है। क्योकि सच कडुवा होता है और समाज के तथाकथित नारीवादी लोगो को अपनी राजनीति चमकानी होती है।


तो इस प्रकार से सरूमा का जीवन नर्क हो गया। दरअसल सरूमा के पिता को व्यापार के काम से दो महीने के लिए बाहर जाना पड़ा था और इस बीच सरूमा को अपनी सौतेली माँ के साथ अकेले रहना था। फिर क्या था। उसकी सौतेली माँ को तो जैसे एक सुनहला अवसर मिल गया था। सरूमा के पिता की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर वो रोज सरूमा के विरुद्ध षड़यंत्र रचने लगी। उसे इतनी पीड़ा देने लगी। ताकि वो मर जाये और उसके बाद उसे उस सौतन की बेटी से छुटकारा मिल जाये।


एक दिन उसकी सौतेली माँ ने उसे नदी से मछली पकड़ कर लाने के लिए कह दिया। माँ के कहने पर सरूमा नदी के पास तो चली गई मगर उसे मछली पकड़ना नहीं आता था। वो नदी के किनारे जाकर बहुत देर तक बैठी रही। वह बहुत दुखी थी और वो अपनी माँ को याद कर रही थी। तभी सरूमा को नदी में एक सुनहली सी नन्ही मछली दिखी। वो सरूमा को पानी के अंदर से चुपचाप देखे जा रही थी। सरूमा ने जब उस मछली को देखा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ क्योकि वो स्थिर होकर सरूमा को ही देखे जा रही थी। तभी अचानक से वो मछली सरूमा से स्त्री की आवाज में कहने लगी, "बेटी सरूमा ! मैं तुम्हारी माँ हूँ। तुम मत रो। मैं तुम्हारी सहायता करने के लिए ही आयी हूँ।" और ऐसा कहकर मछली का रूप धारण करने वाली उसकी माँ ने सरूमा को बहुत तरह के खाने की चीजे दी और बाद में उसे बहुत सारी मछलिया देकर सकुशल घर भेज दिया।


कुछ दिन तो सब ठीक रहा। क्योकि अब सरूमा सौतेली माँ के कहने पर मछलियां आने लगी थी। जबकि सच्चाई ये थी की वो मछलियां सरूमा नहीं पकड़ती थी। वो मछलियां उसकी माँ उसे दिया करती थी। उसकी माँ नदी के पास आकर उसे तरह तरह के खाने की चीजे भी दिया करती थी। अब सरूमा प्रसन्न रहने लगी थी। लेकिन उसकी ये प्रसन्नता अधिक समय तक नहीं रह सकी क्योकि उसकी सौतेली माँ को इस बात की जानकारी हो गई कि नदी किनारे उसकी अपनी माँ आती है। इसलिए अब उसने सरूमा को नदी के पास जाने से रोक दिया।


अब उसने सरूमा को दूसरे तरीके से दुःख देने कि योजना बनायीं।


वो गर्मी का समय था। दोपहर की तेज धुप से धरती तपा करती थी। उसी तेज चिलचिलाती हुई धुप में उसने सरूमा को घर के पिछले भाग में स्थित उद्यान में पानी देने के लिए कह दिया। सरूमा ने खाना भी नहीं खाया था। मगर उसकी सौतेली माँ को इससे क्या लेना देना था। वो तो चाहती ही थी कि सरूमा किसी भी तरह से मर जाये।


सौतेली माँ के कहने पर सरूमा उद्यान में पानी देने के लिए आयी मगर अत्यंत तेज धुप के कारण वह उद्यान में पानी नहीं दे पायी। वह वही पर एक घने पेड़ की छाया में बैठ कर रोने लगी। तभी उसके पास एक तोता आकर बैठ गया। रोते हुए सरूमा की दृष्टि जब पास आये हुए उस तोते पर पड़ी तो उसे बहुत आश्चर्च हुआ क्योकि वो तोता ठीक उसके पास आकर बैठ गया था और उसे बहुत दुखी होकर देख रहा था।


सरूमा-माँ-बेटी के अटूट प्रेम को दर्शाने वाली असम की एक मार्मिक लोक कथ-1


तभी वो तोता स्त्री की आवाज में बोल पड़ा, "सरूमा! रो मत! मैं आ गई हूँ। मैं तुम्हारी माँ हूँ।"


रोती हुई सरूमा तोते के रूप में अपनी माँ को सामने देख कर प्रसन्नता से भर गई। वास्तव में, उसकी माँ ही तोते का रूप धारण करके उसके पास आयी थी।


फिर उसकी माँ ने अपनी नन्ही बेटी सरूमा को बहुत प्रकार के फल खाने को दिया। अब सरूमा प्रसन्न हो गई। माँ ने उसे अब रोज उद्यान में आने को कह दिया। अब सरूमा रोज उद्यान जाने लगी और वहां उसकी माँ तोते का रूप धारण करके उसके पास आने लगी। उसकी माँ वहां आकर नन्ही सरूमा को ढेर सारे मीठे मीठे फल खाने को देने लगी। इससे सरूमा प्रसन्न रहने लगी। लेकिन उसकी ये प्रसन्नता भी अधिक समय तक नहीं रह पायी। जल्द ही उसकी सौतेली माँ को इस बात की जानकारी हो गई की उद्यान में सरूमा से उसकी माँ मिलने आती है और उसे ढेर सारे फल खाने को देती है। फिर क्या था। उसने सरूमा को उद्यान में जाने से भी रोक दिया और उद्यान के कई वृक्षों को भी कटवा दिया।


जब सरूमा की मृत माँ को इस बात की जानकारी हुई की सरूमा को उद्यान आने से रोक दिया गया है और अब उससे मिलना कठिन है तो वो अब अपनी बेटी के पास एक गाय का रूप धारण करके आने लगी। वो गाय का रूप धारण करके दरवाजे पर खड़ी रहती। ताकि सरूमा के बाहर आने पर वो उसे अपना परिचय दे सके। जल्द ही सरूमा दरवाजे पर आयी तो उस गाय पर उसकी दृष्टि पड़ी। वो गाय सरूमा को देखते ही उसके पास आ गई और उसने सरूमा को अपना परिचय दिया और कहाँ, "चिंता मत करो बेटी! मैं फिर आ गई हूँ। तुम अब बाहर आ जाया करो। मैं तुमको अपना दूध पिलाऊंगी। गाय के रूप अपनी सगी माँ को सामने देखकर सरूमा फिर प्रसन्नता से भर गई। फिर गाय बनी उसकी माँ ने उसे खूब दूध पिलाया। दूध पीकर सरूमा और खुश हो गई। माँ ने उसे अब रोज बाहर आने के लिए कह दिया और सरूमा अब रोज बाहर जाने लगी। वहां उसकी माँ गाय का रूप धारण करके आती और उसे खूब अपना दूध पिलाती। जल्द ही सरूमा का स्वास्थ्य अच्छा हो गया और वो अब फिर से प्रसन्न रहने लगी।


सरूमा की सौतेली माँ ने जब देखा कि सरुमा का स्वास्थ्य पहले से दिनों दिन अच्छा होता जा रहा है और वो फिर से प्रसन्न रहने लगी है तो उसने गाय के बारे पता लगाया। उसे मालूम हो गया की वो गाय और कोई नहीं सरूमा की माँ ही है। इसलिए वो चिढ से पागल हो गई। उसने गुस्से में आकर गाय को ही मारने की कोशिश की। मगर गाय के एक ही प्रहार से वो बुरी तरह से घायल हो गई और वहां से भाग खड़ी हुई।


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अंत में चिढ़कर सरूमा की सौतेली माँ ने सरुमा को एक कमरे में बंद कर दिया। भोली-भाली सरुमा को उसने पीने के लिए पानी तक न दिया। सरूमा बंद कमरे में बैठकर रो रही थी तभी उसकी दृष्टि पास आयी एक चुहिया पर पड़ी। वो चुहिया और कोई नहीं सरुमा की माँ ही थी। वो अपनी बेटी सरूमा की रक्षा के लिए अब चुहिया बन कर आयी थी। अपनी बेटी की ऐसी स्थिति देखकर वो लगातार रोये जा रही थी।


उसने रोते हुए ही अपनी बेटी से कहा, "बेटी मत तो। मैं फिर आ गई हूँ। मैं तुम्हारे लिए भुने हुए चने लेकर आयी हूँ। तुम इसे खा लो, बेटी!"


सरूमा ने भुने हुए चने को खाया और माँ के द्वारा लाये गए पानी को भी पिया। भुने हुए चने खाकर और पानी पीकर सरूमा वही पर अपनी माँ के साथ सो गई। अब अपनी माँ के आ जाने पर सरूमा को वहां पर भी भय नहीं लग रहा था। वो अपनी माँ के साथ वहां भी खुश थी। इस तरह से जब सरूमा बंद कमरे में भी प्रसन्न रहने लग गई तो उसकी विमाता को बहुत ही चिढ हुई और वो चिढ से इतनी पागल हो गई थी कि अब उसने सरूमा को मारने का निश्चय कर लिया था।


ईधर सरूमा की सगी माँ को यह ज्ञात हो गया था की अब सरूमा की विमाता उसकी नन्ही सी लाड़ली बेटी - सरूमा की हत्या करने की योजना बना चुकी है और इस समय घर पर उसके पिता भी नहीं है। सरूमा की माँ को यह ज्ञात हो गया था की अब अगर उसकी सौतेली माँ को वो नहीं रोकेगी तो वो उसकी नन्ही सरूमा की हत्या कर देगी।


ऐसा जानकार वो अपने पास सोयी नन्ही सरूमा को जगाते हुए बोली, "बेटी सरूमा ! ये दिव्य वस्त्र लो। तुम इन वस्त्रो को अभी तुरंत धारण कर लो। क्योकि अब तुम्हे इसकी आवश्यकता पड़ेगी। ये वस्त्र चमत्कारी है और इसपर किसी भी अस्त्र व शस्त्र का कोई प्रभाव नहीं होगा। तुमपर किया गया कोई भी वार सफल नहीं होगा और तुम सुरक्षित रहोगी।


माँ के कहने पर सरूमा ने झट से वो दिव्य वस्त्र धारण कर लिया। वस्त्र धारण करते ही अगले पल उसकी सौतेली माँ हाँथ में तलवार लिए वहां आ गई। उसने सरूमा पर कई वार किए मगर उसके सब के सब वार बेकार गए। क्योकि दिव्य वस्त्र की शक्ति से उसपर तलवार के वार बेअसर हो रहे थे।


अंत में हार कर उसकी सौतेली माँ वहां से चली गई। अगले दिन सरूमा के पिता भी आ गए। आते ही उन्होंने अपनी नन्ही बेटी सरूमा को पुकारना शुरू किया। उसके पिता उसके लिए ढेर सारे वस्त्र व खाने पीने का सामना लाये थे। जब उन्हें सरूमा कही पर भी नहीं दिखी तो वे चिंतित हो गए। चिंतित होकर उन्होंने सरूमा के बारे में अपनी पत्नी से पूछा। पर वो कुछ बताने की बजाएं मौन धारण किए रही।


सरूमा के पिता अब समझ गए थे कि सरूमा सुरक्षित नहीं है। उसे जरूर कुछ न कुछ हो गया है। तभी उन्हें दूर एक बंद कमरे से अपनी मृत पत्नी की आवाज आयी, " यदि आप सरूमा की जान बचाना चाहते है तो अपनी पत्नी को उसके मायके भेज दें। क्योकि वो इसकी जान की दुश्मन बन गई है।"


आवाज सुनकर जैसे ही सरूमा के पिता ने दरवाजा खोला तो वहां उन्हें नन्ही सरूमा दिख गई। सरूमा को सुरक्षित देखकर वो आनंद से भर गए और उन्होने अपनी नन्ही सरूमा को गोद में उठा लिया। सरूमा को खूब खाने पीने के लिए दिया। उसके बाद उन्होंने अपनी दूसरी पत्नी को उसकी करनी की सजा देते हुए उसे आगे का जीवन जीने के लिए धन देकर मायके भेज दिया। इस तरह उन्होंने दोनों के साथ न्याय किया। अब सरूमा प्रसन्न रहने लग गयी। लेकिन उसे अपनी माँ की याद हमेशा आती रही।


कहते है,"कुछ मिले तो कुछ खो जाये, रीत ये पुरानी है। सरूमा के साथ भी यही हुआ। सरूमा को अब सौतेली माँ से छुटकारा मिल गया था। मगर अब उसकी सगी माँ की आत्मा भी उससे बहुत दूर जा चुकी थी। कहते है उसके बाद उसकी माँ की आत्मा फिर कभी भी सरूमा के पास नहीं आयी...........! सरूमा को अपनी माँ की यादें हमेशा आती रही...........मगर उसकी माँ फिर कभी लौट कर नहीं आई.............!!


सरूमा-माँ-बेटी के अटूट प्रेम को दर्शाने वाली असम की एक मार्मिक लोक कथ-2

Written By

Ruby Sinha

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