रुद्राक्ष का वृक्ष कैसा होता है - जानिए विस्तार से, रुद्राक्ष और उसके पेड़ के बारें में

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रुद्राक्ष


(The Complete Information about Rudraksha and Rudraksha Tree in Hindi)


सनातन धर्म में रुद्राक्ष का कितना महत्व है, इसकी जानकारी सनातन धर्म के सभी मानने वालो को भली भांति पता है। रुद्राक्ष भगवान शिव का अति प्रिय वस्तु है। भगवान शिव की आराधना में इसका विशेष महत्व है। रुद्राक्ष भगवान भोले शंकर को इतना प्रिय है कि वे इसे स्वयं भी धारण करते है। इस कारण भक्त अपने ईश्वर की प्रसन्नता व कृपा के लिए रुद्राक्ष को स्वयं भगवान शिव का अंश मानते हुए उन्हें धारण करते हैं।


रुद्राक्ष का अर्थ क्या है – (Rudraksh)


रुद्राक्ष दो शब्दों - रूद्र व अक्ष - का संयुक्त रूप हैं। रूद्र स्वयं भगवान शिव का ही एक स्वरुप हैं अर्थात यह उन्ही का एक अंश हैं। रुद्राक्ष शब्द में प्रयुक्त दूसरा शब्द है अक्ष। अक्ष का अर्थ पहिया या चक्र होता है पर इसका एक अर्थ 'नेत्र' भी होता हैं। इस प्रकार रुद्राक्ष का अर्थ रूद्र का नेत्र हैं। वही दूसरी ओर अक्ष का एक अर्थ 'आंसू' भी होता है। इसलिए इस अर्थ में रुद्राक्ष का दूसरा अर्थ भगवान शिव का आंसू भी होता है।


रुद्राक्ष क्या है? (Rudraksha Kya Hota Hai) इसका उत्पादन कहाँ होता है ? जाने - Rudraksh in Hindi


कई लोग ऐसे भी है जिन्हे यह नहीं पता होता है कि रुद्राक्ष का उत्पादन कैसे होता है। वास्तव में, रुद्राक्ष वृक्ष पर फलता है। रुद्राक्ष का पेड़ (Rudraksh Ka Ped) होता है, जिसपर रुद्राक्ष फलता है। रुद्राक्ष के पेड़ पर कनैल के फूल की भांति गुठलीनुमा फल फलता है। उसी फल के अंदर रुद्राक्ष होता है। इस तरह रुद्राक्ष, वृक्ष पर फलने वाले फल के अंदर की गुठली है। जिस वृक्ष पर रुद्राक्ष फलता है, उस वृक्ष को रुद्राक्ष का वृक्ष (Rudraksha Vriksh) कहते है। यह पेड़ के फल में अंदर गुठली के रूप में होता है।


रुद्राक्ष का वृक्ष कैसा होता है :- (Medicinal Plants In India In Hindi)


अब यदि रुद्राक्ष के वृक्ष (Rudraksha Ke Ped) की बात करें तो लोगो को लगता होगा कि यह कोई अति दुर्लभ वृक्ष होगा और उसे आस - पास लगाना सम्भव नहीं होगा। लेकिन ऐसी बात नहीं है। रुद्राक्ष का वृक्ष एक सामान्य वृक्ष की भांति कही भी लगाया जा सकता है। केवल कुछ बातो का ध्यान रखा जाएँ तो रुद्राक्ष का पेड़ घरो के उद्यानों में भी लगाया जा सकता है।


रुद्राक्ष का पेड़ कितना बड़ा होता है


रुद्राक्ष का वृक्ष (Rudraksh Ka Vriksh) एक सामान्य आकार से लेकर बहुत बड़े आकार और ऊंचाई का हो सकता है। यह वहां के वातावरण और मिट्टी (Environment and Soil) के ऊपर निर्भर करता है। आमतौर पर रुद्राक्ष का वृक्ष 50 फीट से लेकर 200 फीट तक हो सकता है। रुद्राक्ष के पत्ते लम्बे आकार के होते है और इस पर लगने वाला फूल उजला रंग का होता है। रुद्राक्ष जिस फल के अंदर गुठली के रूप में होता है, वो फल आकार में गोल होता है। इसी गोल आकार वाले फल के गुदा के अंदर रुद्राक्ष गुठली के रूप में होता है।


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भारत में रुद्राक्ष के वृक्ष कहाँ कहाँ पाएं जाते है? (Rudraksha Tree In India)


भारत में रुद्राक्ष के वृक्ष (Ayurvedic Trees In India) उत्तराखंड, यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों में पाया जाता है। इसके अलावे दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रो में भी रुद्राक्ष के पेड़ देखे जा सकते है। नीलगिरि और रामेश्वरम जैसे क्षेत्रो में भी रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते है। उत्तराखंड के ऋषिकेश, देहरादून, हरिद्वार सहित गंगोत्री और यमुनोत्री में भी पर्याप्त मात्रा में रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते है।


रुद्राक्ष का फल कैसा होता है?


रुद्राक्ष का फल पकने पर स्वयं ही धरती पर गिर जाता है और जब फल के आवरण को हटाया जाता है तो उससे गुठली स्वरुप रुद्राक्ष निकलता है। इन गुठ्लियों में अलग अलग गिनती की धारियां होती है, वास्तव में, यही धारियां रुद्राक्ष की 'मुखी' कहलाती है। जिसके आधार पर इसका अलग अलग महत्व और मूल्य निर्धारण होता है।


रुद्राक्ष के फल का स्वाद


रुद्राक्ष का फल खाने में स्वादिष्ट नहीं होता है। इसके फल का स्वाद कुछ खट्टा और कसैला होता है। ये फल पकने के बाद वृक्ष से टूटकर स्वयं ही निचे गिर जाते है।


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रुद्राक्ष के पत्ते आयताकार व भालाकार होता है


रुद्राक्ष के पत्ते आयताकार व भालाकार होते है। रुद्राक्ष के पत्ते दिखने में आम के पत्तो के समान होते है, मगर आम के पत्ते थोड़े कड़े होते है जबकि रुद्राक्ष के पत्ते आम के पत्तो की तुलना में नर्म होता है। रुद्राक्ष के वृक्ष पर श्वेत रंग का पुष्प फलता है। वृक्ष पर पुष्प का आगमन मई से जून तक में होता है। अर्थात रुद्राक्ष के वृक्ष पर पुष्प का आगमन गर्मी के महीने में होता है। जबकि रुद्राक्ष के वृक्ष पर फल नवम्बर से दिसम्बर तक पकता है। रुद्राक्ष का फल का रंग हल्का नीला व बैगनी जैसा होता है। फल के अंदर गुदा होता है और गुदा के बीच में लीची के बीज की भांति अंदर गुठली होती है, रुद्राक्ष के वृक्ष के फल की वही गुठली पवित्र 'रुद्राक्ष' होता है।


अलग अगल मुखी वाले रुद्राक्ष कैसे मिलता है – (Alag Alag Mukhi Wale Rudraksh Kaise Milta Hai)


कई लोगो को लगता होगा कि अलग अलग मुखी के लिए अलग अलग प्रकार का रुद्राक्ष का वृक्ष होता होगा। जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। रुद्राक्ष का केवल एक ही वृक्ष होता है और उसी वृक्ष में अलग अलग धारियां अर्थात अलग अलग मुखी वाला रुद्राक्ष फलता है। इसका पता तब चलता है जब उन्हें फल से बाहर निकाला जाता है। इस प्रकार एक ही रुद्राक्ष के पेड़ पर अलग अलग मुखी वाला रुद्राक्ष फलता है। इस तरह से रुद्राक्ष के मुखी का निर्धारण रुद्राक्ष के पेड़ पर ही प्रकृति के द्वारा हो जाता है।


रुद्राक्ष के एक ही पेड़ पर कोई रुद्राक्ष एक मुखी तो कोई चार मुखी तो कोई पांच मुखी तो कोई नौ मुखी तो कोई इक्कीस मुखी होता है। लेकिन आमतौर पर अधिकांश रुद्राक्ष 4 मुखी, 5 मुखी और 6 मुखी स्वरुप में होते है और यही हमारे पास उपलब्ध होता है। एक अनुमान के अनुसार, 80 प्रतिशत रुद्राक्ष 4 मुखी, 5 मुखी और 6 मुखी स्वरुप में होते है। एक मुखी रुद्राक्ष बहुत कम मिलता है। फल से निकालने के बाद इन्हे अनेक महीन सफाई प्रक्रिया से गुजरना होता है, ताकि इनकी धारियां स्पस्ट रूप से दिख सकें। इस प्रकार जो रुद्राक्ष आप तक पहुँचता है, वह कई महीन सफाई प्रक्रिया से गुजरा हुआ होता है। यह सफाई प्रक्रिया रुद्राक्ष को उपयोगी व आकर्षक बनाने के लिए होता है।


रूद्राक्ष के बाजार में पांच मुखी रुद्राक्ष की अधिकता हैं (5 Mukhi Rudraksh)


सामान्यतः रुद्राक्ष के बाजार में पांच मुखी रुद्राक्ष की अधिकता हैं। इसका मूल कारण यह हैं कि पेड़ पर अधिकांश रुद्राक्ष पांच मुखी ही होते हैं। इसलिए यह आसानी से उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं पांच मुखी रुद्राक्ष की अधिकता के कारण इसकी कीमत भी अन्य मुखी के रुद्राक्ष की तुलना में बहुत कम होती हैं। साथ ही कम कीमत व अधिक उपलब्धता के कारण पांच मुखी रुद्राक्ष में अन्य मुखी रुद्राक्ष की तुलना में नकली की संभावना नहीं के बराबर होती हैं।


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रुद्राक्ष के फल का आकार गोल होता है मगर अंदर की गुठली अलग अलग आकार-प्रकार के होते है


फल का आकार भले ही गोल होता है मगर फल के अंदर की गुठली अलग अलग आकार की होती है। अब यही कारण है कि रुद्राक्ष के एक ही वृक्ष पर अलग अलग प्रकार के मुँह अथवा मुखी वाले रुद्राक्ष फलते है। सामान्यः पांच मुखी वाले रुद्राक्ष (Panch Mukhi Rudraksh) अधिक महंगे नहीं होते है मगर पांच से कम या अधिक मुखी वाले रुद्राक्ष अधिक कीमती होते है।


रुद्राक्ष में बीच का छिद्र प्राकृतिक होता है न कि मानवनिर्मित


रुद्राक्ष को धारण करने के लिए उसे धागे में गुथना होता है अर्थात उसे धागे में डालना होता है। लेकिन आश्चर्य की बात है यह है कि रुद्राक्ष के बीच का छिद्र कोई मानव निर्मित नहीं होता है बल्कि यह छिद्र इसमें स्वतः फल के अंदर से ही होता है।


रुद्राक्ष का आकार कैसा होता है-(Size of Rudraksha)


अब यदि रुद्राक्ष के आकार और प्रकार की बात करें तो यह विभिन्न आकार और प्रकार में देखने को मिलता है। कुछ रुद्राक्ष की बनावट गोलाकार होती हैं तो कुछ की बनावट अंडाकार होती हैं जबकि कुछ छपटा सा भी होता है। उसी तरह अगर इसके आकार की बात करें तो कुछ रुद्राक्ष मटर के दाने जैसा छोटा होता है तो कुछ आंवले के जैसा बड़ा होता है जबकि कुछ मध्यम आकार का होता है। मध्यम आकार वाले रुद्राक्ष, बेर जितना बड़ा होता है।


रुद्राक्ष का आकार हमेशा मिलीमीटर में ही मापा जाता है


रुद्राक्ष का आकार हमेशा मिलीमीटर में ही मापा जाता है। नेपाल में रुद्राक्ष 20 से 35 मिमी अर्थात 0.80 से 1.38 इंच तक के होते है जबकि इंडोनेशिया में रुद्राक्ष का आकार प्रायः 5 से 25 मिमी अर्थात 0.20 इंच से 0.98 इंच के होते है। रुद्राक्ष का आकार मटर के दाने के आकार से लेकर अखरोट के आकार तक का होता है। वैसे तो रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक होते है मगर अधिकांश रुद्राक्ष पांच मुखी ही होते है। रुद्राक्ष का फल जब पकता है, तब वह नीले रंग का हो जाता है, जिसकी परत को हटाने के बाद अनमोल रुद्राक्ष बाहर आता है।


किस आकार का रुद्राक्ष सबसे अच्छा होता है


और यदि आकार के आधार पर इसके धार्मिक व शुभ फल की बात करें तो चने के आकार वाला कम लाभदायी और बेर के आकार वाला रुद्राक्ष अधिक लाभदायी होता है जबकि आंवले के आकार वाला रुद्राक्ष सर्वोत्तम माना गया हैं। लेकिन इसके साथ ही रुद्राक्ष की एक अन्य सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें धारियां भी होती है।


रुद्राक्ष पर एक या एक से अधिक धारियां होती हैं। इन धारियों को ही मुखी कहा जाता हैं। वास्तव में, संस्कृत में मुखी का अर्थ मुख अर्थात मुँह (Face) होता हैं। इस प्रकार एक मुखी रुद्राक्ष का अर्थ एक मुँह वाला और दो मुखी रुद्राक्ष का अर्थ दो मुँह वाला होता हैं। रुद्राक्ष अलग अलग मुख वाले होते हैं। रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी (1 Mkhi se lekar 21 Mukhi) तक के होते हैं । मगर ज्यादातर रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक ही होते हैं। शास्त्रों में एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक के रुद्राक्ष धारण करने के अलग अलग फल बतलाये गए हैं।


रुद्राक्ष का रंग - (Color of Rudraksha)


रुद्राक्ष अलग अलग रंगो में पाया जाता है। यह लाल, भूरे, कत्थई, चाकलेटी या छुहारे और काले रंगो में पाया जाता है।


भारत में रुद्राक्ष की प्रजाति - रुद्राक्ष का पेड़ (Rudraksh Ka Ped)


भारत में रुद्राक्ष के पेड़ की अनेक प्रजातियां है। एक जानकारी के अनुसार भारत में रुद्राक्ष के वृक्ष की कुल 32 प्रजातियां है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में तीन मुखी से नीचे और सात मुखी से ऊपर के अधिकांश रुद्राक्ष नकली है। लेकिन इसके साथ ही राहत की बात यह है कि भारत में बिकने वाले चार, पांच और छः मुखी रुद्राक्ष की लगभग 95 प्रतिशत असली होते है। जहाँ तक रुद्राक्ष की कीमत की बात करें तो भारत में रुद्राक्ष की कीमत प्रति रुद्राक्ष 10 रूपये से लेकर 40 हजार रूपये तक है। यह मूल्य इसके आकार, मुखी, रंग व चमक के ऊपर निर्भर करता है।


भारत में बड़ी संख्या में रुद्राक्ष का आयात किया जाता है


भारत में लम्बे समय से बड़ी संख्या में रुद्राक्ष का आयात किया जाता रहा है। दरअसल भारत में जितना रुद्राक्ष पैदा होता है वो यहाँ की मांग के अनुरूप नहीं है दूसरी ओर भारत में पैदा होने वाले ज्यादातर रुद्राक्ष मध्यम श्रेणी का होता है। इसलिए भारत को नेपाल, इंडोनेशिया से बड़ी संख्या में हर बर्ष रुद्राक्ष का आयात करना पड़ता है। भारत के द्वारा इन देशो से रुद्राक्ष का हर बर्ष किया गया आयात अरबो रूपये का होता है। नेपाल, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि देशो में रुद्राक्ष का बड़ी संख्या में उत्पादन होता है। नेपाल में उगने वाला रुद्राक्ष बड़े आकार का होता है जबकि इंडोनेशिया, मलेशिया में उगने वाला रुद्राक्ष छोटे आकार का होता है। नेपाल का रुद्राक्ष अच्छी श्रेणी का होता है।


क्या सभी रुद्राक्ष वैसे ही होते है, जो हमें दीखते है ?


रुद्राक्ष का मार्केट बहुत बड़ा है। बड़े संख्या में लोग इसकी क्रय - विक्रय कर रहे है। विश्व में रुद्राक्ष का सबसे अधिक क्रेता भारत में है। अर्थात भारत में सबसे अधिक रुद्राक्ष की बिक्री होती है। पर ऐसा नहीं है कि विदेशो में इसकी बिक्री नहीं होती है। विदेशो में भी रुद्राक्ष की एक सीमा तक बिक्री हो रही है। कुछ विदेशी भी रुद्राक्ष पहनना पसंद करते है। पर उनके पहनने की भावना में धर्म नहीं बल्कि फैशन की अधिकता होती है। पर हाँ, कुछ ऐसे भी है सनातन धर्म के नहीं होते हुए भी इसे धर्म का प्रतिक के रूप में धारण करते है।


अब जब भारत सहित विश्व के कई देशो में रुद्राक्ष की इतनी क्रय - विक्रय हो रही है तो इस क्रय - विक्रय में छल तो होना तय ही है क्योकि विक्रेता अधिक लाभ के लिए किसी भी सीमा को तोड़ने में देर नहीं लगाते है। उन्हें तो लाभ चाहिए और लाभ लेने के लिए उन्हें किसी के साथ यदि छल भी करना पड़े तो वे ऐसा करने में पीछे नहीं रहते है। रुद्राक्ष के व्यापार में लगे लोग अधिक लाभ लेने के लिए बड़ी चतुराई से लोगो के साथ छल कर रहे है।


रुद्राक्ष की बनावट को बदलने के लिए व कम उपयोगी रुद्राक्ष को अधिक उपयोगी बनाने के लिए विक्रेता कई प्रकार से लोगो के साथ छल कर रहे है। प्रायः रुद्राक्ष के आकार को सुन्दर बनाने, उसके मुखी में बदलाव करने के लिए रुद्राक्ष के व्यापार में लगे लोग मानवीय क्रिया का प्रयोग करते है। इस कार्य में वे लोग ब्लेड का सहयोग लिया करते है और कई अपूर्ण रुद्राक्ष को भी पूर्ण बना कर लोगो को आसानी से बेच दिया करते है। इतना ही नहीं कभी कभी वे लोग रुद्राक्ष की ब्लेड से धारियों (मुखी या धारी) में भी बदलाव करके लोगो को बेच दिया करते है।


इस तरह से ये लोग बड़ी चतुराई से बेकार से रुद्राक्ष को सुन्दर बनाकर लोगो को बेचने का कार्य कर रहे है। इस तरह के कार्य में ये लोग ब्लेड या फाइल या अन्य मशीनों का प्रयोग कर रहे है। एक अनुमान के अनुसार भारत में बिकने वाला पचास प्रतिशत रुद्राक्ष नकली है। वे रुद्राक्ष इन्ही मानवीय कार्यो से उपयोगी बनाकर लोगो तक पहुंचा दिया जाता है और लोग आसानी से उनके छल का शिकार हो जाते है।


प्रायः व्यापारी रुद्राक्ष के नाम पर भद्राक्ष को भी बेच दिया करते है


रुद्राक्ष का व्यापार करने वाले लोग भद्राक्ष को भी रुद्राक्ष कहकर बेच दिया करते है और इससे वे बहुत अधिक कमाई रहे है। रुद्राक्ष के व्यापार में लगे लोग केवल इतना ही नहीं कर रहे है बल्कि वे सामान्य लकड़ी को आधुनिक उपकरण के माध्यम से रुद्राक्ष का आकार देकर भी उसे लोगो को बेच रहे है। इसके अलावे वे लोग टूटे रुद्राक्षों को जोड़कर नया रुद्राक्ष बनाकर बड़े आसानी से उसे ऊंची कीमत पर बेच देते है। रुद्राक्ष के धंधे में मोटी कमाई को देखते हुए बाजार में इस समय प्लास्टिक और फाइबर का रुद्राक्ष भी बेचा जा रहा है। बता दें, भद्राक्ष, रुद्राक्ष से मिलता जुलता होता है। मगर भद्राक्ष के बीच में छिद्र नहीं होता है। इस धंधे में लगे लोग भद्राक्ष में कृत्रिम छिद्र करके इसको रुद्राक्ष का रूप दे देते है। यह रुद्राक्ष नहीं होता है मगर आम लोग इसे पकडने में असफल होते है और आसानी से विक्रेता के धूर्तता के शिकार हो जाते है।


भद्राक्ष क्या है - (Bhadraksha Kya Hai)


भद्राक्ष एक ऐसा फल होता है, जो रुद्राक्ष के सामान ही दीखता है। लोग इसे आसानी से नहीं पहचान पाते है। रुद्राक्ष के व्यापारी इसी का लाभ उठाते है और लोगो को रुद्राक्ष के नाम पर भद्राक्ष बेच देते है। चूँकि भद्राक्ष दीखता तो है रुद्राक्ष के जैसा ही मगर इसमें रुद्राक्ष के सामान कोई गुण नहीं होता है।


रुद्राक्ष की असली - नकली प्रजातियां


वैज्ञानिको के अनुसार रुद्राक्ष के वृक्ष के आधार पर ही असली - नकली का निर्धारण होता है। अर्थात वैसे वृक्ष जो रुद्राक्ष जैसे फल तो देते है मगर वो न तो रुद्राक्ष के वृक्ष होते है और न ही उनपर उगने वाला फल कोई रुद्राक्ष होता है। वे केवल रुद्राक्ष जैसे दीखते है मगर वे रुद्राक्ष होते नहीं है। बाजार में ऐसे रुद्राक्ष बड़ी संख्या में बिक रहे है। इन्हे भद्राक्ष कहा जाता है जो सामान्य दृष्टि से देखने पर रुद्राक्ष जैसा ही दीखता है। मगर यह रुद्राक्ष नहीं होता है। इसमें प्राकृतिक छिद्र भी नहीं होता है मगर रुद्राक्ष का स्वरुप देने के लिए इसमें कृत्रिम छिद्र कर दिया जाता है, जिससे लोग आसानी से इसे नहीं पकड़ पाते है और छल का शिकार हो जाते है।


रुद्राक्ष की असली प्रजाति – (Rudraksh Ka Vriksh)


वैज्ञानिको ने इलेइओकार्पस गेनीट्रस (Elaeocarpus Ganitrus Trees) को असली रुद्राक्ष माना है जबकि इलेइओकार्पस लेकुनोसस को नकली प्रजाति का रुद्राक्ष माना है।


रुद्राक्ष के वृक्ष का वैज्ञानिक नाम एलाओकार्पस गेनिट्रस (Elaeocarpus Ganitrus Tree) है


रुद्राक्ष के वृक्ष का वैज्ञानिक नाम एलाओकार्पस गेनिट्रस (Elaeocarpus Ganitrus Tree) है। एलाओकार्पस गेनिट्रस (Elaeocarpus Ganitrus Tree) के वृक्ष अर्थात रुद्राक्ष के वृक्ष 60 से 80 फ़ीट (18 से 24 मीटर) तक बढ़ते है। रुद्राक्ष के ये वृक्ष नेपाल, दक्षिण और पूर्व एशिया, आस्ट्रेलिया के साथ साथ भारत के हिमालय क्षेत्र से लेकर गंगा के मैदानी क्षेत्रो में पाया जाता है। रुद्राक्ष का वृक्ष एक सदाबहार वृक्ष है और यह जल्दी से बढ़ने वाले वृक्ष में से एक है। आमतौर पर रुद्राक्ष के वृक्ष में तीन से लेकर पांच बर्षो में फल आने लगते है।


रुद्राक्ष धारण करने की भावना


रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होता है, ऐसा प्रायः लोग सोचते है। लेकिन यह पूर्णतः सत्य नहीं है। कारण है कि “रुद्राक्ष धारण करने वाले की भावना और कर्म कैसा है, उसने कौन सी भावना से रुद्राक्ष धारण किया है, उसका नियमित कर्म कैसा है, वो रुद्राक्ष धारण करने के नियम का पालन कर भी रहा है या नहीं।“ जैसी अनेक बातें इसमें शामिल है।


कई लोग फैशन के लिए रुद्राक्ष धारण कर लेते है। उन्हें न तो धर्म से कोई लेना देना होता है और न ही वे अपने नियमित कर्मो की कभी समीक्षा करते है। उन्हें जो मन में आता है वो करते है, जो मन में आता है वे उसे बोलते है। जो मन में आता है वो खाते-पीते है। न उनके कर्मो में पवित्रता होती है और न ही उनकी भावनाओ में। जबकि ईश्वरीय शक्तियां मूलतः इन्ही बातो पर ध्यान देती है। वास्तव में, ऐसे लोगो के लिए रुद्राक्ष केवल फैशन का एक साधन मात्र होता है। तो ऐसी स्थिति में ऐसे लोगो को रुद्राक्ष से मिलने वाला कोई धार्मिक फल नहीं मिलता है।


रुद्राक्ष तभी फलित होता है जब इसे धार्मिक भावना से धारण किया जाएँ एवं इसके साथ ही नियमित जीवनक्रम में सभी प्रकार के नियम व संयम का पालन भी सुनिश्चित किया गया हो। इसके अभाव में रुद्राक्ष से मिलने वाला धार्मिक फल शून्य हो जाता है। इसलिए रुद्राक्ष धारण करने से पहले इन महत्पूर्ण बातो को अवश्य ध्यान में रखें।


कैसा रुद्राक्ष धारण करना चाहिए – (सबसे अच्छा रुद्राक्ष कौन सा होता है)


रुद्राक्ष धारण करने में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि वो सुडौल, सुन्दर, कांटेदार हो और उसमें पहले से ही प्राकृतिक छिद्र हो। कृत्रिम छिद्र वाला रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही टुटा - फूटा, किसी माध्यम से जोड़ा हुआ रुद्राक्ष नहीं धारण करना चाहिए। प्रायः रुद्राक्ष को लाल, पीले या श्वेत मोटे धागे में डालकर धारण करना चाहिए।


रुद्राक्ष धारण करने का तरीका (rudraksha dharan karne ki vidhi)- रुद्राक्ष किस धागे में पहने


रुद्राक्ष को काले धागे में धारण नहीं करना चाहिए। रुद्राक्ष को लाल, पीला या फिर श्वेत धागे में धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष को धागे में डालकर गले या बाँह में धारण करना चाहिए। इसके अलावे रुद्राक्ष को सोने में या चाँदी में भी धारण किया जा सकता है। रुद्राक्ष को लाल या पीले रेशमी धागे में बांधकर गले या हाथ में धारण किया जा सकता है या फिर इसे चांदी या सोने की चेन (नेकलेस) में पेंडेंट में भी बनाकर धारण किया जा सकता हैं।


रुद्राक्ष किस दिन धारण करना चाहिए


लोगो से कहते सुना जाता है कि - रुद्राक्ष को सोमवार के दिन धारण करना चाहिए - पर यह पूर्ण सत्य नहीं है। अलग अलग मुखी रुद्राक्ष धारण करने के अलग अलग दिन हो सकते है। इसलिए रुद्राक्ष धारण करने से पहले रुद्राक्ष के मुखी के आधार पर ज्योतिष से अवश्य सलाह कर लें। एक मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव के प्रतिक है तो नौ मुखी रुद्राक्ष माँ दुर्गा व माँ दुर्गा के अन्य स्वरूपों के प्रतिक माने जाते है। अतः रुद्राक्ष धारण करने से पहले दिन का निर्धारण इसके मुखी के आधार पर करना चाहिए और उन देवी स्वरूपों की पूजा अर्चना करनी चाहिए, जिसका वो मुखी प्रतिक है।


रुद्राक्ष धारण करने से पहले उसे गंगा जल में डूबा कर फिर से शुद्ध कर लेना चाहिए। गंगा जल से शुद्धिकरण के बाद रुद्राक्ष को उस मुखी के देवी व ईश्वर के स्वरूपों की पूरी विधि - विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए। जानकारी नहीं होने पर किसी विशेषज्ञ से सलाह ले लेनी चाहिए। पूजा अर्चना करने के बाद इन्हे गले में या बांह में धारण किया जा सकता है।


रुद्राक्ष धारण करने से लाभ - (rudraksha dharan karne se labh)


रुद्राक्ष धारण करने से अनेक लाभ है। यदि नियम व संयम के साथ जीवन जीते हुए इसे धारण किया जाएँ तो इससे भगवान शिव का कृपा प्राप्त होता है। इसके साथ ही इससे स्वास्थ्य में भी बहुत लाभ होता है। इससे व्यक्तित्व का विकास होता है। हाई ब्लड प्रेसर, लो ब्लड प्रेशर, ह्रदय रोग, दमा के साथ साथ मस्तिष्क विकार में भी यह लाभकारी होता है। इससे मन को शांति मिलती है और मन को एकाग्रचित्त रखने में बल मिलता है।


असली रुद्राक्ष की पहचान कैसे करें- (Original Rudraksha)


अब प्रश्न है कि असली रुद्राक्ष की पहचान (Asli Rudraksh Ki Pehchan) कैसे करें? क्योकि पांच मुखी, छः मुखी जैसे कुछ रुद्राक्ष को छोड़कर अन्य शेष मुखी रुद्राक्ष में नकली की संभावना अधिक होती है, क्योकि वे दुर्लभ होते है और इसी कारण बाजार में उनकी कीमत बहुत अधिक होती है। वैसे तो असली रुद्राक्ष की पहचान करना एक साधारण जानकार के लिए बहुत कठिन है क्योकि व्यापारी भद्राक्ष को भी रुद्राक्ष के नाम पर बेच दिया करते है, फिर भी रुद्राक्ष की खरीद में कुछ सावधानियों का पालन करके धोखा से बचा जा सकता है।


रुद्राक्ष और भद्राक्ष में अंतर- (Rudraksha Aur Bhadraksh Me Antar)


• रुद्राक्ष और भद्राक्ष देखने में एक दूसरे से काफी मिलते जुलते होते है मगर रुद्राक्ष का धार्मिक महत्व भद्राक्ष से बहुत अधिक होता है।


• रुद्राक्ष का धार्मिक महत्व है, इसका प्रयोग जाप करने व धारण करने में होता है जबकि भद्राक्ष केवल फैशन के काम आता है।


• भद्राक्ष रुद्राक्ष से निम्न श्रेणी का होता है मगर भद्राक्ष भी रुद्राक्ष का ही स्वरुप माना जाता है।


• भद्राक्ष का आकार अंडाकार होता है लेकिन रुद्राक्ष का आकार (कुछ रुद्राक्ष को छोड़कर) प्रायः गोलाकार होता है।


• रुद्राक्ष के बीच में पाएं जाने वाला छिद्र पहले से ही अर्थात प्राकृतिक छिद्र होता है जबकि भद्राक्ष में बाद में छिद्र करके रुद्राक्ष के जैसा बनाया जाता है। अर्थात भद्राक्ष के बीच में पाएं जाने वाला छिद्र मानव निर्मित होता है।


• रुद्राक्ष के पेड़ के पत्ते आरी के दांत के सामान होते है जबकि भद्राक्ष के पेड़ के पत्ते का सिरा गोलाकार होता है।


• भद्राक्ष भारत में ही ज्यादातर होता है जबकि नेपाल में ज्यादातर रुद्राक्ष पाया जाता है।


• भद्राक्ष का भार रुद्राक्ष से बहुत हल्का होता है।


• रुद्राक्ष अधिक साफ और अधिक उभरा हुआ दीखता है जबकि भद्राक्ष की धरियो का उभार हल्का और पतला होता है।


• रुद्राक्ष को यदि सरसो के तेल में डुबाया जाता है तो वो रंग नहीं छोड़ता है जबकि भद्राक्ष रंग छोड़ सकता है।


• रुद्राक्ष की सबसे बड़ी पहचान यह है कि यह जल में डालने ही तत्काल डूब जाता है जबकि भद्राक्ष जल में धीमी गति से डूबता है।




लेखन :

राजीव सिन्हा

Mob. No. +91-8882328898


(राजीव सिन्हा दिल्ली के जाने माने लेखक है। इस तरह के कंटेंट लेखन के लिए राजीव सिन्हा से आप भी संपर्क कर सकते है।)


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3टिप्पणियाँ
  1. लोगो के लिए व धर्म के लिए राजीव जी आपने बहुत अच्छी जानकारी यहाँ दी है।

    आपने मेरी भी बायोग्राफी लिखी थी, वो भी अच्छी थी। आपने रिया के कहने पर मेरी बिमारी के समय मेरी बायोग्राफी पर आधारित दिल्ली की लड़की का कुछ भाग भी लिखा था, वो भी सर्वोत्तम था और उसे लाखो लोगो ने पढ़ा और उससे बहुत कुछ सीखा। मैं आपके सुन्दर और धार्मिक भविष्य की कामना करती हूँ।

    आप पर व आपके चाहने वालो पर माँ दुर्गा का और माँ काली का आशीर्वाद बना रहें। आपका शुभ हो। आपके अपनों का, आपके चाहने वालो का शुभ हो ! उनकी हर प्रकार से रक्षा हो। उनकी कामनाएं पूर्ण हो ! जय माँ दुर्गा ! जय माँ काली ! ॐ !

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    1. आपके चरणों में बारम्बार प्रणाम माता। आपका और माँ दुर्गा का आर्शीवाद मेरे साथ ही मेरे चाहने वालो पर भी बना रहें, बस यही कामना है। जय माँ दुर्गा। जय माँ काली !

      ॐ नमः शिवाय !

      जय सनातन धर्म।

      हटाएं
  2. सर्वोत्तम जानकारी ,रुद्राक्ष के रूप में मैने भी दो पेड़ अपने मन्दिर में लगाये थे जिनमें से एक पर तीन धारियों वाले फल लगते हैं परंतु उनमें प्राकृतिक छेद नहीं हैं ,आपके द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार ये पेड़ शायद भद्राक्ष है ।

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