वह कहाँ गई - Best Heart Touching Love Story

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smrititak.com - वह कहाँ गई - Best Heart Touching Love Story for Short Film in Hindi - Vah Kahan Gai

Love Story In Hindi


वह अक्सर सुनील के घर आया करती थी । सुनील नौ बजे घर से निकलता तो शाम पांच बजे ही घर पर आता था | कभी - कभी तो वह देर रात भी कमरे में आता था, क्योकि कमरे में वह बिल्कुल अकेला था, लेकिन जब से उसकी मुलाकात संगीता से हुई थी, वह अपने घर समय पर पहुँचने लगा था ।


वह एक बहुमंजिली ईमारत थी, जिसमे रहने के लिए सभी आधुनिक सुख सुविधाएँ थी। उस ईमारत मे बहुत से लोग अपने परिवार के साथ रह रहे थे ।


सुनील ग्राउंड फ्लोर के दो कमरों वाला फ्लैट किराये पर लिए हुए था । संगीता के मम्मी-पापा उस बिल्डिंग के अंतिम फ्लोर पर तीन कमरों वाला एक फ्लैट में रह रहे थे ।


उस दिन जब संगीता के पिता घनश्याम बाबु ऑफिस जाने के लिए बिल्डिंग के बेसमेंट में खड़ी कार में बैठकर उसे स्टार्ट करने लगे तो.....


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' ये क्या....इस कार को आज अचानक से क्या हो गई....! लेकिन....आज तो मुझे हर हाल में ऑफिस जल्दी पहुँचना था....अब क्या किया जाएँ....! ' घनश्याम बाबू झल्लाकर अपने आप से ही जोर जोर से बोल रहे थे, ' चलो, कोई बात नही ! आज मैं प्राइवेट टैक्सी कर लेता हूँ ! '


बेसमेंट में ही घनश्याम बाबू की वे बातें कोई और भी सुन रहा था । वह था सुनील । कार से कुछ ही दूरी पर सुनील भी अपनी बाईक पार्क करता था । उस समय वह भी ड्यूटी जाने के लिए अपनी बाईक के पास आया था और रोज की तरह बाईक स्टार्ट करने से पहले उस पर कपड़े मारकर चमका रहा था ।


कपड़ा मारकर वह अपनी बाईक को स्टार्ट किया और घनश्याम बाबू के पास आकर अपनी बाईक रोक दी ।


"यदि आप चाहे सर, तो मैं आपको आपके ऑफिस तक छोड़ दू !" सुनील ने बहुत ही विनम्रता से कहा ।


"लेकिन मेरी वजह से तुम्हें अपने ऑफिस पहुँचने में देर हो जाएँगी !"


"आपको किस ओर जाना हैं?" सुनील ने घनश्याम बाबू से पूछा।


"संसद मार्ग !"


"कोई बात नही ! आज मेरे पास ज्यादा समय हैं ! मैं आपको संसद मार्ग छोड़ देता हूँ ! मैं ऊपर जाकर आपके लिए भी एक हेलमेट लाता हूँ ।"


"थैंक्स यू यंग मैन !"


"सुनील..... सुनील, नाम हैं मेरा !"


"थैंक्स यू, सुनील! वैसे सुनील, तुम्हारा ऑफिस कहा हैं?"


"ओखला, फेस!"


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उसी दिन से घनश्याम बाबू और सुनील के बीच अच्छा रिश्ता बन गया ! फिर तो ये रिश्ते दिनों दिन गहरे होते चले गएँ । घनश्याम बाबु को भी सुनील भला लड़का मालूम पड़ता था ।


घनश्याम बाबू की इकलौती लाडली बेटी थी संगीता।सुनील का जब घनश्याम बाबू से जान पहचान गहरी हुई तो दोनों एक दूसरे के घर यानि फ्लैट में भी आने जाने लगे । धीरे धीरे घनश्याम बाबू की बेटी संगीता भी सुनील के यहां आने जाने लगी ।


सुनील एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहा था, जिससे उसका गुजारा बड़े आराम से हो रहा था । वह कुछ महीने पहले ही वह फ्लैट किराये पर लिया था।


सुनील के माता-पिता के गुजरे बर्षो बीत चुके थे । इस दुनिया में वह बस अकेला रह गया था । सुनील के इस विरानी जीवन में वह लड़की एक मददगार बन कर आयी थी । संगीता उम्र में सुनील से आठ बर्ष की छोटी थी ।


संगीता देखने में काफी सुंदर थी । उसके शरीर की बनावट उसके चेहरे का पूरा - पूरा साथ दे रही थी। उसकी आवाज में वो मिठास थी जो शहद को भी फीका कर दे । उसके लम्बे काले स्याह बाल तो बिलकुल कमाल के लगते थे । उसके सिर के घने बाल दूध जैसे गोरे बदन की शोभा को और भी बढा रहा था और सबसे बड़ी उसमे जो खूबी थी, वह थी उसकी मासूमियत।


संगीता शायद ही कभी क्रोध किया करती थी। वह बहुत हँसमुख लड़की थी। उसके चेहरे की मंद मंद मुस्कान बरबस ही किसी को भी आकर्षित करने की क्षमता रखती थी।


अब भला सुनील तो क्या ! कोई भी लड़का वैसी लड़की के लिए जान देने के लिए तत्पर रहता,जबकि वह लड़की तो सुनील को बहुत प्यार करती थी।


संगीता से मिलने से पहले वह अपने अकेलेपन से निराश - सा हो गया था। उसे अपना जीवन बोझ - सा मालूम पड़ता था। उसके आगमन से उसका जीवन ज्योतिर्मय हो गया । अब उसे जीवन में आनंद की अनुभूति होने लगी थी । पहले उसे जहॉ सारी दुनिया कांटने को दौड़ती थी, वही अब उसे बहुत प्यारी लगने लगी थी । वास्तव में प्यार इसी को तो कहते है।


समय गुजरता गया, अब तक दोनों के मिले दो साल गुजर चुके थे | इस बीच वे दोनों एक दुसरे को बहुत चाहने लगे थे, लेकिन उनका यह प्रेम मन के अन्दर तक ही सीमित था |


'संगीता अलग जाति की लड़की है, फिर मै कैसे संगीता को अपना सकता हूँ |' सुनील यही सोचकर चुप रहता ।


लेकिन प्रेम है ऐसी की छुपाये नहीं छुपती और हटाये नहीं हटती | सुनील के जीवन में संगीता ऐसे छा गई की वह उसके लिए एक आवश्यकता सी बन गई थी | अब स्थिति ऐसी थी की सुनील के कमरे में आते ही संगीता भी ठीक पांच बजे उसी के साथ उसके घर आ जाती और देर रात ही अपने घर जाती | चूँकि उसके मम्मी-पापा को सुनील पर पूरा बिश्वास था | इसलिए उन्होंने संगीता को सुनील के यहां आने-जाने से नहीं रोका |


हांलाकि सुनील नहीं चाहता था की संगीता उसके घर का काम करे, लेकिन संगीता उसके घर का सारे काम करने की जिद्द करती और उसी के हठ पर एक दिन सुनील ने अपने कमरे की दूसरी चाभी उसे दे दी | अब तो सुनील को पूरा आराम हो गया | घर आते ही उसे बना-बनाया भोजन मिलता । पहले जहा उसे बर्तन माँजने से लेकर आटा गूंथना पड़ता था, अब तो अपना जूठन उठाने को भी संगीता उसे मना करती थी |


एक दिन संगीता ने हँसकर सुनील से पूछा ही लिया, "क्या जिस तरह मैं पांच बजने के इंतजार में बेचैन रहती हूँ, तो क्या आपको भी मुझसे मिलने की उतनी ही बेचैनी होती हैं ?"


"हाँ....! क्यों नही.......!" सुनील ने कहा|

"सच......! मुझे बहुत खुशी हुई !" उसने बड़े ही मासूमियत से कहा, "तब तो हमारा मिलन अवश्य होगा.......!"


एक बार, सुनील को आने में काफी देर हो गई | इस बीच संगीता घर का सारा काम करके बड़े बेशब्री से उसका इंतजार कर रही थी | जैसे ही वह आया तो संगीता ने कहाँ, "मै कब से आपका इन्तजार कर रही हूँ, जब मै हूँ, तब आप इतनी देर लगाते है, जब मै नहीं रहूंगी तब आप कब आयेगे...........! ! ! !"


संगीता के इस बात को सुनकर उसे अपनी माँ की याद आ गई । वह भी प्रायः यही बात उसे कहा करती थी | लेकिन माँ तो उसे छोड़कर चल बसी, तो क्या संगीता भी...... !


'नहीं....नहीं, ऐसा हरगिज नहीं होगा ।' ऐसा ख्याल आते ही वह बुरी तरह से घबरा गया। 'क्या वह उसके बिना जिन्दा रह सकेगा? शायद नही.....!'


सुनील को अब महसूस होने लगा था की वह संगीता के बिना नहीं जी सकता है | कभी-कभी संगीता अपने प्रेम का इजहार सुनील से अप्रत्यक्ष्यतः करती, मगर सुनील से कोई प्रत्योतर न पाकर वह चुप हो जाती |


सुनील जानता था की संगीता उससे बेहद प्रेम करने लगी है, लेकिन उस किशोरी को ज़माने के दस्तूर मालूम नहीं थे | वह मन-ही-मन सुनील के साथ जीवन बिताने के हवाई-किले बनाती रहती, जो उसके चेहरे और बोलचाल से बिलकुल स्पस्ट होता था |


Hindi Kahani (Hindi Story)



लेकिन वह दिन भी आ गया जिस दिन को लेकर सुनील भयभीत हुँआ करता था । लड़की का सुनील के यहाँ इतना अधिक आना - जाना उसके पड़ोसियों को अच्छा नहीं लगता था | कुछ पड़ोसियों ने संगीता के मम्मी-पापा के कान भरके उन्हें सुनील के खिलाप कर दिया ।


लेकिन मना करने के बावजूद संगीता कभी-कभी चुपके से सुनील के यहाँ आ जाया करती | लेकिन यह सिलसिला भी अधिक दिनों तक नहीं चल सका |


संगीता के बर्ताव से तंग आकर उसके मम्मी-पापा उसे उसके मामू के यहाँ भेजने का निर्णय में लिया |


एक दिन शाम के समय सुनील संगीता को याद करते हुएँ अपने घर का दरवाजा खोलकर बैठा ही था तभी अचानक से संगीता कमरे के दरवाजे का पर्दा हटाते हुए अन्दर आ गई | सुनील उसे देखकर पहले तो बहुत खुश हुआ लेकिन जल्द ही वह संगीता के गंभीर चेहरे को देखकर सशंकित हो गया |


'संगीता पर जरुर कोई नई मुसीबत आई होगी, वरना संगीता तो कभी भी इतनी मायूस नहीं दिखाई पड़ती है ।' सुनील आने वाले बुरे समय से भयभीत हो गया था ।


उस समय संगीता सुनील को स्थिर नजर से चुपचाप निहार रही थी । वह नीलें रंग की सूट पहने हुएँ थी । उसके दुपट्टा रूम में चलने वाले पंखे की हवा में लहरा रहें थे । उसके लंबे काले बाल खुले थे, उसकी आँखे नम थी, ऐसा लग रहा था की वह बहुत रोकर आयी हो । वह चुप थी मगर उसके चेहरे भविष्य में आने वाली आँधी के संकेत कर रहें थे ।


"संगीता क्या हुँआ तुम्हें.....!"


सुनील को संगीता का कोई जवाब नही मिला । वह अब भी स्थिर निगाहों से बस सुनील को ऐसे देखे जा रही थी, मानो अब जन्म जन्मान्तर का वियोग उन दोनों को झेलना होगा ! ! !


"संगीता......! तुम्हें क्या हो गया हैं......प्लीज कुछ बोलो......संगीता !!"


मेरे हृदय की घबराहट बढ़ रही हैं ........ संगीता .....!


"संगीता, तुम्हारे बिना मेरा इस दुनिया में और कौन हैं ......!"


"संगीता....! तुम्हारे इस रूप को देखकर मैं भयभीत हो रहा हूँ ......!"


"आओ संगीता........मेरे पास बैठो.......!!"


"आप मुझे हमेशा के लिए अपने पास बैठा लीजिये, वे लोग मुझे आपसे दूर ले जा रहे है, मै आपके बिना नहीं जी सकती........!!!!"


"आप मुझे हमेशा के लिए अपने पास बैठा लीजिये, वे लोग मुझे आपसे दूर ले जा रहे है, मै आपके बिना नहीं जी सकती हूँ |" संगीता रोने लगी, "आप मुझे यहाँ से दूर ले चलिए !"


"फिर.....!!"


"फिर क्या.....! फिर हम स्वतंत्र होगे......! हमें कोई रोकने वाला नही होगा और फिर हम शादी कर लेंगे !"


"लेकिन, संगीता तुम जानती हो की तुम अभी कानून की नजर में शादी करने योग्य नही हुई हो ! तुम्हारी उम्र अभी सतरह साल ही हैं ! तुम्हारे अठारह साल के होने में अभी पूरे एक साल का समय बाकी हैं !"


"तो क्या हुँआ?"


"तुम नही समझती हो संगीता, लेकिन मैं सब समझता हूँ ! मैने बचपन से लेकर अब तक बहुत दुनियां देखें हैं ! मैं अपने देश के कानून को भी समझता हूँ और तुम्हारे पापा की पहूँच को भी जानता हूँ ! तुम्हारे पापा के हाँथ बहुत लंबे हैं, संगीता ! वे हमे पाताल से भी ढूंढ़ निकालेंगे ! फिर मेरे पास ना कोई बैक स्पोर्ट्स हैं और न ही कोई बैंक बैलेन्स ! मैं कोर्ट - कचहरी में तुम्हारे पापा का सामना भी नही कर सकता........और तुम जानती हो संगीता, तुम तो बच जाओगी लेकिन मुझे सजा हो जाएंगी ! मैं जेल चला जाऊँगा संगीता.......मैं जेल चला जाऊँगा.......!"


"तो फिर, क्या कहना चाहते हैं आप !" संगीता अपने आँसू को पोंछते हुएँ बोली, "हमारे पास समय बहुत कम है | अबसे तीन घंटे बाद मेरी ट्रेन है.......चलिए.........! थोड़े काम के लायक सामान लेकर हमलोग कही दूर चलते हैं, हम भाग चलते हैं यहां से! दुनिया इतनी बड़ी हैं, हम कही भी जाकर रह लेंगे ! हम वैसी जगह चले जाएँगे जहाँ ये लोग नहीं पहुँच सकेंगे.......और रही बात मेरे पापा के पहूँच की, तो मेरे पापा एक इन्सान हैं कोई भगवान नही, जो हमे दुनिया के किसी भी कोने से खोज निकालेंगे!"


"संगीता! तुम ये क्या कह रही हो?"


"मैं बिल्कुल सही कह रही हूँ !" ........संगीता ऐसे बोले जा रही थी, मानो उसने आगे की सारी योजना बना रखी हो, "रही बात पैसे की, तो मेरे पास बहुत पैसे हैं ! आपको मैं कई साल तक पैसे की दिक्कत नही होने दूँगी, ये मेरा वादा हैं आपसे !"


"संगीता !!"

"मैं सही कह रही हूँ, सर.........! और सर, हमारी जाति अलग हैं, धर्म नही......हम दोनों हिंदू हैं ! फिर जाति अलग होने से क्या होता हैं ! यदि कोई लड़का दूसरे धर्म का होता तो उससे प्यार क्या, शादी क्या, मैं तो ऐसी लड़की हूँ की उससे मैं बात तक नही करती । क्योंकि मैं कट्टर सनातन धर्म को मानने वाली लड़की हूँ.......और आपके विचार भी बिल्कुल मेरे जैसे हैं !"


"ये तो बिल्कुल सही बात हैं संगीता !" सुनील संगीता की बातों पर प्रसन्नता प्रकट करते हुएँ बोला, "वैसे मेरे पास एक जबर्दस्त योजना हैं संगीता ! बिना भागे ही हमलोग शादी कर सकते हैं !"


"वो कैसे?"


"तुम अभी मामू के यहां चली जाओ और साल भर बाद जिद्द करके यहां आ जाना! साल भर बाद तुम अठारह साल की भी हो जाओगी! फिर तुम कानून की नजर में अपनी ईच्छा से शादी करने योग्य भी हो जाओगी और दूसरी ओर इस बीच मैं भी दूसरे फील्ड में अपना भविष्य बनाने की अंतिम कोशिश करूँगा! फिर मैं स्वाभिमान से तुमको अपनी पत्नी बनाने लायक हो जाऊँगा !"


"क्या यह आपका अंतिम निर्णय है?"


"समझने की कोशिश करो, संगीता.....! संगीता, तुम तो मुझे जानती हो न........मैं हमेशा हर काम सोच समझ कर ही करता हूँ! जल्दबाजी में मैं कोई काम नही करता! हमारी योजना से किसी को भी ना हानि होगी और ना किसी की बदनामी! बस, कुछ दिन की तो बात हैं संगीता! साल भर बाद हम हमेशा हमेशा के लिए एक दूसरे के हो जाएँगे! तब कोई हमे नही रोक सकता हैं!"


" वो तो ठीक हैं........आपने भविष्य की योजना तो बना ली मगर क्या आपको मालूम हैं भविष्य हमदोनो के लिए क्या योजना बनाए हुएँ हैं ? " संगीता सुनील को सशंकित दृष्टि से देखते हुएँ बोली, भविष्य क्या होगा, ये हम नही जानते हैं ! हम तो वर्तमान को जानते हैं ! हम तो आज को जानते ! कल क्या हो जाएगा, ये किसने देखा हैं ! भविष्य ना मेरे हाथ में हैं और ना ही आपके हाथ में ! "


"संगीता.........!!! " सुनील घबराकर संगीता से।


"ना जाने सर! मुझे ऐसा क्यों लग रहा हैं की यह हमारा अब अंतिम मिलन हैं.......अब आप मुझे दोबारा फिर कभी नहीं देख पाईयेगा !" संगीता ने उखड़े हुएँ स्वर में सुनील से कहा।


"नही संगीता.......नही.......!"


सुनील के इनकार से संगीता पर गहरा आघात पड़ा | वह जिसके साथ जीवन बिताने का सपना देख रही थी, उसी ने आगे कि राह में उसे अकेले चलने के लिए छोड़ दिया था ।


संगीता जिस आशा के साथ सुनील के पास आयी थी, वह आशा टूट चुकी थी । भविष्य को किसने देखा हैं। आज का पल तो अपना हैं, कल को किसने देखा हैं! पता नही.......कल आएगा भी......कि नही!


टूटे दिल से संगीता पूरी तरह से हतास-निराश होकर वहा से जाने लगी, तभी सुनील के स्वर उसके कानो में पड़े , " संगीता क्या हुँआ.....कहा जा रही हो ! बैठो तो अभी ! "


"बैठने ही तो आयी थी, लेकिन कहा बैठाया आपने मुझे..........!" संगीता बहुत मायूस होते हुएँ बोली, "मेरी ट्रेन तीन घंटे बाद है, इसलिए कुछ सामान भी पैक करने है| बहुत आशा से आपके पास आयी थी, लेकिन .................!!!!!!"


संगीता अपने वाक्य को अधुरा ही छोड़कर कमरे के पर्दे को एक झटके से हटाते हुए चली गई.......!



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संगीता के वियोग ने सुनील को पागल सा बना दिया था | वह कोई भी काम समय पर नहीं कर पा रहा था | वह रात -दिन उस लड़की की यादो में ही खोया रहता था | एकान्त के क्षणों में भी वह संगीता के लिए विलाप करता रहता था।


कहते हैं समस्याएँ जब आती हैं तो आती ही चली जाती हैं......! वह रुकने का नाम ही नही लेती ! एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी ......! सुनील के जीवन में भी ऐसा ही कुछ हो रहा था । जिस समय उसे बेहतर कैरियर बनाने के लिए योजना बनाना था, उस पर अमल करना था, जिसके लिए उसने संगीता से वादा भी किया था ! लेकिन ठीक उसी समय उसकी टिमटिमाती प्राइवेट नौकरी भी हाँथ से चली गई । अब वह बेरोजगार हो गया था । बहुत कोशिश के बावजूद भी उसे कही पर भी दूसरी नौकरी नही मिल पा रही थी ।


नौकरी छूटने के कारण सुनील को जबर्दस्त आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा था । आर्थिक तंगी की वजह से उसे दिल्ली के महंगे फ्लैट को छोड़कर दूर फरीदाबाद में एक सस्ते कमरे को किराये पर लेना पड़ा । उसे अपना खर्च चलाने तक के लिए पैसे नहीं बचे थे । इस जबर्दस्त आर्थिक संकट की वजह से उसे फरीदाबाद के एक फैक्ट्री में हेल्पर का काम भी करना पड़ गया । गरीबी, चिंता और परेशानी ने उसके स्वास्थ्य पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव डाला ! वह अब अस्वस्थ भी रहने लग गया था।


इस बेरहम समय ने उस लड़के पर हमेशा अत्याचार ही किया था । लेकिन फिर भी उसके मन मस्तिष्क में संगीता से मिलने की आस अभी बाकी थे । अब उस अभागे लड़के को अपनी बिछड़ी प्रेमिका से मिलने की उम्मीदें ही जिन्दा रखे हुए था ।


इसी गरीबी के दिन गुजारते-गुजारते ना जाने कब एक साल बीत गया, इसका एहसास भी उस लड़के को नही हुँआ। जबकि उस प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को एक साल का ही समय दिया था। लेकिन इस समय उस लड़के की आर्थिक स्थिति पहले से भी बहुत बद्तर हो गई थी।


लेकिन वह लड़का फिर भी लगातार परिश्रम करता रहा । वह हर पल हिम्मत हारता और हर पल वह स्वंय को ही हिम्मत भी देता ! इसी हार - जीत में धीरे-धीरे दुसरे साल लगने तक किस्मत ने उसका थोड़ा सा साथ दें दिया। उस लड़के को एक अच्छी कंपनी में मार्केटिंग की जॉब मिल गई । जॉब अच्छी पैकेज पर हुई थी ! इसलिए अब सुनील की आर्थिक स्थिति पहलें से अच्छी हो गई थी ।


फिर तो उसने जल्द ही अपने पुराने फ्लैट को भी किराये पर ले लिया । ये वही फ्लैट थे, जहॉ से उसकी संगीता के साथ कहानी शुरू हुई थी । वास्तव में, वह संगीता को सरप्राइज देना चाहता था ।


सुनील फ्लैट पर लिफ्ट के माध्यम से ऊपर के फ्लोर पर गया, जहॉ संगीता रहा करती थी । उसके चेहरे पर खुशी भी थी और डर भी ! !


'क्या संगीता से उसकी मुलाकात हो पाएंगी ! क्या संगीता यहां होगी! और अगर संगीता से उसकी मुलाकात नही हुई तब........तब वो क्या करेगा......! नही.....नही......ऐसा नही हो सकता हैं!'


सुनील संगीता के घर के दरवाजे पर लगे कॉल बेल बजाकर खड़ा हो गया ।



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कुछ देर बाद एक बूढ़े आदमी ने दरवाज़ा खोला, "आप कौन?" सुनील ने चौक कर उस बूढ़े से पूछा।


"ये बात तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए! तुम हमारे घर पर आएँ हो, मैं तुम्हारे घर पर नही आया हूँ, समझे!"


"ओह! क्षमा करें! अंकल! दरअसल, यहां पहले घनश्याम जी रहा करते थे !" सुनील सामने दरवाजे पर खड़े उस अंकल से सफाई देते हुएँ बोला, "उनकी एक बेटी थी-संगीता.....! मैं उन्ही से मिलने आया था।"


"मैं नही जानता हूँ किसी घनश्याम को या उसकी बेटी.....क्या नाम बताया तुमने उस लड़की का....!"


"जी....संगीता......संगीता नाम हैं उसका!"


"सॉरी! मैं ना घनश्याम को जानता हूँ और ही उसकी बेटी संगीता को!"


"आपने यह फ्लैट कब लिया हैं?" सुनील के मन की घबराहट बहुत तेज हो गई थी।


"छः महीने पहले!!!" बोलते हुएँ उस व्यक्ति ने घर का दरवाजा जोर से लगा लिया।


सुनील उस बंद दरवाजे को देखता रह गया ! जिसकी उम्मीद में वह जिंदा था......! उसकी वे उम्मीदें धरी की धरी रह गई थी.....! दुःख और नाउम्मीदी मजबूत से मजबूत इंसान को भी तोड़ देता हैं । सुनील का चेहरा अब स्याह पड़ चुका था ! सुनील का गोरा मासूम सा चमकदार चेहरा आँसुओं से नहा रहा था ।


अब वह क्या करेगा ! संगीता के बारे में किससे पूछेगा.....! कौन बताएगा उसे अब की संगीता कहाँ चली गई.......! ! वह रो रहा था ! अब उसे कुछ भी समझ में नही आ रहा था ! आखिर वह लड़की कहाँ चली गई........!


अब संगीता के विषय में एक ही आदमी जानकारी दें सकता हैं और वह हैं इस बहुमंजिली ईमारत का मैनेजर विजय ! सुनील बिना देर किए जल्दी से मैनेजर विजय की केबिन की ओर दौर पड़ा ।


"घनश्याम बाबू…..घनश्याम बाबू तो सात महीने पहले ही फ्लैट, शहर, नौकरी-चाकरी सब छोड़कर यहां से दूर--बहुत दूर कही चले गएँ है। लेकिन कहा गएँ हैं, उनका पता क्या हैं, उनका मोबाईल नंबर क्या हैं…...! ये बातें किसी को भी मालूम नही हैं!! क्योंकि घनश्याम बाबू इन बातो की जानकारी किसी को भी देकर नही गएँ हैं।" मैनेजर बहुत गंभीर होते हुएँ बोला।


"ओह! माय गॉड! अब क्या होगा!" सुनील के मुँह से हठात से यह निराशाजनक वाक्य निकल पड़ा!


"लगता हैं, आप कुछ ज्यादा ही परेशान हैं! लेकिन मुझे खेद हैं की मैं आपकी सहायता नही कर पाया!" मैनेजर सहानुभूति दिखलाते हुएँ सुनील की ओर मिनरल वाटर से भरे ग्लास को बढ़ाते हुएँ बोला, "ये लीजिए! पानी पीजिए! आपका गला भी सूख रहा हैं और मुझे लग रहा हैं इस समय आप बहुत घबराये हुएँ भी हैं!


"हाँ विजय जी! मैं सचमुच बहुत घबराया हुँआ हूँ! बहुत उम्मीद से आपके पास आया था! सोचा था आपसे मुझे उस परिवार का कोई कॉन्टैक्ट इन्फॉर्मेशन मुझे मिल जाएँगी! मगर…..अफसोस यहां भी मुझे निराशा ही हाँथ लगी। अब तो मेरे अंतिम उम्मीद पर भी पानी फिर गया…..! भगवान….मेरे जैसा दुर्भाग्य किसी को भी ना दें ! अब हम जी कर भी क्या करेंगे…….!!"


"मैं समझ रहा हूँ आपकी पीड़ा! सुनील जी!" मैनेजर सुनील के लिए चाय का ऑर्डर देते हुएँ बहुत मायूस होते हुएँ बोला, "लेकिन मैं क्या करूँ! मेरे हाँथ में कुछ हो तब न!"


"विजय जी! यदि आप सचमुच मेरी पीड़ा को समझ रहे हैं तो प्लीज आप अपनी ओर से घनश्याम बाबू का पता लगाने की पूरी कोशिश कीजिए! मैं आपके इस एहसान का बदला जिंदगी भर नही भूलूंगा!" सुनील विजय के सामने हाँथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुएँ बोला। उस समय सुनील की आँखे आँसुओं से भरी थी।


"सुनील! आप मेरे छोटे भाई के समान हैं । आप क्या समझते हैं मैं आपके दुःख से दुःखी नही हो रहा हूँ। क्या यह मुझे अच्छा लग रहा हैं की आप मेरे सामने हाँथ जोड़कर इस तरह से अनुरोध कर रहे हैं…..। नही…...सुनील जी…..नही…...! मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा हैं…...! ये लीजिए चाय पीजिए….!" मैनेजर सुनील की ओर चाय का ग्लास बढ़ाते हुएँ बोला।


"सुनील जी! आप अपने आप पर ध्यान दीजिए! अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए। " विजय ने सुनील को ढांढस देते हुएँ कहा, "क्योंकि मैं जानता हूँ आपका इस दुनियां में कोई नही हैं। दूसरे सौभाग्यशाली लोगो की तरह आपके सुख-दुःख में कोई आपके साथ चलने वाला या चलने वाली भी नही हैं। आपको इस बात को कभी नही भूलना चाहिए की आप इस बड़े से दुनियां में बिल्कुल अकेले हैं। इसलिए जीवन की हर छोटी बड़ी चुनौती से आपको स्वंय ही लड़ना होगा और उस पर लड़ते हुएँ जीवन में आगे भी आपको ही बढ़ना होगा।"


मैनेजर विजय की बातों में सच्चाई थी और हर सच्चाई में कडुवाहट की मात्रा थोड़ी ज्यादा या थोड़ी कम तो होती ही हैं ! लेकिन अभी असली सच्चाई से तो सुनील का सामना हुँआ ही नही था । अब जो सच्चाई उसके सामने आने वाला था उसमें दुःख की मात्रा इतनी अधिक थी की उस मे सुनील को अपने आपको सम्भाल पाना लगभग असंभव सा लग रहा था ।


मैनेजर ने एक बार फिर सुनील को समझाना चाहा, "सुनील भाई! अगर मान लीजिए मैने कोशिश करके संगीता के घरवालों का कॉन्टैक्ट नंबर का पता कर भी लिया तो इससे आपको क्या हासिल होने वाला हैं। किसी उद्यान के सूखे फूलो के पौधें भला फिर से खिल सकते हैं क्या!! क्या बीता हुँआ समय फिर लौट कर आ सकता हैं क्या!! क्या मृत व्यक्ति लौट कर आ सकता हैं क्या!!"


"मेरी संगीता कहा हैं…..वह ठीक तो हैं ना…...मुझे आपकी बातों से कोई अनहोनी के संकेत लग रहें हैं…….! बताइये न…...आप चुप क्यों हैं…….. कहा हैं मेरी संगीता…...!!!"


सुनील की घबराहट बहुत बढ़ गई थी । वह लगातार संगीता के बारे में पूछे जा रहा था । अब मैनेजर के पास संगीता के बारे में सच सच बताने के अलावा और कोई चारा नही बचा था । वह सुनील से बिना कुछ बोले ही चुपचाप से अपनी कुर्सी से उठा और दीवार में लगे रैक को खोलकर उसमे रखे एक पुराने पेपर निकाल लिया । पेपर हाँथ में लेकर वह सुनील के सामने टेबल पर उसे रखते हुएँ कहा, "यहां हैं आपकी संगीता…….!!!"


"नही….ऐसा नही हो सकता हैं…….!!!" सुनील की वह भयानक चीत्कार चारों ओर गूँज गई थी। सुनील की वह चीख उस मंजिलें तक भी पहुँच गई थी जिस पर कभी संगीता रहा करती थी……….! शायद उस फ्लैट में आज संगीता होती तो यह जान पाती की सुनील उसको किस हद तक चाहता हैं……..! शायद अपने जान से भी ज्यादा…..!


सुनील उस समय आंख गड़ाए उस अखबार में छपी मोटी सी लाईन को बार बार पढ़े जा रहा था ! लेकिन बार बार पढ़ने के बावजूद भी उसे यह विश्वास ही नही हो रहा था की जिसके मिलन की आस में वह इतने भयानक दुःखो को झेलकर भी जीवित रहा , वह लड़की…….उसकी प्रेमिका तो अब उससे बहुत दूर जा चुकी थी…...! ! !


न्यूज पेपर में लिखा था , " अर्पणा अपार्टमेन्ट के सबसे ऊपरी छत पर एक लड़की संदिग्ध अवस्था में मृत पायी गई "


कुछ महीने पहले के उसे समाचार पत्र में आगे लिखा था , " लड़की का नाम संगीता था । घटना के समय उसके माता पिता शहर में होने वाले एक पार्टी में गएँ हुएँ थे । उस पार्टी में राजनीतिक पार्टियों के नेता से लेकर जाने माने उद्योगपति और विभिन्न प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हुएँ थे । पुलिस का कहना हैं की संगीता की रेप के बाद हत्या की गई हैं ।


पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी रेप के बाद गला दबाकर हत्या किए जाने की पुष्टि हुई हैं । लेकिन पुलिस दोषी तक पहुँचने में नाकाम साबित हुई हैं । "


सुनील स्थिर नजर से उस पेपर में छपी उस घटना की हेडलाइन को ना जाने कब तक देखता रह गया । तभी अचानक से उसके कानों में पड़ने वाली मैनेजर की आवाज से उसका ध्यान टूटा , " संभालिये अपने आपको …… और हाँ , किसी को यह मत बतलाईयेगा की संगीता आपकी गर्लफ्रेंड थी वरना पुलिस की शक की सुई सीधे आप पर ही चली जाएँगी क्योंकि हत्यारा अब भी पुलिस की पहुँच से बाहर हैं…...! "



Short Love Story In Hindi



इस समय वह पागल - सा होकर अपने कमरे में लौटा | उसे यह समझ में नहीं आ रहा था की अब वह क्या करे, ' क्या बिना संगीता के वह जीवित रह सकेगा ? ' संगीता उसके जीवन की अंतिम उद्देश्य थी । अब जब उद्देश्य ही हमेशा के लिए समाप्त हो गया , तो फिर ऐसे नीरस , बोझिल , उबाऊ जीवन का क्या औचित्य हैं , क्यों न वह भी संगीता के पास चला जाएँ…...!


संगीता उसकी यादो में बुरी तरह हावी थी । उसे अब जीवन की कोई चाहत नहीं रह गई थी । संगीता के वियोग ने उसे तोड़ दिया था । ऐसी स्थिति में कोई भी मनुष्य अपने आप में गुम हो जाता हैं । वह समाज से पूरी तरह से दूरी बना लेता हैं । उसे किसी से बात करने में या फिर किसी से मिलने जुलने में कोई रुचि नही रह जाती हैं । सुनील की भी ठीक यही स्थिति थी ।


मगर वह संगीता से हर हाल में मिलना चाहता हैं , अब यह चाहें जीते जी हो या फिर मरने के बाद हो ! उसे अपनी प्रेमिका से मिलना तो हर हाल में हैं……..! हालाँकि वर्तमान परिस्थिति में यह असंभव सा लग रहा था | मगर उसी समय उसे अपने एक पुराने मित्र की याद आयी, जो उसे हमेशा एक सिद्ध योगी की कहानी कहा करता था , जिसने अनेक असंभव कार्य को भी संभव बना दिया था । उनके चमत्कार की कहानी तो सुनील ने खूब सुन रखा था , अब उनके चमत्कार को देखने की बारी थी । सुनील अपनी दिवंगत प्रेमिका की आत्मा से हर हाल में मिलना चाहता था ।


लेकिन क्या यह संभव होगा…….! क्या संगीता की प्रेतात्मा आ जाएँगी…...! क्या वह अपनी प्रेमिका से मृत्युपरांत भी मिल सकता हैं…...! क्या वह सिद्ध योगी संगीता की भटकती प्रेतात्मा का आह्वान करके उससे उसका प्रत्यक्ष मिलन करवा देगा…...!


लेकिन उसके मित्र तो उस सिद्ध योगी के बारे में ऐसे कई करिश्माई कहानी उसे सुना चुका था……!


तय समय पर वो सिद्ध योगी सुनील के घर पर आ गएँ । पहले तो उन्होने सुनील को बहुत समझाया , जो चला गया, उसे भूल जाने में ही इन्सान की समझदारी होती है, क्योकि गया हुआ चीज कभी नहीं लौटता और जो दिखाई भी पड़ता है वह उसका बदला हुआ रूप ही होता है जिसको पाकर भी कोई लाभ नहीं होता | मगर योगी की इन बातो ने सुनील पर कोई प्रभाव नहीं डाल सका | वह तो बस हठ बांधे था की उसे हर हाल में उसकी संगीता की आत्मा से मिलना हैं…..!


आखिरकार, सुनील के हठ के आगे बाबा को झुकना पड़ा | फिर निश्चित तिथि की रात को नौ बजे वह योगी अपने सभी हवन सामग्री के साथ सुनील के कमरे में पहुंच गएँ और संगीता के प्रेतात्मा को आह्वान करने के लिए हवन कुण्ड प्रज्वलित करके मंत्र - जाप करने लगे ।


वह चांदनी रात थी, लेकिन आसमान हल्के बादलो से ढका था | सुनील भी वही बैठा संगीता के यादो में खोया हुआ था | ' किंतने अच्छे थे वे बीते हुए पल, जब हम संगीता के साथ बैठे हुए घंटो बात - चीत करते रहते थे | कितना प्यार करती थी वह मुझे ! ऐसी लड़की जो मुझे जी जान से चाहती थी | लेकिन मैंने उसके लिए क्या किया ?’ यही सब सोचकर वह दुखी हो रहा था | इस समय उसकी अंतरात्मा उसे धिक्कार रही थी | उसने संगीता के साथ सही न्याय नहीं किया | ' क्या कसूर था उसका ?'


सुनील के मन में बार -बार संगीता का गंभीर-मायूस चेहरा उभर रहा था जो चुपचाप उसे निहार रही थी | उसके बाल खुले है, वह हलके पीले रंग की सूट पहने हुए है, उसके दुप्पटा हवा से लहरा रही है, वह बहुत दुखी मालूम पड़ रही है, उसकी आँखे नम है, वह सुनील से बहुत कुछ कहना चाह रही है |


व्याकुल होकर वह लिफ्ट से होते हुए बिल्डिंग के उस फ्लोर पर चला गया जिसपर कभी संगीता रहा करती थी | वह संगीता के दरवाजे पर गया । वह दरवाजे पर ऐसे खड़ा हो गया मानो दरवाजा खोलकर अब संगीता बाहर निकलेगी !


'लेकिन ये क्या कर रहा हैं वो….! उसे तो मालूम हैं की संगीता अब इस घर में….क्या इस…….इस दुनियां में ही नही हैं…..!'


तो फिर वो ऐसा पागलपन भरा कार्य क्यों कर रहा हैं…..! शायद उसे अब भी यह विश्वास नही हो रहा हैं की संगीता उसे हमेशा के लिए छोड़कर दूसरी दुनियां में चली गई हैं…...! 'दूसरी दुनियां……..!' उसके मस्तिष्क में यह शब्द बार बार आकर उसे हताश करने लगा। सुनील बांये की तरफ घूम गया, जिधर खुली छत पर जाने के लिए सीढ़ी थी।



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वह सीढ़ी पर ऐसे चढ़ता गया, मानो छत पर कोई उसका इंतजार कर रहा हो | ऊपर पहुंचकर छत पर जाने वाले दरवाजे को एक धक्के के साथ खोल दिया | सामने एक विशाल छत थी, जो रेलिंग से घिरी हुई थी। संगीता का शव संदिग्ध हालात में इसी छत पर मिला था । लेकिन अब यहां घोर सन्नाटा पसरा हुँआ था…….!


बादल चाँद को ढंके हुए था, फिर भी उससे छनकर प्रकाश छत पर आ रहा था । जैसे ही उसने छत पर अपना पैर रखा वैसे ही हवा की एक जोर का झोका ने उसपर प्रहार किया ।


"कैसी विरानी है यहाँ, "उसने घोर निराशा से सोचा, "कैसा अकेलापन है यहाँ|"


"अकेलापन" यह शब्द उसके दिमाग में प्रतिध्वनित होने लगी|


"वह अब कहाँ होगी?' 'वह लड़की ---- उसकी प्रेमिका !" उसने अपनी बांहों को आगे फैलाया, जैसे वह उसको पकड़ना चाहता हो| लेकिन उसकी अंगुलिया केवल ठंडी हवा का ही स्पर्श कर सकी | हवा उसांसे ले रही थी | उससे ऐसी पतली और उदासी भरी आवाज निकल रही थी, मानो कोई नौजवान लड़की रो रही हो।



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सुनील बहुत मायूस होकर लिफ्ट से होते हुए नीचे जब कमरे में आया तो चौक गया | बाबा हवन कुण्ड से दूर बैठे है और हवन कुण्ड से आग की लपट धीमी - धीमी निकल रही है| उसने बाबा से उसका कारन पूछा तो वे समझाने की मुद्रा में लेकिन दुखी होकर बोलने लगे, "बेटा... ! यह जीवन भी एक विचित्र पहेली हैं। जीवन के बाद मृत्यु और मृत्यु में बाद जीवन यही इस संसार का अटल नियम है और हम सब को इसी चक्र में चलते रहना है|" बाबा इतना बोलकर फिर एक लंबी सांस लेते हुएँ कहा, "संगीता भी इसी चक्र में चल रही है और अब वह परलोक में भी नहीं है| शायद, वह पुनः इसी धरती पर जन्म धारण कर चुकी होगी………!!"


वह कहां गई - Wah Kahan Gai ........!!

"Very Emotional Story"

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